अगस्त माह की प्रतियोगिता से हम आज पंद्रहवीं कविता लेकर हाज़िर हुए हैं। कविता के रचयिता डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना ने पिछली बार भी प्रतियोगिता में भाग लिया था और अपनी कविता 'परछाइयों की भीड़ से' की बदौलत चौथा स्थान प्राप्त किया था। आइए पढ़ते हैं-
कविता- रिश्ता
कवयिता- डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना, नई दिल्ली
मौजूँ है ढँका आसमाँ जैसे एक मुसाफ़िर के बसर के लिए
मौजूँ है बुझती हुई शमा जैसे अगवानी में सहर के लिए
उस एक "पल की" यादें ज़रूरी हैं जैसे सारी उमर के लिए
जख्म पुराना ही सही पर जैसे ज़रूरी है शायर के लिए
जिसे सहेज कर रख सकूँ ऐसी यादें नज़र कर जाइएगा
दोस्ती कीजिए या दुश्मनी बस रिश्ते बनाकर जाइएगा
तारीखों में जो नज़र ही न आए वो इतिहास ही नहीं
अंदर जो घुट कर मर जाए वो एहसास ही नहीं
वक्त के साथ जो उम्मीद दफ़्न हो जाए वो रास्तों की तलाश नहीं
जिसके बिना भी जिंदगी चल जाए किसी के आने की आस नहीं
हर जगह आप मिलें बारिश की बूँदे बन बिखर जाइएगा
दोस्ती कीजिए या दुश्मनी बस रिश्ते बनाकर जाइएगा
जिनके पास रोशनी के समुन्दर हों वो दुआ करें कि रात लम्बी हो
जिन्हें लहरों पर भरोसा न हो वो कहें साथ के लिए पगडंडी हो
जो हमेशा गम के मारे हों दुनिया उनके लिए गमगीन हो
खूबसूरती की ख्वाहिश हर सिम्त जिन्हें हर पल उनका हसीन हो
'शैल' के ख्वाबों की ताबीर आप हैं तसव्वुर में ठहर जाइएगा
दोस्ती कीजिए या दुश्मनी बस रिश्ते बनाकर जाइएगा
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰५, ८॰३१२५
औसत अंक- ७॰९०६२५
स्थान- उन्नीसवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७, ७॰९०६२५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰४५३१२५
स्थान- पंद्रहवाँ
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना अच्छी लगी ।
सुन्दर रचना के लिये बधाई. कुछ शेर बहुत पसन्द आये..
जिसे सहेज कर रख सकूँ ऐसी यादें नज़र कर जाइएगा
दोस्ती कीजिए या दुश्मनी बस रिश्ते बनाकर जाइएगा
जिनके पास रोशनी के समुन्दर हों वो दुआ करें कि रात लम्बी हो
जिन्हें लहरों पर भरोसा न हो वो कहें साथ के लिए पगडंडी हो
दोस्ती कीजिए या दुश्मनी बस रिश्ते बनाकर जाइयेगा..
अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
शैलेन्द्र जी बहुत ही प्यारी रचना है।…।भई, हम तो दोस्ती का रिश्ता रखेंगे , इतनी सुन्दर कविता लिखने वाले से कोई दुश्मनी का रिश्ता रख सकता है भला?
शैलेन्द्र जी,
वाह!क्या गज़ब लिखा है! आनंद आ गया।
उस एक "पल की" यादें ज़रूरी हैं जैसे सारी उमर के लिए
जख्म पुराना ही सही पर जैसे ज़रूरी है शायर के लिए
बधाई।
बातें तो इसमें बड़ी-बड़ी हैं लेकिन कविता को कोई भी रस-सुख इससे नहीं मिलता। शिल्प भी ध्यान वांछनीय है।
आप अच्छे कवि हैं, अभ्यास किया कीजिए। आगे के लिए शुभकामनाएँ।
शैलेन्द्र जी,
अच्छी रचना है |
आनंद आया ।
बधाई।
शैलेंद्र जी बहुत अच्छी कविता है, बहुत बहुत बधाई
मुझे कविता कुछ खास नहीं लगी ।
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