नींद
परत दर परत
आँखों पर नींद
चढ़ने लगी
साँसें धीमी
और फिर लंबी होती गई ।
वह नींद की दुनिया में
सपने ढूँढ़ रहा होगा ।
थकान अपना बोझ
हल्का कर रहा होगा ।
कल फिर
नया सफर है
जागते हुए ।
डर
अंधकार के सागर से
तैर कर पार आई हूँ
अंधियारे की संभावित खाई
क्या डराएगी मुझे ?
आँसू
रोक रखी थी
आँखों में
उन बूँदों को
बड़ी मजबूत बाँध से
कुछ बूँदें ही हैं तो क्या ?
जज़्बात का दरिया है …
जो छलक गई बूँदें
तो एक-एक बूँद
एक तेज़ धार बन जाएगी
और हर बाँध निरर्थक ।
- सीमा कुमार
२००७
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी
अच्छा लिखा है आपने । कम शब्दों में अधिक भावों को व्यक्त करने की कला में
आप भी पारंगत हो गई हैं । बधाई ।
लघु जीवन में बहुत कुछ जाना है ऐसा लगता है मुझे. शायद जीवन काफ़ी कष्ट्दायी रहा होगा. जब मन सन्सार से निराश होता है तब ही उस प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास करता है. आप उसके निकट हैं . मुबारक हो
सीमाजी,
राजीवजी, तन्हाजी, गौरवजी के बाद आप भी क्षणिकाओं में, क्या बात है!
तीनों की क्षणिकाएँ उम्दा है, कम शब्दों में सागर समेट लाने की कला में आप भी उस्ताद है, बधाई!!!
तीनों बेहतरीन हैं। यह विषेश पसंद आयी:
रोक रखी थी
आँखों में
उन बूँदों को
बड़ी मजबूत बाँध से
कुछ बूँदें ही हैं तो क्या ?
जज़्बात का दरिया है …
जो छलक गई बूँदें
तो एक-एक बूँद
एक तेज़ धार बन जाएगी
और हर बाँध निरर्थक ।
बहुत सशक्त कथ्य है, इसका अनुभव कर कविता का आनंद आ गया।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सीमा जी,
बिल्कुल 'गागर में सागर', साथ ही प्रभावशाली प्रस्तुति! वाह! वाह!!
पेश किए विषय और प्रयोग किए गए बिम्बो की अवधारणा निश्चित रूप से सराहनीय है और कवियित्री जी को इसके लिए ढ़ेरो बधाईयाँ।
पर इन रचनाओं को और भी सशक्त बनाया जा सकता था ,अगर इसमे से कुछ शब्द हटा कर विषयानुरूप रहस्यवादिता (requisite mysticism)को यहाँ छाने दिया जाय,जिससे पाठक को सोचने के लिए एक खुला आस्मा मिले।
जैसे-
(१)
"परत दर परत/नींद
चढ़ने लगी।
साँसें धीमी....
लंबी होती गई ।
वह/
सपने ढूँढ़ रहा होगा...
बोझ /
हल्की हो रही होगी...।
कल
नया सफर है
जागते हुए ।"
(२)
"अंधकार के सागर से
तैर कर पार आई हूँ
अब अंधेरा
क्या डराएगा मुझे ?"
(३)
"रोक रखी थी/
बूँदों को/
बड़ी मजबूत बाँध से।
कुछ ही हैं तो क्या ?
जो छलक गई/
हर बूँद
एक तेज़ धार बन जाएगी
और हर बाँध निरर्थक।"
रचनाओ को साथ यूँ छेडछाड़ करना मेरी मजबूरी थी;वरना अपनी बात मै समझा नही पाता। अपने अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूँ।
साभार,
श्रवण
सार्थक प्रयास है सीमा जी, लेकिन क्षणिकाएँ जिस आश्चर्य की प्रतीक्षा करवाती हैं, वह नहीं आ पाया है।
आँसू मुझे सबसे अच्छी लगी।
और हर बाँध निरर्थक...में बहुत नयापन है।
प्रतीक्षा रहेगी।
रोक रखी थी
आँखों में
उन बूँदों को
बड़ी मजबूत बाँध से
कुछ बूँदें ही हैं तो क्या ?
जज़्बात का दरिया है …
जो छलक गई बूँदें
तो एक-एक बूँद
एक तेज़ धार बन जाएगी
और हर बाँध निरर्थक ।
सीमा जी,तीनों क्षणिकाएँ बेहतरीन हैं।
bhaav acchen hain lekin pravaah main kai jagah avarodh hai. hosake to inhe sudharen.
सीमा जी,
अच्छा लिखा है.
रोक रखी थी
आँखों में
उन बूँदों को
बड़ी मजबूत बाँध से
कुछ बूँदें ही हैं तो क्या ?
जज़्बात का दरिया है …
जो छलक गई बूँदें
तो एक-एक बूँद
एक तेज़ धार बन जाएगी
और हर बाँध निरर्थक ।
इतने कम शब्दों मे इतना कुछ कह देना चमत्कारिक है.
सीमा जी 'आँसू ' ने प्रभावित किया ।
तीनो क्षणिकायें बेहतरीन हैं किंतु आँसु मुझे अधिक पसंद आयी।
सीमा जी!
भाव हमेशा की तरह बहुत सुंदर हैं, परंतु अभी आपको इस विधा में और मेहनत की ज़रूरत है. क्षणिकायें कुछ और संक्षिप्त होनी चाहिये थीं. प्रयास ज़ारी रखें.
लोग इन्हें क्षणिकाएँ कह रहे हैं। अगर क्षणिकाएँ हैं तो बहुत लम्बी-लम्बी हैं, और साधने की आवश्यकता पड़ेंगी। लेकिन ये कविता का अभीष्ट पूरा करती हैं। सोच बिलकुल नई है जिसका कविता में हमेशा स्वागत करने की परम्परा है। आपने नींद, डर और आँसू तीनों की नई व्याख्या की है।
आप सभी को टिप्पणियों के लिए धन्यवाद । कुछ लोगों ने इन्हें क्षणिकाऎँ कहा है । वैसे मैंने ऐसा सोचकर तो नही लिखा था । छोटी-छॊटी थी इसलिए तीन एक साथ पोस्ट किया । क्षणिकाओं के रूप में टिप्पणियों से भी जानकारी प्राप्त हुई .. उसके लिए धन्यवाद ।
श्रवण जी, आपने इतना समय दिया और फिर माफी भी माँग रहे हैं ! आपको तो मैं धन्यवाद करना चाहूँगी । रहस्यवादिता वाली बात विचारणीय है । आगे से लिखते समय धान में जरूर रखूँगी ।
मार्गदर्शन करते रहें ।
धन्यवाद,
सीमा कुमार
एक और गलती है जो सुधार करना चाहूँगी :
"थकान अपना बोझ
हल्का कर रही होगी ।"
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नींद
परत दर परत
आँखों पर नींद
चढ़ने लगी
साँसें धीमी
और फिर लंबी होती गई ।
वह नींद की दुनिया में
सपने ढूँढ़ रहा होगा ।
थकान अपना बोझ
हल्का कर रही होगी ।
कल फिर
नया सफर है
जागते हुए ।
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- सीमा कुमार
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