आऒ सृजनशील बन जाये
निष्क्रिय मनन, चिन्तन को क्रियाशील बनाये
आऒ सृजनशील बन जाये
आज जरुरत है-कर्मशील ,उत्साही ,जागरुक पीढी की
आऒ ऊर्जावान बन जायें
अन्तर्मन को मिल कर पुकारें
फिर प्रयत्नशील बन जायें
आऒ प्रगतिशील बन जायें
नव विकल्प अपनायें,
नई राह ,नये चिन्तन से
समाज को गतिशील बनायें
आऒ मन्थनशील बन जायें
संस्कृति की अक्षुण्ता को -
हम सब मिल कर आगे बढायें
आऒ विवेकशील बन जायें
मनसा,वाचा,कर्मणा से
देश की अखंडता बनायें
आऒ सृजनशील बन जायें ।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनुराधा जी,
स्वागत है आपका हिन्द-युग्म परिवार मे...
आपकी लेख्ननी शायद हिन्द-युग्म पटल पर पहली बार..आयी है.. अच्छा सृजन किया है
लिखते रहियेगा..
सन्देशप्रद सृजन किया है "सृजनशील" में
शुभकामनायें
अनुराधा जी,
हिन्द-युग्म परिवार के सदस्य के रूप में आपका स्वागत है. कर्मठता और सृजनशीलता का आवाहन करती सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
अनुराधा जी,
प्रथम तो स्वागत है हिन्द-युग्म परिवार में। मुझे यकीन है कि जब सिर ओखल में दे दिया है तो मूसल से क्या डरना यानी कि समालोचनायें आपके स्वागत में तत्पर हैं।
कविता अच्छी है किंतु किसी बिम्ब अथ्वा प्रयोग के आभाव में सीधे सीधे कहा गया कथ्य भाषण अधिक प्रतीत हो रहा है। आपसे असहमति किसी की भी नहीं हो सकती कि:
मनसा,वाचा,कर्मणा से
देश की अखंडता बनायें
आऒ सृजनशील बन जायें ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनुराधा जी
बहुत ही सुन्दर एवँ उपयोगी विचार दिया है आपने । आज इस प्रकार की सकारात्मक सोच की महती आवश्यकता
है । आपने सच्चे अर्थो में एक कवि कर्म का निर्वाह किया है । आपकी कविता को नमन ।
आऒ मन्थनशील बन जायें
संस्कृति की अक्षुण्ता को -
हम सब मिल कर आगे बढायें
आऒ विवेकशील बन जायें
मनसा,वाचा,कर्मणा से
देश की अखंडता बनायें
आऒ सृजनशील बन जायें ।
बहुत ही सुन्दर । बधाई स्वीकर करें ।
अनुराधा जी
क्या लाजबाब शिरकत की है हिन्द युग्म में
बहुत अच्छी कविता है
इसी तरह लगे रहिये
व्यस्तता के चलते टिप्पणी में देरी के लिये क्षमा चाहूँगा, अनुराधा जी! हिन्द-युग्म परिवार में आपका स्वागत है. कविता को संदर्भ में मैं राजीव जी से सहमत हूँ. आगे और बेहतर की आशा है. अच्छे भावों के लिये बधाई!
अनुराधा जी,
"सृजनशीलता" का आह्वान करने वाली आपकी यह रचना प्रशंसनीय है. सरल एवं अल्प शब्दों में आपने अत्यधिक कह दिया है. संस्कृत का विद्यार्थी होने के नाते "कर्मणा" के साथ "से" का प्रयोग व्याकरण-दोषग्रस्त लगा.
शुभाकाँक्षी,
मणि
"मनसा-वाचा-कर्मणा" तृतीया विभक्ति एकवचन का रूप है जिसका अर्थ हीं होता है-"मन से, वचन से, कर्म से".
आशा है मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगी.
अनुराधा जी,
अच्छा सृजन है |
अच्छे भाव....
लिखते रहिये..
बधाई
अनुराधा जी स्वागत है आपका
सुंदर लगी कविता आपकी भाव बहुत अच्छे लगे
मनसा,वाचा,कर्मणा से
देश की अखंडता बनायें
आऒ सृजनशील बन जायें ।
यह पंक्तियां बहुत ही अच्छी लगी
बधाई आपको
रंजू
अनुराधा जी!!!
बहुत ही अच्छे भाव के साथ लिखा है आपने...
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आज जरुरत है-कर्मशील ,उत्साही ,जागरुक पीढी की
आऒ मन्थनशील बन जायें
संस्कृति की अक्षुण्ता को -
हम सब मिल कर आगे बढायें
मनसा,वाचा,कर्मणा से
देश की अखंडता बनायें
****************
बधाई हो!!!
अनुराधा जी,
नव विकल्प अपनायें,
......
आऒ मन्थनशील बन जायें
संस्कृति की अक्षुण्ता को -
हम सब मिल कर आगे बढायें
आऒ विवेकशील बन जायें
बहुत ही सुन्दर एवँ उपयोगी विचार "सृजनशीलता" का आह्वान करने वाली भाव प्रधान रचना है। साथ ही आशा है कि भविष्य में आपके काव्य में और भी निखार आयेगा
शुभकामनायें
अनुराधा जी , हिंद युग्म परिवार की सदस्य बनने की बहुत बहुत बधाई ! मुझे आपकी रचना बहुत अच्छी लगी !
आज ज़रूरत है - कर्मवीर , उत्साही , जागरूक पीढ़ी की
आओ उर्जवान बन जाएँ !
आशावाद को दर्शाती उत्कृष्ट एवं प्रशंसनीय रचना के लीन पुनः बधाई !
अनुराधा जी स्वागत आपका, आपने शुरुवात कर दी है , बधाई
अनुराधा जी,
हिन्द-युग्म पर मैं आपका स्वागत करता हूँ। बहुत हीं जोशपूर्ण और आशावादी रचना है आपकी। आज की युवापीढी को ऎसी रचनाओं की बहुत हीं जरूरत है।
शिल्प में जो कुछ खामियाँ हैं, वो दिवाकर जी और राजीव जी कि बात पर अमल लाकर ठीक की जा सकती हैं।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आप सभी का धन्यवाद। मैं पूरी तरह से राजीव जी की बात से सहमत हूं कोशिश करुंगी कि कविता-कविता लगें,कथ्य ना हो। दिवाकर जी व्याकरणगत दोष अनभिग्यता कि वजह से हुआ है।
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