इस महीने का यह अंतिम सप्ताह है, प्रतियोगिता की कम से कम २० कविताएँ हमें प्रकाशित भी करनी है। तो, चलिए आगे बढ़ते हैं, १८वीं कविता की बारी आ गई है। इस पायदान पर बिलकुल नया चेहरा हमारे सामने है, इस कविता के रचनाकार कहते हैं कि ये बहुत दिनों से भाग लेने की सोच रहे थे, लेकिन अगस्त महीने में मन बना पाये। आइए मिलवाते हैं आपको-
कविता- आज अचानक फ़िर से
कवयिता- दिव्य प्रकाश दुबे, पुणे
आज अचानक फिर से वो डायरी में यूँ टकरा गये
हो पहली-पहली बार सब कुछ ऐसा किस्सा सुना गये
कोशिश तो की मैंने मगर पन्ना नहीं पलटा गया
ली वक्त ने करवट मगर हमसे नहीं पलटा गया
धुँधले हुये शब्दों ने फिर एक साफ मूरत जोड़ ली
सूखे हुये गुलाब ने एक पल में खुशबू मोड़ ली
लिखे हुये वादे सभी एक पल में जैसे खिल गये
छूटे हुये अरमान सब ख्वाबों से आके मिल गये
सब छोड़ के तुम पास थे
बाहों के अब विश्वास थे
आँखों ने फिर से सींच के तुमसे कही बातें वही
तुमने भी शरमा के फिर धीरे से है हामी भरी
अब वक्त जैसे है नहीं और बस तुम्हारा साथ है
अब स्वर्ग को जाना नहीं जो हाथ तेरा साथ है
फिर हाथ तेरा थामकर
खिड़की से बाहर झाँककर
हमने नयी दुनिया गढ़ी
जिसमें न कोई अंत था
पल-पल में जब वसन्त था
इतने में एक झोंका आया
मुझे एक पल को भरमाया
मैंने रोका पर रुका नहीं
पन्ना भी तो अब टिका नहीं
पन्ना पलटा और आँख खुली
पन्ना पलटा और आँख खुली
और दूरी का अहसास हुआ
दूरी का अह्सास हुआ......
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५५, ८॰१४२८५७
औसत अंक- ८॰३४६४२८
स्थान- ग्यारहवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६, ८॰३४६४२८(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰१७३२१४
स्थान- अठारहवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
दिव्य प्रकाश जी,
इतने में एक झोंका आया
मुझे एक पल को भरमाया
मैंने रोका पर रुका नहीं
पन्ना भी तो अब टिका नहीं
पन्ना पलटा और आँख खुली
पन्ना पलटा और आँख खुली
और दूरी का अहसास हुआ
दूरी का अह्सास हुआ......
कविता के अंत ने सच को उजागर किया है।
अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
bahut sundar kavita hai...waqai mein...behad khubsurat...
' धुँधले हुये शब्दों ने फिर एक साफ मूरत जोड़ ली
सूखे हुये गुलाब ने एक पल में खुशबू मोड़ ली '
likhte rahiye
दिव्य प्रकाश जी,
इतने में एक झोंका आया
मुझे एक पल को भरमाया
मैंने रोका पर रुका नहीं
पन्ना भी तो अब टिका नहीं
अच्छी रचना....
लिखते रहिये....
शुभ-कामनाएँ
बहुत अच्छी रचना प्रवाह बहुत सुंदर पढ़ते पढ़ते खो सा गया मैं, बधाई आपको सुंदर रचना के लिए
दिव्य जी,
माफ़ कीजिएगा आपकी कविता मन के तंतुओं को नहीं छू पाती। इसमें कविता के बाह्य और आंतरिक दोनों तत्वों का सर्वथा आभाव है।
आप पुनः प्रयास करें।
दिव्य जी आप की रचनाओ से में काफी प्रभावित हुई ,मुझे आप की कविताये बहुत अच्छी लगी एक विडिओ भी देखी,"क्या लिखूं" बेहद अच्छी लगी ......
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