इस रचना को लिखे 21 वर्ष हो गये किंतु आज भी इनके भीतर के पंक्तियों की पीड़ा मुझे व्यथित करती है। राखी के पावन अवसर पर हिन्द युग्म के पाठकों को शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है मेरे हृदय के करीब की एक कविता:
काश! मेरी बहना होती
काश! मेरी बहना होती
चंचल भोली भाली सी
नटखट सी इतराती सी
गुल के जैसी मुस्काती सी
लहरों सी लहराती सी
हर एक हँसी पर उसके मैं
दुनिया की खुशी लुटा देता
उसकी जो माँग हुई होती
नभ के तारे भी ला देता
छीन लिये लेता सारे
मैं उसकी आँखों के मोती
काश मेरी बहना होती
कितनी खुशियों का पल होता
हम साथ साथ खेला करते
खींचा-तानी शैतानी भी
लड़ते भी, रूठा भी करते
वो मुझे मनाया करती फिर
मैं और ऐंठ जाया करता
ऊपर से आँख लाल करता
दिल ही दिल मुस्काया करता
जाओ तुमसे ना बोलेंगे
तब यह कहती, वह रोती
काश मेरी बहना होती
दुल्हन जब भी बनती बहना
हाँथों से उसे सजाता मैं
उठती डोली, दिल थाम खड़ा
नम आँखों से मुस्काता मैं
भैया भैया कहती वह फिर
सीने से लिपट जाती मेरे
मैं सहलाता फिर बालों को
जा पी के घर तू, प्रिय तेरे
और दूर चली फिर वो जाती
दिल में भारी बोझा ढोती
काश मेरी बहना होती
मेरी सूनी कलाई तड़प उठती
खाली मस्तक हा! रोता है
राखी के पावन दिन में तो
दिल मेरा टूटा होता है
मेरे मन कोमल के टुकड़ों में
आग लगी सी जाती है
जब मैं यह सोचा करता हूँ
धूं धूं कर जलती छाती है
मेरी खुशियों की तस्वीरें
काश नहीं सपना होती
काश मेरी बहना होती।
*** राजीव रंजन प्रसाद
7.9.1986
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
राजीव जी
बहुत ही प्यारी और प्रासंगिक कविता लिखी है आपने । बहन का ना होना जरूर खलता है ।
किन्तु अपने उन भावों को आपने बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति दी है । आपके मन में इतने
पवित्र भाव हैं । आप निश्चय ही बधाई के पात्र हैं । आप चाहें तो एक बड़ी बहन मिल सकती है।
शुभकामनाओं सहित ।
अनुज हो तुम मेरे
राजीव सो ये
ममता भारी ये पाती
राखी है तुम्हारे लिये
कलाई सूनी हो
तो कोई बात नहीं
मन सूना नहीं होना
चाहीये
डोरी राखी की
बन्धन प्यार का
संबंध सब होते
है मन के
बनते है मन से
निभते है मन से
राजीव जी,
राखी के त्योहार पर सुन्दर भाव भरी कविता लिखी है आपने. आपकी कल्पना और मनोभाव अद्भुत हैं.. निश्चय् ही बहन का न होना या दूर होना इस त्योहार विषेश पर व्यथा का कारण है
बहुत खूब.. कविता भाव भरे..बधाई सुंदर रचना के लिए...
और जिनकी बहने होती, उनको कोई मान नही..
धन दौलत ने ली जगह रिश्ते नातों का मान नही..
राजीव हम लोग आपकी बहन है ना फिर क्यों आप ऐसा कहते है। दिल को छू गयी आपकी कविता।
राजीव जी,
इस त्यौहार पर मैं अपनी बहन से दूर हूँ। जबकि मेरी बहन है, फ़िर भी मेरे मन में आपकी कविता जैसे भाव आ-जा रहे हैं। निश्चित रूप से कविता भाव-संप्रेषणियता में सफल है।
राजीव जी!
सिर्फ एक शब्द - धन्यवाद. आपकी यह कविता मेरे लिये किसी भी आलोचना से परे है. आप शायद इसकी वज़ह समझ सकते हैं.
आदरणीय शोभा जी, रचना जी एवं ममता जी..
आप सभी के स्नेह नें अभिभूत कर दिया। आज मेरी यह रचना, मेरे लिये गैर प्रासंगिक हो गयी..।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने राजीव जी
राखी के पवित्र त्योहार का सुंदर भाव इस रचना में छलक रहा है ..बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ
राजीव जी,
मनोभावों की सफल अभिव्यक्ति दृष्टिगोचर होती है इस कविता में। बधाई।
सुन्दर कविता है... वैसे तो आपने बहन के लिये कविता लिखी है, पर पढते वक्त याद आया... मै भगवान जे से लड़ा करती थी, मुझे एक भाई क्यो नही दिया... आज छोटा भाई है पर मै फिर भी लड़ती हूँ, अगले जन्म मे बड़ा भाई जरूर देना... जिसके सामने मै अपनी सारी फरमाईशे रखूँ, तंग करूँ, ढेरो शैतानियाँ करूँ... इत्यादि.. इंसान कि इच्छा कभी खत्म नही होती ना।
विषय से भटक गयी... आपकी कविता बहूत अच्छी लगी... 21 वर्ष पुरानी कविता का दर्द भी नया नया सा लगता है।
इतना ही कहूंगा कि भाई होना बहुत दायित्व का काम है। बहन होने की तमन्ना अच्छी बात है। मुझे भी छोटी बहन न होने की कमी हमेशा खली है। संसार के कई रिश्तों से पवित्र है यह रिश्ता। आपकी कविता ने मुझे पावन कर दिया।
निखिल
जब यह कविता लिखी गई, तब मैं बिल्कुल दो महीने का बच्चा था। मैं तो उस समय की संभावनाओं और भूली हुई यादों में खो गया हूं।
थोड़ा स्वार्थी हूं राजीव जी, आपकी कविता पर प्रतिक्रिया फिर कभी दी जाएगी। मुझे अपने बचपन में खो जाने दीजिए।
इस दिन के आसपास की एक फोटो मेरे पास है, उसे देखकर कुछ याद करता हूं। :)
bahut hi sundar rachna hai ....
rajiv ji
ise main aise kahti kaash ki koi aisa bhai hota jo sare nakhre utha leta
bhaut hi achhi lagi aapki ye kavita
rakhshabandhan ke parv par aapko bhi badhayi
Rajeevji...hamara chota bhaai hai...jo bahut shaitaani karta hai...hamesha chota hi bana raheta hai....jab ham uski umar ke the tab bhi bhi bade hi the....hamen aksar laga hai ki kaash hamara bada bhaai bhi hota....jiseki aakhon ka ham bhi noor hote....bilkul waise jaise hamara chota bhaai hai hamaari jaan...par ab yeh shikaayat na karenge....hamne to wahaan aane se pehele hi aapko bhaiya aur ritu ji ko bhabhi bana liya hai...
इस प्रकार की कवितायें कभी पुरानी नहीं होतीं। इसके भीतर एक दर्द है जो पढने वालों को रुला देता है। इस कविता को काश कोई गा कर रिकार्ड करे, कई आँख नम हो जायेगी।
sachhi me dil ko chhu gyi kavita....
meri apni to koi bahan nhi..lekin ye kehna achhi baat nhi kyuki mere uncle ki ladakiya bhi meri apni bahan hai.... mera saubhagya hai ki unse hi badi bahan aur chhoti bahan ka pyar mila...
mai apni en bahano k liye khuda ka sukragujar hu...
mai subject se dur ho gya..afi chahta hu...aapki kavita ne hume prem ke aagosh me le liya....
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