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Monday, August 20, 2007

दहेज़ पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं तपन शर्मा


टॉप १० कविताओं को प्रकाशित करने की कड़ी में आज बारी हैं दसवीं पायदान की कविता 'दहेज़ का चलन' की। इसके रचनाकार तपन शर्मा हमारी प्रतियोगिता में सदैव भाग लेते हैं और हमारे प्रयासों का प्रोत्साहन करते रहते हैं।

कविता - दहेज़ का चलन

कवयिता- तपन शर्मा, नई दिल्ली

जी, हमारा लड़का आई.ए.एस है,
2 साल बाहर भी रहकर आया है
इतना खर्चा हुआ,
पढ़ाया-लिखाया
इस काबिल बनाया...
अब आप ही बतायें
पैंतालीस तो, बनते ही हैं न..

लड़की के पिता ने कुछ सोचा, फ़िर बोला
आपने बात तो बिलकुल सही कही है
पर इतना पैसा लगाने की
हमारी औकात नहीं है
लड़की तो हमारी भी इंजीनियर है
पर हम पैंतीस तक ही लगा सकते हैं

लड़के के पिता अपनी बात पर कायम,
कहा,
नहीं नहीं, पैंतालीस से कम
में ये रिश्ता नहीं होगा

लड़की के पिता गिड़गिड़ाये
आखिर में चालीस पर बात मना पाये
मैं भी वहाँ खड़ा था
मिठाई बँटी,
मैंने भी खाई..
पर मन में कुछ और ही चल रहा था...

लड़के को बिकते देखने का
मेरा पहला तजुर्बा जो था...

लड़की के पिता की
आखिर ऐसी क्या मजबूरी है
जो दहेज के लालची लोगों से
रिश्ता कर रहे हैं

बात पता चली,
पड़ोस में पिछले दिनों
एक लड़की की शादी,
एन.आर.आई. खानदान में जो हुई थी

बस,
सारा माजरा समझते देर न लगी
लड़के और लड़की में रिश्ते की
ये तो बस औपचारिकता है
असली रिश्ता तो लालच और घमंड में
कब का हो चुका है...

धन्य है ये समाज,
मेरा समाज हमारा समाज
बुद्धिजीवियों के इस समाज में
पढ़े लिखे दूल्हों का बाज़ार लगता है
हर शख्स बिकता है...हर रिश्ता बिकता है

रिज़ल्ट-कार्ड

प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८, ६॰५
औसत अंक- ७॰१६६६७
स्थान- नौवाँ

द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
७॰५, ९॰७५, ७॰२, ९॰२, ४॰१६, ७॰१६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰४९६१११
स्थान- सातवाँ

तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
विवरणात्मक है, अतिरिक्त विस्तार व गद्यात्मकता हावी है।
अंक- ३॰२
स्थान- दसवाँ

पुरस्कार- सुनील डोगरा ज़ालिम की ओर से उन्हीं की पसंद की पुस्तकें।

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

RAVI KANT का कहना है कि -

तपन जी,
दहेज एक ज्वलंत सामाजिक समस्या है। इसपर लेखनी चलाकर आपने पाठकवृंद को सोचने पर विवश किया है अतएव बधाई के पात्र हैं।

लड़के और लड़की में रिश्ते की
ये तो बस औपचारिकता है
असली रिश्ता तो लालच और घमंड में
कब का हो चुका है...

ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं। प्रवाह पर थोड़ा ध्यान दें, शुभकामनाएँ।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सही सच लिखा है आपने ,,दहेज की यह समस्या सच में अभी भी बहुत विकट है

धन्य है ये समाज,
मेरा समाज हमारा समाज
बुद्धिजीवियों के इस समाज में
पढ़े लिखे दूल्हों का बाज़ार लगता है
हर शख्स बिकता है...हर रिश्ता बिकता है

सही लिखा ....हर शख्स बिकता है...हर रिश्ता बिकता है...


बोझल बोझल ज़िन्दगी, टुकड़े-टुकड़े सपने,
यहां तो सभी पी रहे, केवल दर्द अपने-अपने।..
बहुत ख़ूब तपन ज़ी ..बधाई

Anonymous का कहना है कि -

bahut badiya dost .... proud of u ,.... keep going ...

Anonymous का कहना है कि -

bohot hi sunder kavita hai.
bohot achhi tarah ye darshati hai ki hum log hi jaane anjaane, samaaj mein apni maan banane ke liye, lalach vash aur kai baar achhe rishte ki majboori mein dahej jaisi bimaari ko protsaahan de rahe hain.

bas thoda tukbandi ki kami hai... jo ki ek kavita mein chhupi bhawnao ko bohot hi sunder tareeke se aur ujaagar kerti hai.

Tapesh Maheshwari का कहना है कि -

वहुत अच्छे तपन, बहुत अच्छी कविता है। पर दोस्त ऎक सलाह देना चाहूंगा कि अगर थोङा पध् और होता तो बहुत अच्छा लगता। कविता का सार वहुत अच्छा था पर कविता गधमय थी। थोङा और महनत कर और अपनी बात को पधमय तरीके से पेश करने की कोशिश कर। तू निश्चित रूप से प्रथम स्थान प्राप्त करने के योग्य है।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

चिंता आपकी जायज है और सोच उत्तम। एक बहुत अच्छी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

तपन जी..
बहुत अच्छा लगा आप की रचना पढ कर..
पूरी कविता भावपूर्ण है..मैं पूरी तरह आप से सहमत हूँ..
किन्तु आखिरी में मुझे कुछ गलत सा लगा..
आप ने लिखा कि हर रिस्ता बिकता है..
ऐसा नहीं है मित्र..हर रिस्ता बिकाऊ नहीं होता..
माँ का जो रिस्ता अपनी सन्तान से होता है..
वो बिकाऊ नही होता..
ध्यान दीजियेगा..
आभार..

शोभा का कहना है कि -

तपन जी
अच्छी रचना के लिए बहुत-बहत बधाई ।
विषय शुरू में कुछ पुराना लगा किन्तु कविता
पढ़ते-पढ़ते उसमें नयापन दीख पड़ा । दहेज की
समस्या में भी प्रधानता लालच की ही है । फिर लालच
चाहे लड़की के पिता का हो या लड़के के पिता का ।
आपने वर्तमान की एक संकीर्णता को सुन्दर रूप
में प्रस्तुत किया है । पता नहीं हम लोग कब तक यूँ ही
लालच के शिकार होते रहेंगें ? एक अच्छी रचना के लिए
बधाई ।

विपुल का कहना है कि -

शानदार रचना है तपन जी | आपकी चिंता जायज़ है पर हाँ एक बात कहना चाहूँगा कुछ कमी सी लगी इस कविता में मुझे | शायद प्रवाह की कमी की वजह से | वैसे दहेज का जो विषय आपने चुना था उस पैर इससे भी बेहतर लिखा जा सकता था ...
बहरहाल आपकी कविता बहुत अच्छी है बधाई स्वीकार करें |

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इसमें समाज का सच भले हो लेकिन काव्य-सौष्ठव की कमी है। कविता के दो सौंदर्य बताये गये हैं। एक आतंरिक दूसरा बाह्य। आपकी कविता में आशिंक रूप से आंतरिक तत्व हैं (जैसे भाव, उद्देश्य आदि), परंतु बाह्य अलंकार (जैसे रस, छंद, अलंकार आदि)। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि अतुकांत कविताओं में बाह्य तत्व परिलक्षित नहीं होते। होतें हैं, आपको इस ओर और सोचने की ज़रूरत है। फ़िर भी मैं दहेज विषय पर इतनी चिंता करता हूँ कि मुझे यह कविता पसंद आई। अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।

Anonymous का कहना है कि -

bahut khoob tapan

Anonymous का कहना है कि -

Tapan..You are too good!!!

Keep on writing poems...

Shikha

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