स्वप्न की अद्भुत डोरी
रोज़ रात
बाँधती है मुझे
बातों में कोरी-कोरी
पर भोर होते ही
स्वप्न की डोरी
जैसे अदृष्य सी हो जाती है
और निकल आती है
यथार्थ की कड़कड़ाती धूप ।
एक डोर बनाऊँगी मैं
किरणों से भी बारीक
पर हर धातु से
ठोस और मजबूत ।
एक ऐसी डोरी
जिसे सूरज की ज्वाला भी
जला न सके,
मिट्टी के
केंचुए और कीट भी
मिटा न सकें,
मौसम की मार से भी
जिसका क्षय न हो,
और उस डोरी की
एक छोर पर
बाँध दूंगी स्वपन की
स्वर्णिम आभा वाली पतंग ।
पतंग उड़ेगी
आसमानों से भी ऊपर ।
चाहे मिलकर एक से लगे
सूरज और पतंग की स्वर्णिम आभा,
चाहे सूरज की किरणों में
गुम सी हो जाए
किरणों-सी डोरी,
चाहे अदृष्य सी लगे
फिर भी
नहीं मिटेगा अस्तित्व
मेरे स्वप्न की अद्भुत डोरी का
उससे बँधी
आशा और उम्मीदों की
स्वर्णिम पतंग का ।
होता है यह तन नश्वर
पर छोड़ जाऊँ जग में
कोई ऐसी डोरी,
कोई पतंग अमिट,
मन की यही है अभिलाषा
और आँखों में यही स्वप्न
रात-दिन
तारों सा टिमटिमाता है ।
- सीमा कुमार
२२ अगस्त २००७
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी
अच्छा लिखा है । भाषा से अधिक भाव पसन्द आए । थोड़ा शब्द संयोजन पर और ध्यान दीजिए ।
आपकी मनोकामना अवश्य पूरी हो ऐसी कामना है । शुभकामनाओं सहित
seema jee prayas accha hai........per aap kahna kya chahtee hai ye spasht nahi ho raha hai....sabdo ko aur vistaar de..........
सीमा जी,
कविता के उपमान उसके प्राण होते हैं। आपकी रचना की भी खासियत उसके उत्कृष्ट बिम्ब हैं।
"होता है यह तन नश्वर
पर छोड़ जाऊँ जग में
कोई ऐसी डोरी,
कोई पतंग अमिट,
मन की यही है अभिलाषा
और आँखों में यही स्वप्न
रात-दिन
तारों सा टिमटिमाता है ।"
प्रसंशनीय कविता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सीमा जी अच्छा लिखा है ।
बहुत अच्छा लिखा है। आपके स्वप्न पूरे हों....
सीमा जी,
सुखद स्वप्न की स्मृति पीछा करती है। बार-बार मन उसे फ़िर से पाना चहता है। शायद ऐसी ही मनोदशा में कविता ने शब्दों का रूप ले लिया है।
होता है यह तन नश्वर
पर छोड़ जाऊँ जग में
कोई ऐसी डोरी,
कोई पतंग अमिट,
मन की यही है अभिलाषा
और आँखों में यही स्वप्न
रात-दिन
तारों सा टिमटिमाता है ।
यह भाव विशेष रूप से पसंद आया।
liked... nice one.
अच्छी कविता है, सीमा जी! हमारी कामना है कि आपके स्वप्न पूरे हों.
आप के इतने सुन्दर विचारों का स्वागत है..
रचना ने पूरी तरह प्रभावित किया..
ह्रदय के अंदर तक कविता पहुँची है
बधाई स्वीकार करें
आभार
स्वप्न की अद्भुत डोरी
रोज़ रात
बाँधती है मुझे
बातों में कोरी-कोरी
पर भोर होते ही
स्वप्न की डोरी
जैसे अदृष्य सी हो जाती है
और निकल आती है
यथार्थ की कड़कड़ाती धूप ।
सीमा जी कविता अच्छी है ।
सीमा जी, आप की प्रस्तुत कविता 'नई कविता' का बेहतरीन उदाहरण है।
आप की कल्पना और उपमाऐं दोनों ही लाजवाब हैं।
आपकी अगली रचना का इन्तज़ार रहेगा।
शब्द-चयन बहुत बढ़िया है। और जहाँ पर आपकी कविता खत्म हो रही है, वहाँ भी एक संदेश के साथ। इस तरह की अकविताएँ लिखी जानी चाहिएँ।
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