आँखों को छलकने का मौक़ा दो
कंधे पर सर रखने का मौक़ा दो
दिल में दबे हुए हैं कई तूफ़ान
खामोशी को जुबान होने का मौका दो
लगा है तमाशा हर जगह मौत का
अब तो ज़िंदगी को जीने का मौक़ा दो
गर बने जो आइना यहाँ किसी का वजूद
हर शख्स को सच मे ढालने का मौक़ा दो
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो
जिन्दगी की ज़ंग में देने पड़ेंगे कई इम्तिहान
राम बन के इसे वन में भटकने का मौका दो
दर्द से होने लगी है बोझील ज़िंदगी की साँसे
आस की राहों को रोशन होने का मौक़ा दो!!
कंधे पर सर रखने का मौक़ा दो
दिल में दबे हुए हैं कई तूफ़ान
खामोशी को जुबान होने का मौका दो
लगा है तमाशा हर जगह मौत का
अब तो ज़िंदगी को जीने का मौक़ा दो
गर बने जो आइना यहाँ किसी का वजूद
हर शख्स को सच मे ढालने का मौक़ा दो
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो
जिन्दगी की ज़ंग में देने पड़ेंगे कई इम्तिहान
राम बन के इसे वन में भटकने का मौका दो
दर्द से होने लगी है बोझील ज़िंदगी की साँसे
आस की राहों को रोशन होने का मौक़ा दो!!
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजू जीं,
आपकी कविता पर पहली टिपण्णी कर रहा हूँ...अब आपकी शिक़ायत कुछ कम तो हो ही जायेगी.......
कविता की शुरुआती पंक्तियां बड़ी प्रभावी हैं,,,,
"कंधे पर सर रखने का मौका दो..."...बढ़िया और प्यारा आग्रह है....
"रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो"
ऐसी पंक्तियां बार-बार लिखे जाने की ज़रूरत है....
आपके भाव बहुत विविध और उत्कृष्ट हैं मगर शब्दों में थोड़ा और कसाव हो तो कविता का सौंदर्य कायम रहता है...
मतलब कहीँ-कहीँ लगता है कि कविता पढ़ना छोड़कर हम कोई अच्छी पंक्ति पढ़ रहे हैं..जबकि पूरी कविता में कुछ पंक्तियां अलग से नही उभरनी चाहिए.....शब्दों का चयन भी अच्छा है....
सस्नेह,
निखिल आनंद गिरि
"Rahe na koi mandir aur Gurudwara....Har dil mein Ishwar ko basne ka mauka do..."
"Bachchon ki mutthiyon mein kaid hain kuchh sapne...pariyon ki kahani ko sach hone ka muaka do..."
U know..." Hmmm....main kuchh nahi kahunga..jo in do lines ka meaning samjh jaayega use kuchh kahne ki jarurat hin nahi hai in fact...aisa lagta hai aapne fact nahi apni feelings likhi hain...lagta hai ekdam dil se nikal ke aayi hai bhawna and usko aapne kagaj par utar diya hai....n feelings par comment nahi kiya jata...use mehsoos karte hain...n m feeling ur poem... :)
Bas itna hin kahunga....we want more frm u...! :)
bahut khoob......
hamesha ke tarah....
ये अश्क ये तनहाईया ये दीवानापन ....
मौका दिया था कभी जिन्दगी को हँसने का......
with love...
DREAMER
"बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो"
आशावादी अनुरोध करती ज़िन्दगी से रू-बरु एक खुबसुरत रचना.
आँखों को छलकने का मौक़ा दो
कंधे पर सर रखने का मौक़ा दो
खामोशी को जुबान होने का मौका दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो
पूरी गज़ल अच्छी है, उपर लिखी पंक्तियाँ विषेश पसंद आयीं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर!!
बढ़िया रचना!!
रंजना जी
अच्छा लिखा है । प्रेम के कोमल भाव बहुत सुन्दर रूप में व्यक्त हुए हैं । विशेष रूप से -
आँखों को छलकने का मौक़ा दो
कंधे पर सर रखने का मौक़ा दो
दिल में दबे हुए हैं कई तूफ़ान
खामोशी को जुबान होने का मौका दो
प्यारी सी अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
रंजना जी, आपने एक बार फिर बहुत उम्दा लिखा है ! हम तो आपकी कलम के पहले से ही कायल हैं !
आंखों को छलकने का मौका दो
कंधे पर सर रखने का मौका दो
दिल में दबे हैं कई तूफान
खामोशी को जुबां होने का मौका दो
प्रशंसनीय और उत्कृष्ट ! इस सुंदर प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई ......!
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
--वाह!! खूबसूरत भाव और शानदार संदेश!!
अच्छा लगा यह रचना पढ़ना. बधाई.
सरल और अर्थ पुर्ण है ।
बढ़िया
आवनीश तिवरी
रंजन जी एक बार फ़िर बेहद सुंदर अभिव्यक्ति - इस ग़ज़ल का हर मिसरा एक से बढ़कर एक है , किसी एक को चुन नही सकूँगा, बहुत बहुत बधाई
रंजू जीं,
सुंदर भाव..........
प्यारी सी रचना के लिए
बधाई
सस्नेह
अच्छी नज्म है…
पर और भी बढ़िया हो सकता था…॥
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो
सुंदर पंक्तियाँ हैं रंजू जी। आपके दिल की पुकार सच में कई सारे भाव बयां करती है।
शिल्प को लेकर आपसे इस बार मेरी बहुत भारी शिकायत है। तुकबंदी करने का प्रयास करते-करते आपने कहीं कहीं छंद की जान ले ली है :( । इसे सुधारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
रंजना जी
सदैव की तरह आपकी बहुत सुन्दर रचना है।
लोग आपको प्रेम की कवियत्री के रूप में अनुभव करते हैं।
किन्तु मेरे लिये आपकी यह पंक्तियों विशेष रूप से प्रभावित करती हैं
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
अनेकों शुभकामनायें
वाह जी वाह बहुत अच्छी रचना है कितनी बढिया है दिल की पुकार।।
"रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो"
दिल को छू गई ये पंक्तियां ।
रजंना जी, भावभीनी रचना के लिये बधाई स्वीकार करिये।
रंजना जी एक बात कहूँगा|मैं मार्च के महीने से युग्म को पढ़ रहा हूँ| जब मैं नया-नया था तब से कुछ समय पहले तक आपकी रचनाएँ सिर्फ़ प्रेम विषय पर पढ़ता आया हूँ पर अभी पिछले कुछ समय से जो आपकी कलम से विविध भाव निकल रहे हैं,नितांत उत्कृष्ट हैं|
बधाई देना चाहूँगा इसके लिए आपको |
इन पंक्तियों ने तो दिल ही जीत लिया...
जिन्दगी की ज़ंग में देने पड़ेंगे कई इम्तिहान
राम बन के इसे वन में भटकने का मौका दो
गर बने जो आइना यहाँ किसी का वजूद
हर शख्स को सच मे ढालने का मौक़ा दो
ऐसे ही लिखती रहें बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद भी....
"रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो"
वाह दी',
आनन्द फिर अपने पुराने घर लौट आया ।
काव्य रचना तरोताज़ा सी लगती है, और फिर आपके "आदर्श" में जीने का तरीका वैसे भी सबसे जुदा सा है।
कविता में एक अजीब सी मासूमियत है।
हिन्द-युग्म पर क्लिक तो रोज़ करता हूँ, पर अब वैसी टिप्पणियाँ करने का मन नही करता था, जिसके लिये युग्म ने मुझे पुरस्कृत किया था ।
"कंधे पर सर रखने का मौका दो..." बस फिर क्या है, दो आसूँ का समन्दर मैं भी बहा लूँगा ।
आपकी कविता ने पुनश्च लौटने पर विवश कर दिया ।
आभार,
आर्यमनु, उदयपुर ।
रंजना जी,
निम्न पंक्तियां मुझे बहुत पसन्द आई
आँखों को छलकने का मौक़ा दो
कंधे पर सर रखने का मौक़ा दो
दिल में दबे हुए हैं कई तूफ़ान
खामोशी को जुबान होने का मौका दो
बच्चों की मुट्ठी में क़ैद है सपनो का जहान
परियों की यह कहानी सच होने का मौका दो
जिन्दगी की ज़ंग में देने पड़ेंगे कई इम्तिहान
राम बन के इसे वन में भटकने का मौका दो
रहे ना कोई यहाँ मंदिर-ओ- गुरुद्वारा
हर दिल में ईश्वर को बसने का मौक़ा दो
bahut hi achhi rachna hai.......aapki....
badhai swikare....
बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का जो आपने इस रचना को इतने प्यार से पढ़ा
निखिल जी... जी हाँ अब कुछ शिक़ायत कम हुई आपसे :)
आर्य मनु जी आपका स्वागत हैं हमेशा ही.... अच्छा लगा जान के कि आपको मेरा लिखा पसन्द आया :)
बाकी सबका तहे दिल से शुक्रिया ....यूं ही होंसला बढ़ाते रहे !!
रंजू
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