हमेशा साईबर कैफे में हिन्दी न दिख पाने वाली समस्या से परेशान कवि अभिषेक पटनी को भी इस बार नहीं रहा गया और उन्होंने हिन्द-युग्म के यूनिकवि व यूनिपाठक प्रतियोगिता के सितम्बर अंक में भाग ले ही लिया। कवि का कहना है कि वो बहुत पहले से इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाह रहे थे। लेकिन इस बार आए, पर पूरी तैयारी के साथ कविता 'मरघट' को ११वां स्थान मिला।
कविता- मरघट
कवयिता- अभिषेक पटनी, नोएडा (यूपी)
जलती चिताओं से भी
कुछ घर
रोशन होते हैं,
कुछ ऐसे घर
जो
मरघट के साथ लगे हैं,
जहाँ के लोग
शहर में लोगों के
मरने की कामना
पालते हैं,
लाश के आने पर
खुशियाँ मनाते हैं,
ये
बहुत कुछ कमाते हैं,
कफन के कपड़े,
अर्थी के बाँस,
चिता की लकड़ी
और नकदी,
लावारिस लाशों को भी
बेच खाते हैं,
ये आदम के
सच्चे वंशज हैं!
हर दिन
इनके भाग्य का
छींका टूटता है,
हर दिन
आती हैं कई लाशें,
जिस दिन
नहीं मरता,
शहर में कोई,
ये मातम मनाते,
मरघट मनहूस लगता,
शहर
इस अन्दाज़ पर रोता है,
मरघट
इस हालात से खुश है,
आखिर हर रोज़
वह रोशन जो होता है।
रिज़ल्ट-कार्ड
--------------------------------------------------------------------------------
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ७॰५, ५॰५, ७॰७५, ६॰४
औसत अंक- ६॰७३
स्थान- सत्रहवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६॰९, ८॰२, ५॰०५, ६॰७३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७२
स्थान- चौदहवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-सशक्त कथ्य पर लिखी गयी कमजोर रचना।
अंक- ५॰९
स्थान- ग्यारहवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 कविताप्रेमियों का कहना है :
शहर
इस अन्दाज़ पर रोता है,
मरघट
इस हालात से खुश है,
आखिर हर रोज़
वह रोशन जो होता है।
अभिषेक जी, बहुत ही अच्छी रचना। विषेष कर इसका जो अंत आपने किया है। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद्
मरघट
इस हालात से खुश है,
आखिर हर रोज़
वह रोशन जो होता है।
अभिषेक जी कविता का अंत सशक्त है, अच्छी रचना के लिए बधाई.
अभिषेक जी
लिखा तो सच ही है किन्तु पढ़कर मन दुखी हो गया । अवश्य ही कुछ लोग ऐसा करते हैं । पर मैं चाहती हूँ कि
हम उन लोगों को कविता का विषय बनाएँ जो मानवता के लिए तन धरते हैं । वरना मानव कैसे जिएगा?
जो सच कड़वा हो उसे पढ़कर मन ही दुखी होगा ।
एक सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
बहुत अच्छी रचना पर शायद इसे और मारक बनाया जा सकता था ! जब कविता का शीर्षक पढ़ा तब इस कविता के
की वेदना से कहीं अधिक की अपेक्षा थी |शायद कुछ छूट गया .. वैसे विषय चयन और इस पर लिखना तारीफ़ के काबिल है.. सुंदर रचना...
अभिषेक जी
जलती चिताओं से भी
कुछ घर
रोशन होते हैं,
कुछ ऐसे घर
जो
मरघट के साथ लगे हैं,
कविता में मानव जीवन जनित विषय से जुड़ी यह कविता बहु आयामी हो
सकती थी। जीवन दर्शन के सभी फलकों को समेटे हुयी इस रचना के
विषयगत चयन को लेकर बधाई वहीं पर आप इससे अधिक कर सकेंगे
आगे से ऐसा विश्वास भी है।
शुभकामनायें
अभिषेक जी !
जलती चिताओं से भी
कुछ घर
रोशन होते हैं,
कुछ ऐसे घर
जो
मरघट के साथ लगे हैं,
बहुत अच्छी रचना।
कविता का सशक्त अंत
तो सच पढ़कर मन दुखी हो गया .....सच तो सच ही है
बधाई.
A good poem based on the fact that to earn a living, lots have to be done by different people in different ways.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)