गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है
कांटे मेरी राहों के हरसूरत मेरे हिस्से में ही आयेंगे
गर इक गुल है मेरे साथ तो जरूर कोई बात तो है
मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है
अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो है
डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में
बेबसी का सबब जिन्दगी के उलझे हुये हालात ही तो हैं
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्दर जी,
पुन: एक सुन्दर गज़ल।
गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है
अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो है
डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में
बेबसी का सबब जिन्दगी के उलझे हुये हालात ही तो हैं
इतनी परिपक्व पंक्तियाँ आप ही लिख सकते थे। बहुत बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत ही सुंदर गजल लगी आपकी यह मोहिंदर जी ..
यह शेर बहुत पसंद आए
मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है
डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में
बेबसी का सबब जिन्दगी के उलझे हुये हालात ही तो हैं
बहुत ख़ूब... बधाई !!
बहुत सुन्दर ।
घुघूती बासूती
मोहिन्दर जी
गज़ल बढ़िया बन पड़ी है । एक-एक शेर कमाल है । आप इस विधा में पारंगत हो चुके हैं ।
मुझे निम्न शेर बहुत पसन्द आए -
गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है
कांटे मेरी राहों के हरसूरत मेरे हिस्से में ही आयेंगे
गर इक गुल है मेरे साथ तो जरूर कोई बात तो है
एक प्यारी सी गज़ल के लिए बधाई ।
मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है
अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो है
अच्छी परिपक्व रचना है। बस गज़ल होते-होते रह गई है( ऎसा मेरा विचार है) । अगर बहर की बात न भी करें तो काफिया का ध्यान तो रखा जाना चाहिए था। अंतिम शेर में आप इससे भी हट गए हैं। मतले की कमी आपके गज़लों में हमेशा मुझे दीखती हैं। कृप्या इस दिशा में थोड़ा प्रयास करें।
रचना में भाव अच्छे हैं। बधाई स्वीकारें।
मोहिन्दर जी,
भाव पसंद आया, बधाई।
डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में
ये बहुत अच्छी लगी।
मोहिन्दर जी!
क्षमा चाहूँगा मगर मैं कम से कम इसे गज़ल नहीं कह सकता. हाँ, कुछ बहुत खूबसूरत अशआर का संग्रह कहा जा सकता है. किसी भी गज़ल के लिये काफ़िया और रदीफ़ मूल ज़रूरत है (बहर को आधुनिकता का तकाज़ा मानकर छोड़ भी दें तो)परंतु आपकी इस रचना में काफ़िया समान नहीं रह पाया है.
भाव की दृष्टि से सभी शेर बहुत अच्छे हैं.
मोहिन्दर जी,
आपने हर एक विधा में अपने-आप को पहले से अधिक पुष्ट किया है। ग़ज़ल का व्याकरण पकड़ने में पता नहीं क्यों आप देर लगा रहे हैं।
मोहिन्दर जी,
व्याकरण की कुछ कमियाँ तो हैं ही साथ ही पिछली कुछ गज़लों में आप भावों के जिस शिखर पर पहुंच गए थे, उससे थोड़ा नीचे रह गए हैं इस बार।
सुंदर ग़ज़ल है मोहिंदर जी, आप की गज़लें लय बढ़ होती हैं गुनगुनाने का मन करता है, सभी शेर बहुत सुंदर बन पड़े हैं बधाई स्वीकार करें
मोहिन्दर जी आप तो सर्वश्रेष्ठ गज़लकार है आपकी रचना में कमी निकालना गलत होगा मगर फ़िर भी माफ़ी चाहूँगी एक गलती नजर आ रही है जैसे इसके पहले मिसरे और दुसरे मिसरे में काफ़िया नही बन रहा इसलिये गज़ल में मत्ला नही है जो कमी अखर रही है
मगर हर शेर बेहद खूबसूरत है गज़ल की हर बात दिल से निकल रही हो जैसे...गाकर बहुत अच्छा लग रहा है...
मै खुश हूँ ए सनम कि तू मेरे पास तो है...
दिल को छू गई हर कड़ी...बहुत-बहुत बधाई
शानू
मोहिन्दरजी,
रचना बहुत ही खूबसूरत लगी, गुनगुनाने में भी मज़ा आ रहा है, भाव भी सुन्दर है... ऐसे में इसे एक खूबसूरत कृति कहने में कोई हर्ज नहीं ;)
मोहिन्दर जी,
एक बार फिर अच्छी गज़ल
"मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है"
आपके रचनायें प्रेरणास्पद होती हैं, सुन्दर लिखा है
सभी शेर बहुत खूबसूरत हैं
सादर
गौरव शुक्ल
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