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Thursday, September 20, 2007

क्या पीयूष दीप राजन की पुकार पर प्रभु आयेंगे


आज प्रतियोगिता से बिलकुल नया चेहरा चुन कर लाये हैं। पीयूष दीप राजन हमारी प्रतियोगिता के लिए नये हैं। इनकी कविता १६वें स्थान पर रही थी। ज्यादा क्या लिखना , कविता सबकुछ कहेगी-

कविता- प्रभु आ जाओ

कवयिता- पीयूष दीप राजन, नई दिल्ली


आज अचल नगरी जैसे,
दुःख भरी आह को झेल रही।
सूने जीवन की छाती पर,
खूनी नृतक बन खेल रही॥

पाखण्ड झूमता पर फैलाये,
गीत-नृत्य सब झूठे राग।
उदार नीतियाँ वर्णित तथ्य,
डगर-डगर धोखे की आग॥

प्रेम-शूल का रूप बन गया,
मिटा गहन मानवता अनुराग।
मानवता खण्डित दर्पण सम,
धन का दंश लगाता आग॥

सभ्यता अस्त दिनकर-दिश की,
छिटक ज्यों छोड़ा पुष्प पराग।
विश्व भाग्य पर फन फैलाये,
चतुर्दिश ज्यों जहरीले नाग॥

श्रम-शान्ति-अफसोस-भ्रान्ति,
जीवन पर पीड़ा का दाग।
अहंकार-उत्पीड़न भयानक,
चतुर्दिश आज विश्व में आग॥

कहीं व्यभिचार स्वदन्त गड़ाये,
रक्त धार रंग लाल चढ़ाये।
एक भेद न शुभ-अशुभ के,
मृत्यु नृत्य नित्य छुप-छुप के॥

आज यहाँ का धर्म अनोखा,
जिससे प्रेम उसी से धोखा।
अपने ही अपनो को छलते,
उन्नति से मनुज की जलते॥

यह गहन अन्धकार मिटाने,
देने जीवन को अमर वरदान।
विश्व की हर जीव शक्ति को,
दे-दो प्रभु शुभ्रता का दान॥

जगत का कण-कण प्रभु कुत्सित,
प्रभु जग का उद्धार करो।
मनुज-मनुज के रक्त का प्यासा,
मनुज हृदय में प्यार भरो॥

हे जीवन रक्षक! हे जीवन दीप!
प्रभु आ जाओ! प्रभु आ जाओ!!
हे मुकुन्द! हे सकल सृष्टि सेतु
प्रभु आ जाओ! प्रभु आ जाओ!!

रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰५, ८॰२०४५४५
औसत अंक- ७॰८५२२७२
स्थान- इक्कसीवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६॰७५, ७॰८५२२७२(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰३०११३६
स्थान- सोलहवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

RAVI KANT का कहना है कि -

पीयूष जी,
अच्छा लिखते हैं।

हे जीवन रक्षक! हे जीवन दीप!
प्रभु आ जाओ! प्रभु आ जाओ!!
हे मुकुन्द! हे सकल सृष्टि सेतु
प्रभु आ जाओ! प्रभु आ जाओ!!

मै सिर्फ़ इतना कहुँगा कि भगवान उन्ही की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता खुद करते हैं।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आपके पास अच्छा शब्दकोष है, आपसे और भी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वर्तमान में चल रहे वीभत्स समाजिक स्वरूप का चित्रण है आपकी कविता में.
कहना चाहूँगा कि समाज हमसे बनता है, वस्तुत: स्वम को बदलने की आवश्यकता है..

हम सुधरेंगे जग सुधरेगा..

अच्छी कृति के लिये
-बधाई स्वीकार करें

शोभा का कहना है कि -

पीयूष जी
कविता अच्छी लिखी है । आपकी भाषा भावों से अधिक प्रभावशाली है । समाज की दशा का चित्रात्मक शैली
में अच्छा प्रयोग है । एक बात पूछना चाहूँगी - क्या प्रभु को बुलाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं ?
जब सबकुछ उसने ही करना है तो हम किस बात पर गर्व करेंगें ? आपको पूजा भले ही लगे मुझे तो ये
परमुखापेक्षिता ही लग रही है । एक सहज अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।

गीता पंडित का कहना है कि -

पीयूष जी,

कविता अच्छी है ।

सहज भाषा ....
सहज भाव ....
अच्छा शब्दकोष ...


बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कविता में यह गुण अवश्य होना चाहिए कि वो पाठक को उसमें निहित भावों से जोड़े, इस कविता में इतना प्रवाह होते हुए भी एक जगह भी मन को नहीं बाँध पाती। ज़रा सोचिएगा।

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