हिन्द-युग्म जैसा कि ८ अक्टूबर को सितम्बर माह की प्रतियोगिता के साथ यह भी उद्घोषणा कर चुका है कि प्रतियोगिता से ली हुई उत्कृष्ट २० कविताओं का प्रकाशन करेगा। ४ कविताएँ आप पढ़ चुके हैं। आज पाँचवीं कविता की बारी है। इसके रचनाकार भी हिन्द-युग्म के लिए नये हैं। बहुत खुशी की बात है कि हिन्द-युग्म नई प्रतिभाओं को तराशने में सफल हो रहा है।
कविता- अस्तित्वहीन
कवयिता- मनुज मेहता, नई दिल्ली
जानती हो!
आज का दिन कैसा है
जब तुम मेरे पास नहीं हो,
सूना-सा मेरा कमरा गुमसुम-सा है,
हल्की सी आहट पर, दरवाजा
दूर तक ढूँढ आया है तुमको!
और बिस्तर की सिलवटें भी,
काफी देर से उलझी पड़ीं हैं आपस में
धूल भी, बेखौफ़,
कब से लेटी हुई है मेरी कुर्सी पर,
और ये खिड़की एक टक
देख रही है आकाश की तरफ,
धूप भी, कमरे में बस झाँक कर
और तुम्हें न पा कर
सामने की दहलीज पर चढ़ गयी है
फूल भी बेजान से पड़े हैं मेज पर
तुम्हारे स्पर्श के इंतज़ार में,
अज़ीब सी खामोशी है हर तरफ
और मैं इन सबसे बचने के लिये
किताब हाथ में लिये बैठा हूँ
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
सच में,
आज, जब तुम मेरे पास नहीं हो
सब कुछ कितना अस्तित्वहीन है
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५, ५॰५, ७॰१५, ७
औसत अंक- ६॰९३
स्थान- दसवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-८॰७५, ८॰४, ७॰७ ६॰९३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰९४५
स्थान- दूसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-बेहद सशक्त प्रस्तुतिकरण। साधारण से लगने वाले शब्द पाठक को गहरा बेधने की क्षमता रखते हैं। असाधारण बिम्ब हैं और “अस्तित्वहीन” तक पहुचने में पूर्णत: सक्षम।
अंक- ७॰५
स्थान- तीसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता का आधा भाग बहुत अच्छा बन पड़ा है, बिम्ब की दृष्टि से भी, किन्तु आगे उसका निर्वाह नहीं हो पाया है। आरम्भ की तीन पंक्तियों के बाद कविता शुरू होती तो अधिक प्रभावोत्पादक हो सकती थी। अंत भी बिखर गया है। अभ्यास करते रहें।
अंक- ४॰८२
स्थान- पाँचवाँ
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पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
मनुज जी,
बेहद अच्छी रचना है। "अस्तित्व हीन्" के मनोभाव को व्यक्त करती बेहद रोचक बिम्बों में गढी गयी कविता है आपकी, आप बधाई के पात्र हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मनुज जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति है प्रतीक्षारत प्रेमी के मनोभावों की. सचमुझ ऐसे में अपना व्यक्तित्व खोखला लगने लगता है जब जिसे हम चाहते हैं वो हमसे दूर हो
मनुज जी
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने । प्रेम की भावना के अच्छे चितेरे हैं आप । इतनी बारीकी से विरह-मिलन
का चित्र खींचा है ।
अज़ीब सी खामोशी है हर तरफ
और मैं इन सबसे बचने के लिये
किताब हाथ में लिये बैठा हूँ
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
सच में,
आज, जब तुम मेरे पास नहीं हो
सब कुछ कितना अस्तित्वहीन है
बधाई स्वीकार करें ।
मनुज जी
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने । प्रेम की भावना के अच्छे चितेरे हैं आप । इतनी बारीकी से विरह-मिलन
का चित्र खींचा है ।
अज़ीब सी खामोशी है हर तरफ
और मैं इन सबसे बचने के लिये
किताब हाथ में लिये बैठा हूँ
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
सच में,
आज, जब तुम मेरे पास नहीं हो
सब कुछ कितना अस्तित्वहीन है
बधाई स्वीकार करें ।
meri is rachna ke liye Tahe dil se dhanyawad, meri aage bhi yehi koshish rahegi ki aap logon tak acha sahitay pahuncha sakoon. Dhanyawad.
मनुज जी! एक सुंदर रचना के लिये बधाई! निश्चय ही आपमें बहुत सम्भावनायें हैं. निर्णायकों की टिप्पणियों का ध्यान रखियेगा.
मनुज जी,
स्मृति-गह्वर से उद्भूत आपकी रचना ने निस्संदेह हीं बहुतों के धुँधले स्मृति को प्रकाशमय कर दिया होगा.
यह सच हीं है कि व्यक्ति, वस्तु इत्यादि की सत्ता को हम तब शिद्दत से महसूस करते हैं, जब वो हमारे परोक्ष होता है.
बिम्ब-प्रतिबिम्ब से युक्त "दृष्टान्तालंकार" वाली इस आकर्षक रचना हेतु मेरी शुभाशंसा.....
मणि
मनुज जी,
सुंदर रचना .....
सुन्दर अभिव्यक्ति..
बधाई
मनुज जी आपकी कविता मुझे बहुत पसन्द आई
बधाई सुंदर रचना के लिए
मनुज जी,
अस्तित्व विहीन कविता संभवतः प्रकाशन से पूर्व जब मेरे दृष्टिगोचर हुयी तो कई बार पढ़ा सच पूछो तो विशेषाभिव्यक्ति के लिये वर्षों बाद मेरे सामने ऐसी रचना पड़ी है। अपने आप में संपूर्ण किसी भी एक पंक्ति को अकेले उद्धृत करना संभव ही नहीं है। इतनी सशक्त तथा गुंथी हुयी रचना
शुभकामनायें मित्र
मनुज जी कविता का हर बिम्ब सजीव है, बस फिनिशिंग प्वाइंट शायद कुछ और की दरकार लगा रहा है, मेरी अब तक की पढी श्रेष्ट रचनाओं में से एक है ये रचना, आप कलम इसी तरह जादू बिखेरे यही कामना है
Aap sabhi Sahity diggajon ko pranam aur meri is koshish ko sarhane ke liye bahut bahut dhanyawad. meri koshish rahegi ki aap sabhi ki tippaniyon ko dhyan meinm rakh paoon.
Shrikant Mishr जी को तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, आप जैसे कवि को मेरी कोशिश पसंद आई इसके लिए मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ.
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