tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8048662913565678979..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: दहेज़ पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं तपन शर्माशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59463103215167546222007-08-22T21:06:00.000+05:302007-08-22T21:06:00.000+05:30Tapan..You are too good!!!Keep on writing poems......Tapan..You are too good!!!<BR/><BR/>Keep on writing poems...<BR/><BR/>ShikhaAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78193855313695123822007-08-22T12:53:00.000+05:302007-08-22T12:53:00.000+05:30bahut khoob tapanbahut khoob tapanAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26711517327695514392007-08-21T14:43:00.000+05:302007-08-21T14:43:00.000+05:30इसमें समाज का सच भले हो लेकिन काव्य-सौष्ठव की कमी ...इसमें समाज का सच भले हो लेकिन काव्य-सौष्ठव की कमी है। कविता के दो सौंदर्य बताये गये हैं। एक आतंरिक दूसरा बाह्य। आपकी कविता में आशिंक रूप से आंतरिक तत्व हैं (जैसे भाव, उद्देश्य आदि), परंतु बाह्य अलंकार (जैसे रस, छंद, अलंकार आदि)। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि अतुकांत कविताओं में बाह्य तत्व परिलक्षित नहीं होते। होतें हैं, आपको इस ओर और सोचने की ज़रूरत है। फ़िर भी मैं दहेज विषय पर इतनी चिंता करता हूँ कि मुझे यह कविता पसंद आई। अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-69870799915792561202007-08-20T18:19:00.000+05:302007-08-20T18:19:00.000+05:30शानदार रचना है तपन जी | आपकी चिंता जायज़ है पर हाँ...शानदार रचना है तपन जी | आपकी चिंता जायज़ है पर हाँ एक बात कहना चाहूँगा कुछ कमी सी लगी इस कविता में मुझे | शायद प्रवाह की कमी की वजह से | वैसे दहेज का जो विषय आपने चुना था उस पैर इससे भी बेहतर लिखा जा सकता था ...<BR/>बहरहाल आपकी कविता बहुत अच्छी है बधाई स्वीकार करें |विपुलhttps://www.blogger.com/profile/15032635217536871012noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-84979591573113205582007-08-20T16:48:00.000+05:302007-08-20T16:48:00.000+05:30तपन जीअच्छी रचना के लिए बहुत-बहत बधाई । विषय शुरू ...तपन जी<BR/>अच्छी रचना के लिए बहुत-बहत बधाई । <BR/>विषय शुरू में कुछ पुराना लगा किन्तु कविता<BR/>पढ़ते-पढ़ते उसमें नयापन दीख पड़ा । दहेज की <BR/>समस्या में भी प्रधानता लालच की ही है । फिर लालच<BR/>चाहे लड़की के पिता का हो या लड़के के पिता का । <BR/>आपने वर्तमान की एक संकीर्णता को सुन्दर रूप <BR/>में प्रस्तुत किया है । पता नहीं हम लोग कब तक यूँ ही<BR/>लालच के शिकार होते रहेंगें ? एक अच्छी रचना के लिए<BR/>बधाई ।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-90245919572854787442007-08-20T14:36:00.000+05:302007-08-20T14:36:00.000+05:30तपन जी..बहुत अच्छा लगा आप की रचना पढ कर..पूरी कवित...तपन जी..<BR/>बहुत अच्छा लगा आप की रचना पढ कर..<BR/>पूरी कविता भावपूर्ण है..मैं पूरी तरह आप से सहमत हूँ..<BR/>किन्तु आखिरी में मुझे कुछ गलत सा लगा..<BR/>आप ने लिखा कि हर रिस्ता बिकता है..<BR/>ऐसा नहीं है मित्र..हर रिस्ता बिकाऊ नहीं होता..<BR/>माँ का जो रिस्ता अपनी सन्तान से होता है..<BR/>वो बिकाऊ नही होता..<BR/>ध्यान दीजियेगा..<BR/>आभार..विपिन चौहान "मन"https://www.blogger.com/profile/10541647834836427554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35317765644850696872007-08-20T14:00:00.000+05:302007-08-20T14:00:00.000+05:30चिंता आपकी जायज है और सोच उत्तम। एक बहुत अच्छी रचन...चिंता आपकी जायज है और सोच उत्तम। एक बहुत अच्छी रचना।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3843911176184738472007-08-20T12:55:00.000+05:302007-08-20T12:55:00.000+05:30वहुत अच्छे तपन, बहुत अच्छी कविता है। पर दोस्त ऎक स...वहुत अच्छे तपन, बहुत अच्छी कविता है। पर दोस्त ऎक सलाह देना चाहूंगा कि अगर थोङा पध् और होता तो बहुत अच्छा लगता। कविता का सार वहुत अच्छा था पर कविता गधमय थी। थोङा और महनत कर और अपनी बात को पधमय तरीके से पेश करने की कोशिश कर। तू निश्चित रूप से प्रथम स्थान प्राप्त करने के योग्य है।Tapesh Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/00427393301018607196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-8624201363714732582007-08-20T12:52:00.000+05:302007-08-20T12:52:00.000+05:30bohot hi sunder kavita hai.bohot achhi tarah ye da...bohot hi sunder kavita hai.<BR/>bohot achhi tarah ye darshati hai ki hum log hi jaane anjaane, samaaj mein apni maan banane ke liye, lalach vash aur kai baar achhe rishte ki majboori mein dahej jaisi bimaari ko protsaahan de rahe hain. <BR/><BR/>bas thoda tukbandi ki kami hai... jo ki ek kavita mein chhupi bhawnao ko bohot hi sunder tareeke se aur ujaagar kerti hai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-57485377340162831422007-08-20T10:36:00.000+05:302007-08-20T10:36:00.000+05:30bahut badiya dost .... proud of u ,.... keep going...bahut badiya dost .... proud of u ,.... keep going ...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28848999178170035692007-08-20T08:34:00.000+05:302007-08-20T08:34:00.000+05:30बहुत सही सच लिखा है आपने ,,दहेज की यह समस्या सच मे...बहुत सही सच लिखा है आपने ,,दहेज की यह समस्या सच में अभी भी बहुत विकट है<BR/><BR/>धन्य है ये समाज,<BR/>मेरा समाज हमारा समाज<BR/>बुद्धिजीवियों के इस समाज में<BR/>पढ़े लिखे दूल्हों का बाज़ार लगता है<BR/>हर शख्स बिकता है...हर रिश्ता बिकता है<BR/><BR/>सही लिखा ....हर शख्स बिकता है...हर रिश्ता बिकता है...<BR/><BR/><BR/>बोझल बोझल ज़िन्दगी, टुकड़े-टुकड़े सपने,<BR/>यहां तो सभी पी रहे, केवल दर्द अपने-अपने।..<BR/>बहुत ख़ूब तपन ज़ी ..बधाईरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-603550861501661012007-08-20T08:04:00.000+05:302007-08-20T08:04:00.000+05:30तपन जी,दहेज एक ज्वलंत सामाजिक समस्या है। इसपर लेखन...तपन जी,<BR/>दहेज एक ज्वलंत सामाजिक समस्या है। इसपर लेखनी चलाकर आपने पाठकवृंद को सोचने पर विवश किया है अतएव बधाई के पात्र हैं।<BR/><BR/>लड़के और लड़की में रिश्ते की<BR/>ये तो बस औपचारिकता है<BR/>असली रिश्ता तो लालच और घमंड में<BR/>कब का हो चुका है...<BR/><BR/>ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं। प्रवाह पर थोड़ा ध्यान दें, शुभकामनाएँ।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.com