tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post4508704847875549794..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: ख्वाब एक जज़बात काशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49719581597207940252007-09-19T16:59:00.000+05:302007-09-19T16:59:00.000+05:30धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाजजो टूटा या फ़टा ...धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज<BR/>जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये<BR/><BR/>मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से<BR/>ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये<BR/><BR/>सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से<BR/>जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये<BR/><BR/>वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने<BR/>मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये<BR/><BR/>जबर्दस्त भाव हैं मोहिन्दर जी। आपके हृदय का गुस्सा अच्छा लगा। शब्दों में बखूबी उतरा है आक्रोश। <BR/>बस शिल्प पर ध्यान दें । मैं हर बार हीं आपका सचेत करता हूँ। लेकिन आप तो ...... :)<BR/>( इस छोटे की बात आप मानेंगे नहीं, ऎसा लगता है)<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64080271169905224972007-09-19T10:43:00.000+05:302007-09-19T10:43:00.000+05:30मोहिन्दर जी,अच्छी है ।धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो क...मोहिन्दर जी,<BR/><BR/>अच्छी है ।<BR/><BR/>धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज<BR/>जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये<BR/><BR/>मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से<BR/>ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये<BR/><BR/>सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से<BR/>जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये<BR/><BR/>वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने<BR/>मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये<BR/><BR/>सभी शेर बहुत अच्छे बन हैं | <BR/><BR/>बधाईगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-25947606745039327202007-09-19T02:25:00.000+05:302007-09-19T02:25:00.000+05:30यह मौज़ूदा रामसेतु-बहस पर आपका आकलन भी कही जा सकती ...यह मौज़ूदा रामसेतु-बहस पर आपका आकलन भी कही जा सकती है। मुझे पाँचवें में थोड़ा कम मज़ा आया। मगर ऊपर के चारों सच ग्राह्य लगे। बहुत हौले से आपने समाधान सुझाया है। अब नज़्म-तकनीक पर तो अजय जी प्रकाश डालेंगे।<BR/><BR/>टंकण की गलतियाँ करना कब छोड़ेंगे!<BR/><BR/>फ़टा- फटा<BR/>जुडा- जुड़ा<BR/>फ़िंजा- फ़िज़ा<BR/>मुशकिल- मुश्किल<BR/><BR/>जहाँ नुक़ता लगना चाहिए, वहाँ आप नहीं लगाते और जहाँ नहीं लगना चाहिए वहाँ लगाते हैं। जैसे वक़्त के 'क़' में लगाया जाता है। लेकिन आप 'फटा' के 'फ' में लगाये हैं जहाँ नहीं लगता।<BR/><BR/>इन्हीं पेचीदगियों से बचने के लिए आज के अखबार/मैगज़ीन वालों ने नुक़ता लगाना ही छोड़ दिया है।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61958119875227254472007-09-18T21:56:00.001+05:302007-09-18T21:56:00.001+05:30धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाजजो टूटा या फ़टा ...धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज<BR/>जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये'<BR/><BR/>मेरे मजहब से जुडा हो, या तेरी जागीर से<BR/>ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये<BR/><BR/>good lines....like the conceptAnupamahttps://www.blogger.com/profile/12917377161456641316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90955860287530064732007-09-18T19:45:00.000+05:302007-09-18T19:45:00.000+05:30मोहिन्दर जी,खूबसूरत नज़्म है।धर्म हो, ईमान हो या फ़ि...मोहिन्दर जी,<BR/>खूबसूरत नज़्म है।<BR/><BR/>धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज<BR/>जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये<BR/><BR/>बहुत सही कहा है आपने। वास्तव में समाज को इतनी हिम्मत तो जुटानी ही चाहिए।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58986180631377351142007-09-18T19:37:00.000+05:302007-09-18T19:37:00.000+05:30सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून सेजो भी हो तहरीर...सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से<BR/>जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये<BR/><BR/>वाह मोहिंदर जी सच है तहरीर सच्ची तो बिना खून bahaye भी क्रांति लायी जा सकती है, सभी शेर बहुत अच्छे बन हैं जनाब बधाई स्वीकार करेंSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85983736110046934152007-09-18T17:26:00.000+05:302007-09-18T17:26:00.000+05:30वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईनेमानी बदले ...वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने<BR/><BR/>मानी बदले हैं शब्दों के, साथ समय की धाराओं के<BR/>जान सकें यदि,मान सकें यदि झफ़ड़े सभी खत्म हो लेंगें<BR/>दॄष्टि कोण जब विस्तॄत होगा तब होगी निस्सीम समझ भी<BR/>तब ये जज़्बे जो दिल में हैं,सारे ही तब सच हो लेंगेराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13823050249787656292007-09-18T17:21:00.000+05:302007-09-18T17:21:00.000+05:30जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहियेना हो सबका भल...जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये<BR/><BR/>ना हो सबका भला तो खिलाफ़त होनी चाहिये<BR/><BR/>सियाही से लिखा हो, या लिखा हो खून से<BR/>जो भी हो तहरीर में, हकीकत होनी चाहिये<BR/><BR/>आरंभ के तीन शेर जबरदस्त बन पडे हैं, पुन: एक सशक्त प्रस्तुति।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78609975886456315102007-09-18T16:59:00.000+05:302007-09-18T16:59:00.000+05:30वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईनेमौसम कोई ह...वक्त के साथ हैं बदलते सब लफ़्जों के माईने<BR/>मौसम कोई हो, दिल में मुहब्बत होनी चाहिये<BR/><BR/><BR/>बहुत सुंदर मोहिंदर जी ...बधाई आपकोरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65389599033830309342007-09-18T15:16:00.000+05:302007-09-18T15:16:00.000+05:30मोहिन्दर जीनज़्म अच्छी बन पड़ी है । समाज की विषमताओ...मोहिन्दर जी<BR/>नज़्म अच्छी बन पड़ी है । समाज की विषमताओं के प्रति सही प्रतिक्रिया है । मुझे विशेष रूप से निम्न <BR/>पंक्तियाँ अच्छी लगीं -धर्म हो, ईमान हो या फ़िर हो कोई समाज<BR/>जो टूटा या फ़टा हो, मरम्मत होनी चाहिये ।<BR/>आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । आज समाज की यही दशा है । एक अच्छी रचना के लिए बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com