आओ करें एक नयी शुरूआत
इस बिखरी हुई ज़िंदगी की
एक नये अंदाज़ से इसको संवारें
दिल की दीवारों को रंगें
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मों की छत पर
एक खपरैल नया डालें,
फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,
सजाएँ आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सजा लें
रहने न पाए अब कोई भी दरार
देखो, अब यह प्यार का घर है
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी,
कम्पयूटर खोलते ही इतनी सुन्दर, आशावादी और मनोनुकूल रचना पढकर आनंद आ गया।
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मो की छत पर
एक खपरैल नया डाले
सजाए आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सज़ा ले
सार्थक रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आ हा स्वाद आ गया.....एक सतरंगी आशावादी कविता पढ कर.... सचमुच कभी कभी आदमी बीते हुये कडवे पलों को न भुला कर आने वाले सुनहरे पलो को भी निराशा से भर देता है.....
आशाओं से बन्धन बांध, निराशा के बन्धन तोड कर ही सही रूप से इस जीवन को जीया जा सकता है...
एक गजल याद आ गई....
हर तरफ़ फ़ूल ही फ़ूल, जलबे ही जलबे..
सिर्फ़ अहसास की जरूरत है..
बधाई
Toooooooooooooooooooooooo good didi,
amezing,
nice....... i will say great
biti baat ko chhor kr एक नयी शुरूआत krne ko aap ne jis andaaj me prerit kiyaa hai wo kabile taarif hai
"सजाए आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सज़ा लेे"
toooooooooooooooo gud
very very .... very बधाई
:)
फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
काश ये इतना आसान होता रंजना जी
wah g wah kya likha hai aapne mam ......... badi achhi terhain se man ke bhab kagaj per utare hain vry nice........
सुंदर!!
आपकी इस रचना में आशावाद झलक रहा है अर्थात आपने अपनी शब्द संयोजन कला में बदलाव किया है!
अच्छा है यह!!
kavita bahut acchi hai sahayad is liye ki aap ne apne dil se likhi hai................agar nayee shuruaat ho sakti hai to mai bhi shamil honga aap ke sath dene ke liye dhanywad..............
रंजना जी,
बेहद सशक्त कृति! बहुत-बहुत पसंद आई।
फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
रहने न पाए अब कोई भी दरार
देखो, अब यह प्यार का घर है
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!
मन भाव-विभोर हो गया इतनी प्यारी रचना पढ़कर। बधाई।
शब्दों में नयी सी बात है, सच
उपमाओं का प्रचुर प्रयोग
सच में सुन्दर है शब्द-योग
आशाओं के दीपक जलते...
कह देता हूँ चलते चलते...
सच में "एक नयी शुरुआत" है, सच
शब्दों में नयी सी बात है, सच..
रंजना जी
बहुत ही आशावादी और सही सोच को लिए है ये कविता । विशेष रूप से मुझे निम्न पंक्तियाँ अच्छी लगीं -
फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,
एक सही दिशा देने के लिए बहुत-बहुत बधाई । सस्नेह
रंजना जी,
सुन्दर,
आशावादी रचना....
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मो की छत पर
एक खपरैल नया डाले
सजाए आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सज़ा ले
काश ! आसान होता ......
बधाई ।
सस्नेह
वाह रंजना जी,
आपने सभी की शिकायत एक बार में हीं खत्म कर डालीं । मज़ा आ गया। कुछ पंक्तियों जो बहुत पसंद आईं-
दिल की दीवारों को रंगें
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मों की छत पर
एक खपरैल नया डालें,
फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!
एक आशावादी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
"दिल की दीवारों को रंगें
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मों की छत पर
एक खपरैल नया डालें,"
नई शुरूआत की नसीहत देती आपकी ये पंक्तियां प्रेरक हैं.
is baar phir bahut hee gaharee soch aur bahut sundar shabd bhee
Anil
आपकी अलग अन्दाज़ की कविता है रंजना जी। पढ़कर सुखद अनुभूति हुई।
दिल की दीवारों को रंगें
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मों की छत पर
एक खपरैल नया डालें
सजाएँ आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
अच्छी कविता।
mam..... बहुत ही खूबसूरत रचना हे. जिंदगी हमेशा अपनी गति से आगे badti रहती हे. जिंदगी की khoobsurati को देखने के लिए ज़रूरी हे, की आप भी उसके साथ हो लो. आपकी रचना उस khoobsurati का ahsaas dilati हे.
'सजा लें' की पुनरावृत्ति इसके प्रभाव को कम करती है, नहीं तो बहुत बढ़िया कविता बन पड़ी है। रंजना जी खुशी इस बात की है कि आप हर तरह की कविताएँ लिखने का प्रयास कर रही हैं।
bahut khob , bahut hi aachi rachna hai
रंजना जी
आप की रचनाये दिल में उत्तर जाती है, मन में बस जाती है, कोटी कोटी शुभकामनाये
zzzzz2018.6.2
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