धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये
मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से
ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये
सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से
जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये
वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने
मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये
मुशकिल है पहचानना, क्या फ़िंजा में घुल रहा
आज हरएक को बस अपना सर सलामत चाहिये
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्दर जी
नज़्म अच्छी बन पड़ी है । समाज की विषमताओं के प्रति सही प्रतिक्रिया है । मुझे विशेष रूप से निम्न
पंक्तियाँ अच्छी लगीं -धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये ।
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । आज समाज की यही दशा है । एक अच्छी रचना के लिए बधाई ।
वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने
मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये
बहुत सुंदर मोहिंदर जी ...बधाई आपको
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये
ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये
सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से
जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये
आरंभ के तीन शेर जबरदस्त बन पडे हैं, पुन: एक सशक्त प्रस्तुति।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने
मानी बदले हैं शब्दों के, साथ समय की धाराओं के
जान सकें यदि,मान सकें यदि झफ़ड़े सभी खत्म हो लेंगें
दॄष्टि कोण जब विस्तॄत होगा तब होगी निस्सीम समझ भी
तब ये जज़्बे जो दिल में हैं,सारे ही तब सच हो लेंगे
सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से
जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये
वाह मोहिंदर जी सच है तहरीर सच्ची तो बिना खून bahaye भी क्रांति लायी जा सकती है, सभी शेर बहुत अच्छे बन हैं जनाब बधाई स्वीकार करें
मोहिन्दर जी,
खूबसूरत नज़्म है।
धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये
बहुत सही कहा है आपने। वास्तव में समाज को इतनी हिम्मत तो जुटानी ही चाहिए।
धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये'
मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से
ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये
good lines....like the concept
यह मौज़ूदा रामसेतु-बहस पर आपका आकलन भी कही जा सकती है। मुझे पाँचवें में थोड़ा कम मज़ा आया। मगर ऊपर के चारों सच ग्राह्य लगे। बहुत हौले से आपने समाधान सुझाया है। अब नज़्म-तकनीक पर तो अजय जी प्रकाश डालेंगे।
टंकण की गलतियाँ करना कब छोड़ेंगे!
फ़टा- फटा
जुडा- जुड़ा
फ़िंजा- फ़िज़ा
मुशकिल- मुश्किल
जहाँ नुक़ता लगना चाहिए, वहाँ आप नहीं लगाते और जहाँ नहीं लगना चाहिए वहाँ लगाते हैं। जैसे वक़्त के 'क़' में लगाया जाता है। लेकिन आप 'फटा' के 'फ' में लगाये हैं जहाँ नहीं लगता।
इन्हीं पेचीदगियों से बचने के लिए आज के अखबार/मैगज़ीन वालों ने नुक़ता लगाना ही छोड़ दिया है।
मोहिन्दर जी,
अच्छी है ।
धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये
मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से
ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये
सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से
जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये
वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने
मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये
सभी शेर बहुत अच्छे बन हैं |
बधाई
धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज
जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये
मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से
ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये
सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से
जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये
वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने
मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये
जबर्दस्त भाव हैं मोहिन्दर जी। आपके हृदय का गुस्सा अच्छा लगा। शब्दों में बखूबी उतरा है आक्रोश।
बस शिल्प पर ध्यान दें । मैं हर बार हीं आपका सचेत करता हूँ। लेकिन आप तो ...... :)
( इस छोटे की बात आप मानेंगे नहीं, ऎसा लगता है)
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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