और नहीं अब बोलोगे
बस बोले
कलम तुम्हारी
यह रूचिकर है प्यारी
भूल गये
था वचन तुम्हारा
होठ बन्द करने का
हर पीड़ा को
तीक्ष्ण शूल को
सहज सहन करने का
माँ से माँगी थी
उर ज्वाला
हुत करने निज जीवन
मोह व्याधि से
रस अगाध से
शोषित कर सब तन मन
क्या पायेगा नूतन?
बस अभिनव से दूर
जला निज जीवन
स्वत्व यज्ञ कर
स्वत्व होम कर
जीवन समिधा न्यारी
बस बोले कलम हमारी
और नहीं अब बोलूँगा मैं
बस बोले कलम हमारी..
(जन्म दिवस पर हिंद युग्म परिवार एवं
आप सब मित्रों की शुभकामनायें तथा बधाई
संदेश का प्रस्तुतीकरण हृदय को अभिभूत करता है
हिन्द-युग्म के पटल पर मेरी इस रचना की
प्रस्तुती आप सबके प्रति मेरा आदर .....)
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
सर्वप्रथम आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई। रही बात कविता की तो उसमें तो आपका कोई सानी हीं नहीं है।
जन्मदिवस पर शुभकामनायें। आपकी लेखनी सदा प्रभावित करती है।
जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई फ़िर से और कविता बहुत बहुत सुंदर लगी :)
श्रीकान्त जी
आप जब नहीं बोलते तब भी बहुत बोल जाते हैं । बताइए किस बात पर विश्वास करें ? वैसे एक कवि को कुछ बोलने की आवश्यकता भी नहीं है । आपकी लेखनी बहुत बोलती है । एक सशक्त रचना के लिए बधाई ।
श्रीकांत जी ,आपमें तो लिखने की अपार क्षमतायें हैं !यकीनन एक उच्च कोटी का प्रयास है ! सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई .....!
श्रीकांत जी,
आपको जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
बस अभिनव से दूर
जला निज जीवन
स्वत्व यज्ञ कर
स्वत्व होम कर
जीवन समिधा न्यारी
बस बोले कलम हमारी
और नहीं अब बोलूँगा मैं
बस बोले कलम हमारी..
और नये उर्जा से भर आपकी कलम अनवरत चलती रहे इस अपेक्षा के साथ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आप भी बोलियेगा, आपकी कलम तो बोलेगी ही, रस घोलेगी ही
श्रीकान्त जी,
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।
बस अभिनव से दूर
जला निज जीवन
स्वत्व यज्ञ कर
स्वत्व होम कर
जीवन समिधा न्यारी
बस बोले कलम हमारी
और नहीं अब बोलूँगा मैं
बस बोले कलम हमारी..
जी.......
आपकी लेखनी बहुत बोलती है
बधाई।
सबसे पहले जन्मदिवस की लख-लख बधाईयां
कविता तो आपकी मन के तार छेङ जाती है
बहुत प्यारी कविता है
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