डॉक्टर,
रहम!
फीस कम कर लो ,
हम इतने पैसे नहीं दे सकते ,
भगवान से डरो,
मेरी बुधिया का इलाज़ कर दो |
वो रो रही है ..
पास में दस साल की छुटकी ,
खड़ी है,सूबक रही है !
"अम्मा ,जीजी मर जाएगी ?
ये देखो ,कुछ बोल ही नहीं रही है,
मुझसे ग़ुस्सा हो जीजी ?
बोलो ना..
अब मैं तुम्हारे हिस्से का भात नहीं खाऊंगी ,
जीजी सच ,
नये कपड़ों के लिए भी तुझे नहीं सताऊँगी |
बोल ना ,
अम्मा देख ,
लगता है इसको आज काम पर नहीं जाना ,
तभी नाटक कर रही है !
तूने कल डाँटा था ना ,
देख अभी तक भूकड़ कर बैठी है !
बुधिया ...
परसों से ज्वर आ रहा था ,
आज बिगड़ गया ,
शायद मलेरिया के मच्छर ने काटा था |
बाप तो दारूख़ोर है !
पड़ा होगा कहीं .......
नाली में सुअरो के साथ ,
उन्ही के जैसा तो है वो !
अरे नहीं-नहीं !
वो तो फिर भी गंदगी साफ़ करते हैं ,
पर यह !
यह गंदगी फैलाता है ,
बेटी की कमाई दारू में उड़ाता है |
इसको सुअर बोलो ,
तो साला सुअर भी एक बार लजाता है |
बीवी अपाहिज़,चल नही सकती !
एक्सीडेंट के पहले मज़े में था वो ,
दो कमाने वाले थे ना ,
बीवी और बेटी !
एक बोतल रोज़ ही आ जाती थी ,
सारी रात दारू के अड्डे पर कट जाती थी |
ख़ैर अब पीने के बांदे हैं ,
बस बुधिया ही कमाती है ना !
बुधिया !
उम्र-तेरह साल,रंग-साँवला,
बदन भरा-भरा,आँखें-काली ,
और उनमे सपनों की लाशों का जमावड़ा !
सुबह से घरों में काम ,
बर्तन,झाड़ू,पोंछा ,
करते-करते मुरझा गया,
बचपन का पौधा !
यौवन की उमंगों के लिए दिल में जगह ही नहीं ,
वहाँ तो टीस है मज़बूरी और झुंझलाहट ,
बापू पूरे पैसे दारू में उड़ा देता है ,
छुटकी के कपड़े ढंग के नहीं !
स्कूल में मास्टर उस पर चिल्ला देता है !
छुटकी घर आकर चीखती है ,
बुधिया बर्तन धोते-धोते ,
कुछ सोचती है,अक्सर रोती है |
उसके अरमानों को धो डालती है मज़बूरी की बौछार ,
जैसे बर्तन में लगी हुई जूठन !
जैसे देश की रक्षा को तत्पर ,
सैनिकों की पल्टन ,
वैसे ही परिवार के लिए बुधिया |
बुधिया आज बीमार है ,
तीन दिन से कुछ खाया ही नही गया ,
पड़ी है बुख़ार में ,
डाक्टर कहता है,दो घंटे में मर जाएगी !
ग्लुकोज़ की बोतल चढ़ना है ,
अम्मा के पास पैसे नहीं ,
दो घंटे की मोहलत ,
एक में बदल जाएगी !
बुधिया मर गयी ,
तो अच्छा है,उसके लिए ,
बेचारी को मुक्ति मिल जाएगी !
पर छुटकी.....
छूट जाएगा सरकारी स्कूल ,
वो अब काम पर जाएगी !
नहीं-नहीं,वो ऐसा नहीं कर पाएगी
सिर्फ़ एक जोड़ कपड़े ही हैं उसके पास ,
ऊपर से कुर्ती फटी हुई ....
घर में तो अंदर ही रहती है ,
काम पर कैसे जाए !
यह दुविधा बाल-मन को कचोटती हुई !
"अम्मा,जीजी मर जाएगी ,
तो उसे जला देंगे ना "
डाक्टर अंकल ,
मेरी एक बात सुन लोगे ?
मुझ पर एक रहम कर दोगे ?
मैं काम पर कैसे जाऊंगी !
अम्मा के लिए रोटी,बापू के लिए दारू ,
कहाँ से लाऊंगी !
मेरे पास कपड़े नही हैं !
जीजी ने जो पहने हैं ,
वो पूरे साबुत हैं अच्छे हैं !
आप मुझ पर एक एहसान कर देना ,
मेरा बस एक छोटा सा क़ाम कर देना ,
सच!मैं सब कर लूंगी ,
सबको संभाल लूंगी ,
बस जब जीजी मर जाए ,
तो उसके कपड़े उतार कर,
चुपकें से..
मुझे दे देना " !
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
17 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपुल जी...
क्या कहूँ..
आपकी रचना ने बहुत सोच में डाल दिया है..
बहुत मार्मिक रचना है..
भाव ऐसे हैं कि रोने को विवश किये देते हैं..
रचना ने मुझे पूरी तरह प्रभावित किया है...
अम्मा,जीजी मर जाएगी ,
तो उसे जला देंगे ना "
डाक्टर अंकल ,
मेरी एक बात सुन लोगे ?
मुझ पर एक रहम कर दोगे ?
मैं काम पर कैसे जाऊंगी !
अम्मा के लिए रोटी,बापू के लिए दारू ,
कहाँ से लाऊंगी !
मेरे पास कपड़े नही हैं !
जीजी ने जो पहने हैं ,
वो पूरे साबुत हैं अच्छे हैं !
आप मुझ पर एक एहसान कर देना ,
मेरा बस एक छोटा सा क़ाम कर देना ,
सच!मैं सब कर लूंगी ,
सबको संभाल लूंगी ,
बस जब जीजी मर जाए ,
तो उसके कपड़े उतार कर,
चुपकें से..
मुझे दे देना " !
अब इस मार्मिकता में कोई दोष निकालने का साहस मैं नहीं जुटा सकता..
रचना हर द्रष्टि से बेहतरीन है..
बहुत बहुत बधाई..
और धन्यवाद ऐसी रचना के लिये
आभार.
उफ़!! बहुत ही मार्मिक लिख दिया है आपने
एक कठोर सच हो पढ़ते हुए आँखे नम हो गयी
भाव को यूँ सुंदर कविता में पीरोने के लिए
बधाई..
विपुल कविता जितनी लंबी है उतनी ही अच्छी भी है
इस बार लंबी छलांग ली है तुमने । बड़ी ही असर करने वाली और हृदयविदारक कविता लिखी है ।
बस इसी तरह लेखनी में सुधार करते जाओ ।
साधुवाद
मैं जो पिछली कई कविताओं से तुम्हारी कठोर आलोचना कर रहा था, वह इसी कविता की तलाश में थी। मुझे पता था कि तुम जब यह लिख सकते हो तो वह सब क्यों लिख रहे हो?
कविता भावपूर्ण है, लम्बी है फिर भी पाठक को जोड़े रखती है। बुधिया की वेदना, पढ़ते हुए दिल में उतर जाती है।
कविता का सबसे मजबूत पक्ष है कि अंत बहुत वेदनामयी है और झकझोर देता है।
बस जब जीजी मर जाए ,
तो उसके कपड़े उतार कर,
चुपकें से..
मुझे दे देना
काश, तुम्हारी बुधिया न मरे और फिर जिये तो लाश बनकर नहीं, ज़िन्दा इंसानों की तरह जी पाए।
विपुल
बहुत ही अच्छी किन्तु दर्द भरी कविता है । जानती हूँ कि यह सच्चाई है ।
आपने इसको अपनी कविता में स्थान दिया । बहुत अच्छा किया ।
एक यथार्थ का वर्णन आँखों में आँसू तो लाता है साथ ही समाज की
विषम स्थिति की ओर भी इंगित करता है । यथार्थ चित्रण की इतनी
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
कहने को कुछ भी नही बचा है। बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है और आख़िरी की चार लाईने जिसने अन्दर तक हमे झिंझोड़ दिया ।
विपुल जी , अंदर तक झकझोर कर रख दिया है आपने। बड़ी हीं मार्मिक घटना का वर्णन किया है आपने। और कविता का अंत तो मानो रूला देता है।
हमारे चारों ओर समाज में ऎसा हीं तो होता रहता है।जाने कब बुधिया जी पाएगी और कब अपने परिवार के दुख-दर्द को कंधा दे पाएगी। बस इसी भरोसे हजारों बुधिया घुट-घुट कर मर रहीं हैं।
आपसे ऎसी हीं रचना की उम्मीद थी। बस कलम में सुधार लाते रहिए, चिंगारी तो है हीं कभी न कभी जवालामुखी भी बन जाएगी।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
mazaa aa gayaa vipul |
aaj tak tumhare muh se college men hee kavitaa sunee thee par sirf pyaar mohabbat walee |aaj aisee kavita padh kar garv ho rahaa hai kee u r my frnd
mazaa aa gaya dost
keep writting...........
वाह विपुल | बड़ी ही मार्मिक कविता है सच में रुला दिया इसने | यथार्थ का सजीव चित्रण |
वैसे बड़े दिनो बाद तुम्हारी लेखनी से कुछ जीवंत निकला है यह बात मैं तुम्हारा रूम मेट होने के कारण भली भाँति जानता हूँ
वैसे टिप्पणी करना मुझे पसंद नही ना ही कुछ ज़्यादा कविता पढ़ना फिर भी तुम्हारी इस कविता को पढ़ कर मैं यह सब लिख रहा हूँ यही बड़ी बात है
अंत तो मार्मिक है ही परंतु यह बिंब भी अच्छा लगा "बर्तन में लगी हुई जूठन"
मार्मिक, मर्मस्पर्शी, मन को हिला देने वाली, झकझोर देने वाली..ये सभी शब्द इस कविता के लिये सभी गुणी लोग कह चुके हैं..शेष कुछ अब बचता नहीं है।
ऐसी कवितायें आपकी कलम लिखती रहे और समाज का आईना बनें यही आशा है..
धन्यवाद,
तपन शर्मा
विपुल जी,
आपकी कविता तो पूरे दृश्य को जीवंत बना देती है।
डाक्टर अंकल ,
मेरी एक बात सुन लोगे ?
मुझ पर एक रहम कर दोगे ?
मैं काम पर कैसे जाऊंगी !
अम्मा के लिए रोटी,बापू के लिए दारू ,
कहाँ से लाऊंगी !
मेरे पास कपड़े नही हैं !
जीजी ने जो पहने हैं ,
वो पूरे साबुत हैं अच्छे हैं !
आप मुझ पर एक एहसान कर देना ,
मेरा बस एक छोटा सा क़ाम कर देना ,
सच!मैं सब कर लूंगी ,
सबको संभाल लूंगी ,
बस जब जीजी मर जाए ,
तो उसके कपड़े उतार कर,
चुपकें से..
मुझे दे देना " !
आँसूओं को निमन्त्रण दे रही हैं ये पंक्तियाँ।
विपुल जी!
ओह्! कैसा सच लिख दिया आपने?
कड़वा तो होना ही था,मर्म बेध गया-दृश्य चेतन हुआ तो वाणी अवरुद्ध हो गयी
लेकिन मौन रहना भी संभव नहीं हो पाया
मर्मांतक लेखन के लिये लेखनी को नमन.
प्रवीण पंडित
विपुलजी,
बहुत ही मार्मिक रचना है, दृश्य जैसे-जैसे उभरता है, मर्म भी बढ़ता जाता है।
अम्मा,जीजी मर जाएगी...
सवाल में छूपी मासूमियत दिल को छू लेती है। मगर जब आगे बढ़ा तो...
सच!मैं सब कर लूंगी ,
सबको संभाल लूंगी ,
बस जब जीजी मर जाए ,
तो उसके कपड़े उतार कर,
चुपकें से..
मुझे दे देना...
प्रगतिशील भारत में आज भी BPL रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवारों की कमी नहीं है, ऐसे मैं नन्हें द्वारा कहें शब्द दिल को कचोट लेते है।
सच में विपुल, दृश्य से जो दर्द पैदा होता है उसे हु-ब-हु शब्दों में पिरो लेने की कला तुममे हैं।
उत्कृष्ट रचना, बधाई स्वीकार करें।
kya kahoon yaar..........vipul wakai mein kya kavita likhi hai....
really iam shocked that it's written by u.......how emotional
now i should say......PROUD to be ur friend.......
all the best.
god bless u....
NEHA
vipul g
apki budhiya nhi mregi.
apki klm me vo sanjivni hai.mujhe ykin hai k ap use jila lenge....
विपुल जी,
आपकी यह कविता मुझे 'बुधिया की विनती' से भी ज्यादा बढ़िया लगी। इस कविता में पाठक खुद को उस माहौल में शामिल हो चुका पाता है। रौंगटे खड़े कर देने वाल सच आपने संप्रेषित किया है। आपकी कलम बुधिया की तरह की सभी मजबूर लड़कियों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करती है।
आपका एक बिम्ब तो बहुत अनूठा लगा-
आँखें-काली ,
और उनमे सपनों की लाशों का जमावड़ा ।
लगे रहिए।
मैने जब पहले पहल इस कविता को देखा ...(पढ़ा नही) तब सोचा इतनी बड़ी कविता है बाद मे पड़ूँगा........
और यहाँ मैने तुम्हारी काबिलियत को पहचानने मे महान भूल की............
मै ज़्यादा तारीफ़ नही क्ृूँगा क्यूँकी वो तुम फ़ोन पर सुन चुके हो....
मै तुम्हारी पिछली कविताओं को देखकर यह भी नही कहूँगा कि तुमने यह कविता कहीं सेचुराई है हा हा
क्यूँकी यह तो बुधिया का ही अनवरत रूप है और त्महारे दर्द और दुनिया को देखने के नज़रिए का भी
यह कविता इतनी पर्फेक्ट है की इसे पड़ते हुए मै इसे तुम्हारी आँखों से देख रहा था...........
बिंब
शिल्प
और भावो की दृष्टी से तो.....यह कविता बहुत से महान कवियो की कविताओं को भी धूल छटाती प्रतीत होती है
और क्या कहूँ ....तुम पास होते तो गले कर बहुत रोता कि तुम्हारे अंदर कितना मर्म चुपा हुआ है
मैने तुम्हे कभी इस नज़र से नही देखा
यह एक महान लिखनी कि महान कविता है.....
i realy proud to b ur frnd dude
और कुछ नही....
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