विपिन चौहान 'मन' ने कई बार प्रतियोगिता में भाग लिया है और हर बार इनकी कविता टॉप १० में रही है। इसी से इनकी रचनाधर्मिता का पता लगाया जा सकता है। सितम्बर माह की प्रतियोगिता में आयी इनकी कविता 'वे शब्द कहाँ से लाऊँगा' ६वें स्थान पर रही। विपिन चौहान 'मन' अब हिन्द-युग्म के स्थाई कवि हैं और आने वाले सप्ताह से प्रत्येक गुरूवार को अपनी कविताएँ प्रकाशित करेंगे।
कविता- वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
कवयिता- विपिन चौहान 'मन', आगरा(यूपी)
कुछ भीतर मेरे टूट रहा है
ये प्रेम रेत सा छूट रहा है
कारण क्या दूँ इस करुणा का
क्यूँ "मन" यूँ मन से रूठ रहा है
अब कलम हो चुकी शिथिल मेरी
और वाणी रिक्त विचारों से
विधवा सी हर रचना है मेरी
है दूर ये अब श्रंगारों से
ये करुण कथा करुणान्त हुई
अब कैसे इसे सुनाऊँगा
जो मेरी व्यथा का विवरण दें
वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
तुमको पाने के सब प्रयास
अब बचकाने से लगते हैं
जो भाव भक्ति थे श्रद्धा थे
वे ठग समान अब ठगते हैं
जो स्वप्न दिखाये तुमने वो
पल्कों पर अब तक जलते हैं
हे"प्यार" मेरे दुर्भाग्य तेरा
धरती अम्बर कब मिलते हैं
पर फिर भी मिलन की आस में मैं
हर बार क्षितिज तक आऊँगा
जो मेरी व्यथा का विवरण दें
वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
आभास, विरह की बलिवेदी पर
निज शीश स्वयं दे आये हैं
मधुमास अभिलाषी उपवन ने
किस्मत से पतझड़ पाये हैं
संकोच हो रहा है मन को
सच को दर्पण दिखलाने में
गीत भाव को बाजारों में
आज बेचकर आये हैं
मैं व्यथित हृदय की आह मात्र
किस सुर में तुम्हें सजाऊँगा
जो मेरी व्यथा का विवरण दें
वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
तुम लौकिक सा संसार प्रिये
मैं निज अन्तर का अंधकार
तुम हो कुबेर का धन अथाह
मैं एक भिक्षु की भिक्षा सार
तुम नभ की ऊँचाई को भी
करती आलिंगनबद्ध सखे
मैं एक स्वाति की बूँद मात्र
खोज रहा निज का आधार
इसलिये प्रयत्न ही छोड दिये
क्यूँकि न तुम्हें पा पाऊँगा
जो मेरी व्यथा का विवरण दें
वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
जो मेरी व्यथा का विवरण दें
वे शब्द कहाँ से लाऊँगा
रिज़ल्ट-कार्ड
--------------------------------------------------------------------------------
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ९, ७, ७॰५, ४॰१
औसत अंक- ६॰८२
स्थान- बारहवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-८॰२५, ८॰२, ८, ६॰८२ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰८१७५
स्थान- चौथा
--------------------------------------------------------------------------------
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-व्यथा के विवरण के लिये जिन बिम्बों का सहारा लिया गया है उनमें नवीनता नहीं है न ही वे उस वेदना तक पहुँच रहे हैं जिसकी कवि प्रस्तुति कर रहा है। अपनी रवानगी के लिये कविता सराहना की पात्र है।
अंक- ६॰५
स्थान- आठवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता का प्रवाह अच्छा है।कवि में सम्भावनाएँ हैं। छंद वाली रचनाओं में अभ्यास व सतर्कता चाहिए होती है। छंद कई जगह टूटा है। एक सलाह यह कि कवि अपने आकाश को जरा बड़ा करें। मैं और तुम विषयक कई रचनाएँ ख्यात हैं हिंदी साहित्य में। अपने ‘मैं" को विस्तार दें। आत्मकेन्द्रित रचनाओं का भविष्य ?
अंक- ३॰६६
स्थान- छठवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
--------------------------------------------------------------------------------
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपिन जी आपकी कविता में प्रवाह है ,भावों कि अभिव्यक्ति अच्छी है। कुल मिला कर सशक्त रचना। बधाई
विपिन,
बहुत अच्छा है ।
गीत जैसा जने लायक है ।
बधाई
अवनीश तिवारी
विपिन जी बहुत सुंदर लगी आपकी कविता और इस से जुड़े भाव
आपका यहाँ स्वागत है इंतज़ार रहेगा आपकी नई रचनाओं का
बहुत बहुत शुभकामना के साथ
रंजू
विपिन जी
बहुत ही रस पूर्ण भावभरी रचना लिखी है । एक-एक शब्द रस में डूबा है । प्रतीकों का भी अच्छा निर्वाह किया है ।
हृदय की निराशा भी स्पष्ट दिखाई दे रही है । यह निराशा कविता के प्रवाह में बह जाए यही कामना है ।
बधाई स्वीकार करें ।
विपुल जी ,आपकी कविता केवल सुंदर और रचनात्मक ही नही अपितु मार्मिक और संवेदनशील रचना है !भाव और अभीव्यक्ति रोचक लगी !
पर फिर भी मिलने की आस में मैं
हर बार क्षितिज तक आऊंगा
जो मेरी व्यथा का वर्णन दे
वो शब्द कहाँ से लाऊंगा
इन पंक्तियों में दर्द और कोशिश साफ तौर से नज़र आती है
मैं व्यथित ह्रदय की आह मात्र
किस सुर में तुम्हे सजाऊंगा
जो मेरी व्यथा का वर्णन दे
वो शब्द कहाँ से लाऊंगा !
वाह ,कितने करूँ भाव से प्रेम अभिव्यक्त किया है
बधाई , सुंदर रचना के लिए .....!
विपिन जी,
सर्वप्रथम तो आपका हार्दिक अभिनंदन - हिन्द युग्म के स्थायी सदस्य के रूप में। आपकी प्रतिभा की सुरभि युग्म को महकायेगी।
बहुत अच्छी रचना है। बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर प्रवाह ....
अच्छी मार्मिक अभिव्यक्ति...
सशक्त भाव - पूर्ण रचना...
विपिन जी,
बधाई
तुमको पाने के सब प्रयास
अब बचकाने से लगते हैं
जो भाव भक्ति थे श्रद्धा थे
वे ठग समान अब ठगते हैं
जो स्वप्न दिखाये तुमने वो
पल्कों पर अब तक जलते हैं
हे"प्यार" मेरे दुर्भाग्य तेरा
धरती अम्बर कब मिलते
बहुत सुंदर मन जी, पूरी कविता एक साँस में पढ़ गया, वेदना की गहरी प्यास से भरी यह रचना सचमुच मन को चु जाती है -
aतुम लौकिक सा संसार प्रिये
मैं निज अन्तर का अंधकार
तुम हो कुबेर का धन अथाह
मैं एक भिक्षु की भिक्षा सार
तुम नभ की ऊँचाई को भी
करती आलिंगनबद्ध सखे
मैं एक स्वाति की बूँद मात्र
खोज रहा निज का आधार
एक नए तरह का विरोधाभास चुना आपना , बधाई
मन जी, युग्म पर स्वागत है ।
कविता बहुत पसंद आयी । लय पर आपकी पकड़ है और अच्छी पकड़ है । अब युग्म पर प्रेम रस छलकेगा ।
बधाई !
विपिन जी
बहुत ही प्रवाह मयी रचना के साथ आपने
हिन्द युग्म के पटल पर आगमन किया है
मन के सूक्ष्म से जुड़ी मन जी की रचनाओं का आनन्द मिलेगा इसी आशा कामना के
साथ हार्दिक अभिनन्दन
नव भारत के नव कवि को नव बधाई ।
आपकी कविता का सबसे सुन्दर पहलू अगर खोजा जाये, तो वह "प्रवाह" होगा ।
मन मोह लेती है, आपकी रचनायें।
"जो भाव भक्ति थे श्रद्धा थे
वे ठग समान अब ठगते हैं
जो स्वप्न दिखाये तुमने वो
पलकों पर अब तक जलते हैं"
आपका साधुवाद, इन भावभरी पंक्तियों के लिये ।
आर्यमनु, उदयपुर ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)