इस बार का एक और नया चेहरा हमारे सामने है। पंकज पाण्डया लिखते तो पहले से हैं, लेकिन प्रतियोगिता में पहली बार आये हैं। लेकिन आते ही हस्ताक्षर कर दिया है। मिलते हैं ८वें पायदान की कविता से-
कविता- रिक्तता
कवयिता- पंकज पाण्डया, होशंगाबाद(म॰प्र॰)
सड़क पर दौड़कर,
पकड़ ले कोई सन्नाटे.
समझ में आता भी नहीं कुछ,
हर बार एक सिरा ज़िंदगी का,
फिसल सा जाता है।
कोई पकड़ ले ,
मै असमर्थ हूँ,
क्यूँकि,
सड़क जाती है क्षितिज तक और,
सन्नाटा भी पसरा हुआ,
वहीं तक जाता है।
सन्नाटा हो या रात,
दिखाते दोनो खलिश ही है,
या बोलो काला रंग भी,
रिक्तता दिखाता है .
सन्नाटा , आवाज़ों को,
तो काला ,रंगों को ख़ाता है.
सन्नाटे! तेरी थाह लेने को,
चाहता हूँ.
लगाऊँ डुबकी काल-जल मे ,
शब्द बनकर,
पर कोई आवाज़ ही ले जाता है.
झींगुर, झाड़-पेड़, कुत्ते.
सब शांत है.
एक अशांत मौन .
मुझ में भी.
उथल-पुथल...........
हुआ....! ये सिगरेट कौन बुझाता है?
हे यामा! हे मौन! हे काल!
ले ले मुझे आगोश में,
आवाज़ों , रंगों की तरह,
मैं भी हो जाऊँ स्याह।
जीवन भी एक सन्नाटा है।
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ७॰५, ५, ७॰५, ६
औसत अंक- ६॰८
स्थान- तेरहवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६॰७५, ७॰३, ६॰१, ६॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७३७५
स्थान- तेरहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कवि ने जिस खूबसूरती से रिक्तता को पारिभाषित किया है, कविता को उँचाई पर ले जाता है। कविता के अंत में जब सन्नाटा और जीवन का एकाकार कवि ने कराया है कविता पाठक के मन को स्पर्श करती है।
अंक- ७
स्थान- चौथा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता का आरम्भ अच्छा है, किन्तु कुल मिला कर रचना में एक प्रकार की कृत्रिमता उभरती है। यह शब्दों के स्तर पर भी है व अभिव्यक्ति के भी। सहजता से व सहज शब्दो की सहायता से अपनी अनुभूतियों को शब्द दें। बहुत सी इधर उधर की शब्दावली के सम्मिश्रण का भान होता है।बिम्ब अच्छे बनाने की सामर्थ्य है।
अंक- १॰७८
स्थान- आठवाँ
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पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
रिक्तता,सन्नाटा और काला रंग सब कुछ लाजवाब है| धन्यवाद एक मधुर कविता के लिए!
वाह..
"मैं भी हो जाऊँ स्याह।
जीवन भी एक सन्नाटा है।"
कोलाहल को सातवे और इस कविता को आठवे स्थान पर देखकर प्रतियोगिता का स्तर सहाज़ ही समझ आ जाता है|
बस आप निराश ना हों और पुन: कोशिश करें...
रिक्तता बहुत अच्छी रचना है। बिम्बों से कवि की काव्य विधा पर गहरी पकड समझी जा सकती है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंकज जी
बहुत प्रभावशाली कविता लिखी है । बधाई ।
पंकज पंडया जी
सन्नाटे! तेरी थाह लेने को,
चाहता हूँ.
लगाऊँ डुबकी काल-जल मे ,
शब्द बनकर,
पर कोई आवाज़ ही ले जाता है.
बहुत ही भापूर्ण एवं अद्भुत कविता है
शिल्पगत कमजोरियों के बाद भी यह
विषयगत कारण से मुझे अच्छी लगी
बधाई
पंकज जी,
प्यारी रचना है। थोड़ा सा और प्रयास कविता को और निखार सकता था। बिम्ब सुन्दर हैं। बधाई।
बहुत ही सुंदर कविता है पंकज जी
भाव बहुत अच्छे लगे इस के
बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत अच्छी भापूर्ण रचना .....
सन्नाटे! तेरी थाह लेने को,
चाहता हूँ.
लगाऊँ डुबकी काल-जल मे ,
शब्द बनकर,
पर कोई आवाज़ ही ले जाता है.
पंकज जी
बधाई ।
mishra ji mai janana chahta hoon ki kya shilp gat trutiyan thi taki mai inhe aage ki kavitaon me sudhar saku..........
baki sabhi logo ko dhanyawad jo aapne tippaniyan ki..........
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