ये हँसी नहीं मेरे दिल का दर्द है।
हर एक साँस मेरी आज सर्द है।।
छुपाया है हर एक आँसू आँखों में,
न देख पाये ज़माना बड़ा बेदर्द है।
है साफ आइने सा आज भी दिल,
कतरा तलक जम न सकी गर्द है।
बदसुलूकी की ये सजा है मिली,
दिल है गमगीन और चेहरा ज़र्द है।
साफ समझे याकि दिल का काला,
हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।
कभी समझाया जो वाइज़ बनकर,
ईनाम में नाम दिया 'आवारागर्द' है।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी,
"ये हँसी नहीं मेरे दिल का दर्द है" इस पंक्ति की गहराई को आपने पूरी गज़ल में बरकरार रखा है। कई शेर बहुर सुन्दर बन पडे हैं जैसे:
छुपाया है हर एक आँसू आँखों में,
न देख पाये ज़माना बड़ा बेदर्द है।
साफ समझे याकि दिल का काला,
हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंकज जी,
सुन्दर भाव हैं।
ये हँसी नहीं मेरे दिल का दर्द है।
हर एक साँस मेरी आज सर्द है।।
साफ समझे याकि दिल का काला,
हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।
ये शेर मन को छू गये।
छुपाया है हर एक आँसू आँखों में,
न देख पाये ज़माना बड़ा बेदर्द है।
पकंज जी बेहतरीन रचना
आप दिल से लिखते हैं वैसे भी कविता दिमाग से नहीं दिल से ही लिखी जाती है
बदसुलूकी की ये सजा है मिली,
दिल है गमगीन और चेहरा ज़र्द है।
साफ समझे याकि दिल का काला,
हर एक राज़ तेरे सामने बेपर्द है।
वाह वाह!! बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ..पंकज जी
पंकज जी!
गज़ल अच्छी है मगर आपकी ही कुछ बेहतरीन गज़लों के सामने हल्की पड़ जाती है. आपने इस गज़ल में हर शेर का एक ही विषय रखा है. यह गज़ल की विधा में ज़रूरी तो नहीं है, पर जब आपने एक ही विषय पर लिखा है तो कुछ जगह विषय से भटकाव इसके प्रभाव को कम कर देता है. जैसे चौथे शेर में ’बदसुलूकी की ये सजा है मिली’ और छठे शेर में ’कभी समझाया जो वाइज़ बनकर’ दो विपरीत स्थितियाँ दर्शाते हैं.
परंतु कुल मिलाकर अच्छी गज़ल है.
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
पंकज जी
अच्छी गज़ल है । दिल का हाल अगर सब समझ जाते तो आप कविता में क्या लाते ?
कविता तो होती ही कवि की व्यथा है- वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान ।
निकल कर नयनों से चुपचाप बही होगी कविता अन्जान ।।
इसी प्रकार लिखते रहिए । सस्नेह
मुझे गज़ल साधारण लगी। सारे भाव एक जैसे ही हैं। कसाव बिल्कुल कम है। कुछ शब्द तो लय ही खराब करते हैं। आपकी पुरानी बेहतरीन गज़लों के सामने ये कहीं नहीं ठहरती।
बेहतरीन ग़ज़ल!!!
पंकजजी, आपकी ग़ज़ल कला पर अच्छी पकड़ है, मुझे आपकी ग़ज़लों को पढ़ने में आनन्द आता है, पढ़वाते रहिये, बधाई!!!
पंकज जी , इस बार आपने बड़ी हीं बेहतरीन गज़ल लिखी है। मुझे यह गज़ल आपकी पिछ्ली सारी गज़लों में सबसे खूबसूरत लगी। रदीफ, काफिया, बहर हर एक चीज़ मुकम्मल है।
मेरा यह मानना है कि गज़ल का विषय एक होना कोई जरूरी नहीं है। आप उदाहरण के लिए गालिब की गज़लें देख सकते हैं। इस कारण यदि आपके एक-दो शेर कुछ और कहते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
अंत में फिर से अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई देता हूँ।
गज़ल बहुत अच्छी है पंकज जी..और गज़ल के व्याकरण के लिए तो आपको बहुत अच्छा आदर्श बनाया जा सकता है।
कभी समझाया जो वाइज़ बनकर,
ईनाम में नाम दिया 'आवारागर्द' है।
बहुत उम्दा गज़ल है। लिखते रहें।
acchi panktiyaan hain...
हर शेर उम्दा है। गज़ल के नीयमों में रह कर इतना सुन्दर लिख पाना आसान नहीं। आप बधाई के पात्र हैं।
आपकी ग़ज़लें मुझे एल्बम के लिए फ़िट लगती हैं। मुम्बई में हैं, जगजीत सिंह से सम्पर्क कीजिए, वो ज़रूर गायेंगे।
पंकज जी..
उम्दा गज़ल के लिये आप बधाई के पात्र हैं..
शुरु से लेकर अन्त तक आप ने एक ही विषय को सम्हाले रखा है..
मैं इसे आप का हुनर कहूँ या कमजोरी..
कसाव भी कहीं कहीं पर हल्का महसूस हुआ है
ध्यान दीजियेगा
आभार
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