काव्य-प्रेमियो,
किन्हीं कारणों से अगस्त माह के यूनिकवि अपनी कविता नहीं पोस्ट कर पाये हैं। अतः उनके स्थान पर प्रतियोगिता से ही दसवीं पायदान की कविता प्रकाशित कर रहे हैं। आशा है आप सबको पसंद आयेगी।
कविता- एक गीत
कवि- संतोष कुमार सिंह, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
एक छोर पर तुम बैठे हो, एक छोर पर हम।
फिर कैसे दूरी हो पाये, हम दोनों की कम।।
तुम्हें चाहिए दान भूमि का, हम से मनमाना।
हमें असीमित प्यार उसी से, तुमने कब जाना।।
हम बाँटें मुस्कानें लेकिन, तुम बाँटो बस गम।
फिर कैसे दूरी हो पाये, हम दोनों की कम।।
राग, द्वेष, नफरत के तुमने, भरे हमेशा रंग।
हम नफरत की गाँठें खोलें, प्रेम-प्रीति के संग।।
कैसे हम मकरन्द सृजेंगे, कुसुम कुचलते तुम।
फिर कैसे दूरी हो पाये, हम दोनों की कम।।
तुम दूजों की गोद बैठ नित, शूल बिछाते हो।
फिर भी हमको सत्य अहिंसा के पथ पाते हो।।
खूब प्यार की दवा पिलाई, पर न हुआ विष कम।
फिर कैसे दूरी हो पाये, हम दोनों की कम।।
मलय समीर गुलाल बिखेरें, बिखरे प्रीति सुगंध।
महाशक्ति बन जायेंगे हम, दोनों हों यदि संग।।
छल प्रपंच में पगे हुए तुम, हम छेड़ें सरगम।
फिर कैसे दूरी हो पाये, हम दोनों की कम।।
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ८॰७४४३१८
औसत अंक- ८॰३७२१५९
स्थान- दसवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७॰५, ८॰३७२१५९(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰९३६०७९
स्थान- छठवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-रचना अच्छी लगी। इस माह में अपने राष्ट्रपरक अर्थ के कारण सामयिक भी बन पड़ी है। शब्द-शक्ति के चमत्कार व भाव में गहनता पर भी और प्रयास किया जाए तो परिपक्वता आने की सम्भावनाएँ जगती हैं।
अंक- ४॰२
स्थान- नौवाँ या दसवाँ
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पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
संतोष जी
आपकी कविता मुझै बहुत अच्छी लगी । विरोधी स्वभाव में सम्मिलन का अच्छा प्रयास है ।
कविता की भाषा बहुत सुन्दर है प्रतीकात्मकता से कविता अधिक प्रभाचशाली हो गई है ।
एक अच्छी सोच देने वाली कविता के लिए बधाई ।
संतोष जी,
आपकी कविता अच्छी लगी।इसमें कोई संशय नहीं है। प्रथम १० में आने के लिये आप बधाई के पात्र हैं।
पर एक बात है, इसी विषय में। यदि यही कविता आप पाकिस्तान को सुनायेंगे, तो क्या उत्तर मिलेगा? मुझे लगता है कि बात बिगड़ जायेगी। पाकिस्तान को ये कविता पसंद नहीं आयेगी।आप एक ऐसी कविता लिख डालें जो दोनों तरफ़ के लोगों को प्रिय लगे। तब शायद दोस्ती की भी उम्मीद नज़र आये। शायद आप भी यही चाहते हैं। क्या कहते हैं?
---तपन शर्मा
why polarized political views....?
संतोष जी,
बधाई। आपके कविता की प्रासंगिकता तो स्वतः सिद्ध है।
मलय समीर गुलाल बिखेरें, बिखरे प्रीति सुगंध।
महाशक्ति बन जायेंगे हम, दोनों हों यदि संग।।
ये भाव विशेष पसंद आया।
apnee mitteese bichhadne ka dukh sabhi ko hota he ..ruuthe hue ko manana bhi to assan nahi....
mahashaktee banjayenge hum
dono ho yadee sang...ye bahut hee achhi lagee
kavita achhi he isme koe sandeh nahi
आप ने एक बहुत ही जव्लंत विषय पर लिखा है और खूब लिखा है, थोड़ा निराशा का भाव है, ये कभी सुधरने वाले नहीं, पहली 10 कविताओं में आने के लिए बधाइ
दुश्मन से, या न समझ पाने वाले विरोधी से भी मैत्री का संदेश इस प्रकार नहीं दिया जा सकता कि उसे गलत बिन्दु पर ही दिखाएँ और खुद को उचित आधार पर। इसलिए इस कविता को भारत पाकिस्तान से आपसी रिश्तों को मज़बूत करने के लिए नहीं सुना सकता।
गीत की दृष्टि से बढ़िया है। अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।
संतोष जी!
गीत की दष्टि से रचना अच्छी है. बाकी अन्य साथियों ने पहले ही कह दिया है. भविष्य के लिये शुभकामनायें!
आपके भीतर एक प्रभावी गीतकार है। बहुत सुन्दर कृति।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सन्तोष पूर्ण ही नही जोशीली रचना है मै एसा ही कहूँगी आपको बधाई १० में आप चुने गये है...यह कामयाबी की प्रथम सीड़ी है आपके लिये...
शानू
मलय समीर गुलाल बिखेरें, बिखरे प्रीति सुगंध।
महाशक्ति बन जायेंगे हम, दोनों हों यदि संग।।
सुन्दर भाव, काश ऐसा हो सके!
बधाई!!!
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