टॉप १० कविताओं का दौर खत्म हो चुका है। लेकिन उसके बाद की पायदानों पर खड़ी कविताएँ बहुत पीछे नहीं हैं। प्राप्ताकों में मुश्किल से दशमलव के अंकों का अंतर है। आज बारी है ११वीं कविता की (मगर इस पायदान पर कुल तीन कविताएँ हैं, हमें आज एक ही प्रकाशित करना था, तो लकी ड्रा से 'परिवर्तन' को चुना है)
कविता- परिवर्तन
कवि- अजय कुमार आईएएस, पटना (बिहार)
पृथ्वी पर स्वर्ग
उतार लाने जैसे
इन्द्रधनुषी सपनों की
अंतहीन फेहरिस्त
माइक्रोस्कोप लेकर
अतीत का छिद्रान्वेशन
सभी बुराइयों के लिए
औरों पर ठीकरा फोड़ने का
हास्यास्पद प्रयास
इससे दूर नहीं होंगी कमियाँ
न आयेगा विकास
विधवा विलाप से नहीं लौटेगा
बिता हुआ समय
खोया हुआ अवसर
खोयेंगे हम अपनी ऊर्जा
कुछ और बहुमूल्य समय
विकास के दौड़ में
तुम्हारी बस छूट गयी है
समय गवाये बगैर
दौड़ो पकड़ने के लिए
जैसे तुम दौड़ रहे हो
अपने प्राण बचाने के लिए
अन्यथा मिलेगा कुछ नहीं
पिछड़ेपन और विकास के बीच
बढ़ते फासले के सिवा
इस दौड़ में
परिवर्तन से
ज्यादा जरूरी है
इसकी रफ़्तार
अगर चुक गये
तो बनकर रह जाओगे
सशक्तों के लिए
भाजी बनकर
कोसना नहीं है
प्रयास का पर्याय
पटाक्षेप करो
इस हास्य नाटिका के
अंतहीन संस्करण का
समय नहीं है
किसी के पास
आँसुओं से
भरी गाथा के लिए
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ८॰०९६५९०
औसत अंक- ८॰७९८२९५
स्थान- पाँचवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-८, ८॰७९८२९५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ८॰३९९१४७
स्थान- चौथा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता अपने कथ्य की दृष्टि से सामयिक परिस्थितियों पर विफलता के संदर्भ ले कर चली है। प्रतीक इत्यादि की दिशा में प्रयास और अपेक्षित हैं, क्योंकि लाक्षणिक होते-होते पुन: अभिधामूलक हो जाने से प्रभविष्णुता में कसर रह गई है। वर्तनी की त्रुटियों पर श्रम की भी आवश्यकता है।
अंक- ४
स्थान- ग्यारहवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
कोसना नहीं है
प्रयास का पर्याय
पटाक्षेप करो
इस हास्य नाटिका के
अंतहीन संस्करण का
समय नहीं है
किसी के पास
आँसुओं से
भरी गाथा के लिए
अच्छी रचना है। आपकी और भी कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पिछड़ेपन और विकास के बीच
बढ़ते फासले के सिवा
इस दौड़ में
परिवर्तन से
ज्यादा जरूरी है
इसकी रफ़्तार
सुंदर रचना है
अजय जी
आपकी दृष्टि समाज के विकास पर है । आप बहुत सही सोच रखते है । समाज को
यही सोच देनी चाहिए । आपने एक प्रजापति का धर्म निर्वाह किया है । पाठकों की
ओर से आपको बहुत-बहुत बधाई ।
अजय जी,
आपने यह बात सही लिखी है कि विकास की बस पकड़ने के लिए इस प्रकार से दौड़ना होगा जैसे अपने प्राण बचाने के लिए कोई दौड़ता है। हम दौड़ तो रहे हैं, लेकिन शायद आप वाली स्पीड से नहीं। आशा है कुछ लोग आपकी गति पकड़ेंगे।
आगामी प्रतियोगिता के लिए शुभकामनाएँ।
अजय जी,
कविता अच्छी लगी। आपकी और कविताओं क इंतज़ार रहेगा। हाँ अंत से मैं सहमत नही हुँ-
समय नहीं है
किसी के पास
आँसुओं से
भरी गाथा के लिए
आँसू तो खुशी में भी छलक पड़ते हैं।
अजय कुमार जी!
अच्छी रचना है. अंत कुछ और बेहतर की माँग करता है. भविष्य के लिये शुभकामनायें.
अजयजी,
आप जिस पद पर कार्यरत है, वहाँ रचनात्मक कार्य के लिये समय निकाल पाना बेहत मुश्किल है, ऐसे में आप द्वारा कविता लिखना एवं यूनिकवि प्रतियोगिता में हिस्सा लेना आश्चर्यचकित करता है।
आपकी इस अतुकांत आधुनिक कविता से भाव खुलकर सामने आये है, आपकी बात पाठकों तक आसानी से पहूँच रही है।
भविष्य में आपसे और भी उम्दा रचनाओं की अपेक्षा है, उम्मीद हैं कि समय की कमी के बावजूद आपकी रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेगी।
बधाई!!!
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