इस सप्ताह की शुरूआत हम कवयित्री सुनीता यादव की एक बेहद सशक्त कविता से करने जा रहे हैं। इस कविता के माध्यम से इन्होंने हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के अगस्त अंक में भाग लिया था, तथा नौवें स्थान पर बनी रही थीं।
कविता- पंचाक्षर मंत्र
कवयित्री- सुनीता यादव, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
हे कवि!
किसी भयंकर मतवाले बादलों के गर्जन सदृश
मुझे सुनायी दे रहा है
कहीं से यंत्रणा का कारुण्य संगीत.....
तुम एक बार आ जाओ
यहाँ कोमल हरी घास नहीं
खुशियों की झंकार नहीं
कृष्ण की माया भी नहीं
है तो अशेष करुणा
देखा है कभी?
चाँदनी रात - सागर का किनारा - प्लेटफार्म
गलियाँ - अंधकार गृह?
क्यों भर गया चारों तरफ
पुण्य के बदले पाप का संकेत?
हँसी के बदले
रौंदा हुए
सद्यस्नात मुलायम गुलाबी कपोलें...
स्नेह प्रेम के स्थान पर
धर्षण के लाल आक्टोपस!
आज भी प्रभुत्व की पराकाष्ठा प्रतिहिंसा की आग में
सृष्टि त्राहि-त्राहि मचा रही है
हे अनसुने.... अजनबी....
भग्न कोणार्क की शिला भेदती तूर्यनाद
आज भी चकित हतप्रभ!
हाँ, अन्न की चीख प्रतिध्वनित होकर फिर खो जाती है
ये समाज हमेशा की तरह
अभिनय करता है
और... जीने का आशादीप?
अचानक हँसने लगता है
खुले हृदय से! हाहाहाहा.....
मानो कान के पास आकर कोई धीरे से कहता है....
युद्धखोर पृथ्वी के तुम हो आतंकित मानव!
इसलिये कवि!
आज कोई लड़ना नहीं चाहता राजरास्ते पर
सुनना नहीं चाहता
यंत्रणा से भरी कराहती आवाज
असंख्य नारियों की व्याकुल चीत्कार..
इसलिये मैं भी आ रही हूँ
दो बूँद पश्चाताप के आँसू लिये
पंचाक्षर मंत्र जपते हुये
अभावनतन, दुर्नीति दर्शन, क्षुधा और तृष्णा का!
रिज़ल्ट-कार्ड
--------------------------------------------------------------------------------
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰२५, ९॰५
औसत अंक- ९॰३७५
स्थान- दूसरा
--------------------------------------------------------------------------------
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-९॰२५, ९॰३७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ९॰३१२५
स्थान- पहला
--------------------------------------------------------------------------------
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-शब्दों व अर्थ में परस्पर तादात्म्य का अभाव है। चौंकाने वाले प्रयोग सार्थक व रचना के प्रभाव में वृद्धि करने वाले हों तो ही उनका चयन किया जाना चाहिए। नए शब्द गढ़ने के लोभ ने सब गड्डमड्ड कर दिया है। भाषा व भाव दोनों पर श्रम करें।
अंक- ४॰२
स्थान- नौवाँ या दसवाँ
--------------------------------------------------------------------------------
पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
--------------------------------------------------------------------------------
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम एक बार आ जाओ
यहाँ कोमल हरी घास नहीं
खुशियों की झंकार नहीं
कृष्ण की माया भी नहीं
है तो अशेष करुणा
बहुत सुन्दर कविता किन्तु,पंचाक्षरी के लिए कवि को और प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।
सुनीता जी
आपकी कविता पढ़कर लगता है कि आप अपने समाज के प्रति काफी संवेदन शील हैं ।
पंचाक्षरी का प्रयोग भी काफी प्रभावित करने वाला है । किन्तु कहीं-कहीं पलायन का स्वर
भी ध्वनित हो रहा है । अच्छे प्रयोग किए हैं । बधाई ।
सुनीता जी,
सुन्दर कविता के लिए बधाई।
ये समाज हमेशा की तरह
अभिनय करता है
और... जीने का आशादीप?
अचानक हँसने लगता है
खुले हृदय से! हाहाहाहा.....
मानो कान के पास आकर कोई धीरे से कहता है....
युद्धखोर पृथ्वी के तुम हो आतंकित मानव!
मार्मिक पंक्तियाँ हैं।
कविता सच में बहुत सशक्त है सुनीता जी।
भाव और यथानुरूप आपके शब्दों का चयन इसे और खूबसूरत बना रहा है।
इसलिये कवि!
आज कोई लड़ना नहीं चाहता राजरास्ते पर
सुनना नहीं चाहता
यंत्रणा से भरी कराहती आवाज
असंख्य नारियों की व्याकुल चीत्कार..
इसलिये मैं भी आ रही हूँ
दो बूँद पश्चाताप के आँसू लिये
पंचाक्षर मंत्र जपते हुये
अभावनतन, दुर्नीति दर्शन, क्षुधा और तृष्णा का!
शुभकामनाएँ।
kavita kee anteem panktee me abhav he abhavatan nahi he....
hansee k badle raunde hue....
meree pehlee koshish ko aap sabhi ne saraha...isliye mein sabhi ko vinit dhanyavad gyapan kartee hun...
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि कविता नये प्रतिमानों , विचारों, उद्देश्यों के साथ आती है, हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि उदासीन होते जा रहे मानव को पुनः सोचने पर विवश करती है।
आशीष जी से मैं सहमत हूँ कि कवयित्री को पंचाक्षरी के लिए थोड़ी और प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। अभी तो ठीक से भूमिका भी नहीं बन पाई थी, दुनिया की दुर्गति ठीक से दीख भी नहीं पाई थी कि देवी पंचाक्षरी के साथ पधार गईं।
सुनीता जी! कविता अच्छी लगी, यद्यपि अभी सुधार की काफी गुंज़ाइश है. वर्तनी की गलतियों का भी ध्यान रखें. भविष्य के लिये शुभकामनायें!
प्रभावी रचना। शुभकामनायें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
हँसी के बदले
रौंदा हुए
सद्यस्नात मुलायम गुलाबी कपोलें...
स्नेह प्रेम के स्थान पर
धर्षण के लाल आक्टोपस!
और... जीने का आशादीप?
अचानक हँसने लगता है
खुले हृदय से! हाहाहाहा.....
मानो कान के पास आकर कोई धीरे से कहता है....
युद्धखोर पृथ्वी के तुम हो आतंकित मानव!
पंचाक्षर मंत्र जपते हुये
अभावनतन, दुर्नीति दर्शन, क्षुधा और तृष्णा का!
रचना मुझे अच्छी लगी। सुनीता जी, बधाई स्वीकारें।
वाह!
बहुत ही खूबसूरत पंचाक्षर मंत्र!
तुम एक बार आ जाओ
यहाँ कोमल हरी घास नहीं
खुशियों की झंकार नहीं
कृष्ण की माया भी नहीं
है तो अशेष करुणा
बहुत-बहुत बधाई!!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)