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Monday, August 20, 2007

फुटपाथ वाले


झाँक थैले में खुश था राजू
बहुत सी थैलियाँ बीन ली आज
सूखा सा मुहँ लिये घूम रही थी
रधिया कांधे का बोझ था जरा हल्का
नीम तले जा बैठे डेरे के चार-पाँच
बात करते थे बीनी हुई थैलियों में क्या चीज थी-
बहिन जी लाई होंगी शक्कर उधार,
पिंकी के घर आए होंगे आम
कुत्ते वाले बाबू शायद लाये होंगे गोश्त
तभी रधिया खुशी से चहकी
बस में से फैंकी थी किसी ने नमकीन की खाली थैली
झपट के उठा लाई रधिया
थैली को झाड बमुश्किल निकाल पाई थी सात-आठ दाने तमाम
उन्हें चाट कर भिनभिनाई थी रधिया
"मरे ज्यादा नहीं छोड सकता था"
निगोड़ी, किस्मत को अपनी सराह
रामू मुहँ बिचकाकर बोला
बच्चू ने अपना थैला टटोला सिर झुका कर बोला -
"रामू तेरी थैलियाँ दे दे उधार"
कल जो बीनूँगा ,
दे दूँगा सारी की सारी तुझे
तूने तो कल साँझ खाया था भात
माँ दो दिन से बीमार है -मुनिया ने नहीं पिया है दूध
मैं तो रह लूंगा दो दिन और निराहार
"क्यों रे तेरा बाबू आया था पिनक में रात
लगाई थी तूझे दो-चार लात
" हां, शर्मिन्दगी से सिर झुकाये बच्चू बोला -
माँ पर उठा रहा था हाथ ,
माँग रहा था खाना
रह-रह कर कर रहा था बवाल
बाबू माँ को खींच कर ले जा रहा था
वो आँय-शाँय बक रही थी-
पहले ही हैं बच्चे पांच
जरा इनकी तो सोच
बीच में बोला तो जमाई थी लात -
'मुनिया अभी छोटी है
मां की छाती सूख गई है
दूध की जगह पिलाती है लहू
रोज मर-मर कर जिलाती है सबको"
अब ना ऐसा होने दूँगा
"ये तेरे ही नहीं, मेरे भी घर की कहानी है"
शायद फुटपाथ वालों की यही कहानी है ।

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अनुराधा जी,
काफ़ी अच्छा चित्रण किया है आपने । परंतु ये समस्या बहुत जटिल है। पहली समस्या मध्यमवर्ग् और उच्च वर्ग की है। दर असल निम्नवर्गीय लोगों को कुछ समझा ही नहीं जाता है और उनके काम को गंदा समझा जाता है। पर ऐसा सोचते हुए हम भूल जाते हैं कि यदि ये लोग अपना काम न करें तो हमें किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है। गली में जमादार न आये तो हम एम्.सी.डी को गालियाँ देते हैं..
अगर सफ़ाई न हो तो शहर का क्या हाल होगा ये सोचा नहीं जा सकता। हमारा फ़ैलाया हुआ गंदा उठाते हैं ये लोग।
अब यदि मज़दूरों और सफ़ाई कर्मचारियों आदि, अथवा झुग्गियों रहने वाली आबादी की बात करें तो इनमें से अधिकतर लोग पढ़ना ही नहीं चाहते हैं..मेरा एक दोस्त स्लम में जाता है पढ़ाने के लिये तो उसने बताया कि बड़ी मुश्किल से बच्चों को इकठ्ठा करना पड़ता है। माता-पिता तैयार ही नहीं होते हैं। ऐसे में इन लोगों का उत्थान बहुत कठिन है।
समाज की यही सच्चाई है। अकेले हमारे कुछ करने से कुछ नहीं होगा। सबसे पहले समाज के हर वर्ग की सोच बदलनी होगी। शायद तभी कुछ हो पायेगा।
आप समाज की इस बीमारी को अपनी कविता के द्वारा हमारे सामने लाईं उसके लिये धन्यवाद|

तपन शर्मा

ऋषिकेश खोडके रुह का कहना है कि -

समाज के कडवे सच के दर्शन के साथ ही ह्रदय मे करुणा भी जगाती है आपकी कविता |और सामाजिक स्तर पर बढते अंतराल पर यह निकृष्ट छोर है जहाँ जाने और देखने का साहस ये सभ्य समाज नही उठा पा रहा शायद आपके प्रयास से कुछ नज़रें वहाँ तक जा पहूंचे ! सुन्दर रचना के लिये बधाई |

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

बधाई, ना ना सिर्फ़ इस कविता के लिए नही बल्कि एक संवेदनशील व्यक्तित्व का स्वामी होने के लिए!!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

इस रचना की सफलता यह है कि संवेदित करने में सक्षम है। एक लघुकथा जैसा शिल्प और स्तब्ध कर देने वाले भाव...मैं प्रभावित हुआ।

*** राजीव रंजन प्रसाद

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

अनुराधा जी..
सादर प्रणाम..
नितान्त उत्क्रष्ट रचना है..
पढ कर मैं कविता के भाव में पूरी तरह वह चुका था..
बहुत ज्यादा सम्वेदनशील कविता लगी है..
प्रशंशा के लिये शब्द चयन मुश्किल हो रहा है..
बहुत बहुत बधाई..
और बहुत बहुत धन्यबाद ऐसी रचना के लिये..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अनुराधा जी..सुन्दर रचना के लिये बधाई |
सम्वेदनशील कविता है..

शोभा का कहना है कि -

अनुराधा जी
प्रगति वादी स्वर उठाया है आपने । देश के शोषित लोगों की
पीडा़ को बहुत ही सुन्दर रूप में चित्रित किया है । सामाजिक विषमता
के ये दृश्य हम सभी देखते हैं । आपने इस कविता द्वारा करूणा
जागृत की है । एक अच्छा प्रयास है । आपको बहुत-बहुत बधाई ।

Nikhil का कहना है कि -

अनुराधा जीं,
नयी कविता का बेहतर रुप......ये दर्द केवल फूटपाथ के खानाबदोशों कि नहीं है...तपन ने बिल्कुल सही कहा है...यह सम्पूर्ण वर्ग-संघर्ष की व्यथा है.....आपके पात्र बिल्कुल नियंत्रण में हैं.........वो "क्लास" जो अपने कुत्तों के लिए मांस लाता है उसे एक दूसरा "क्लास" कातर होकर निहारता है........ये बड़ी गम्भीर समस्या है.....हमारे हर तरफ......मैं जहाँ पढ़ाई करता हूँ, इसे बड़ी शिद्दत से महसूस करता हूँ....अफ़सोस होता है, मगर अकेला चना भांड नही फोड़ सकता.........उम्मीद है, मेरे "कविमित्र" इस मुहिम में साथ हैं...........
आपने मुझे उद्वेलित कर दिया......बधाई....

निखिल...

विपुल का कहना है कि -

बधाई स्वीकार करें अनुराधा जी सच में हृदय को उद्वेलित करने वाली रचना |
शिल्प भी बढ़िया और भाव भी .. बहुत सुंदर...

RAVI KANT का कहना है कि -

अनुराधा जी,
सुन्दर रचना के लिए बधाई। आपकी कविता पढ़कर ’कवयः किं न पश्यन्ति’ की याद आती है। सच मे कवि की नज़र से कुछ भी अछूता नही रह पाता। यह कविता सहज ही अंतर्मन को आंदोलित कर जाती है।

मुनिया अभी छोटी है
मां की छाती सूख गई है
दूध की जगह पिलाती है लहू
रोज मर-मर कर जिलाती है सबको

ये पढ़कर दिनकरजी की पंक्ति याद आ रही है-
"विवश देखती माँ अंचल से नन्ही जान तड़प उड़ जाती। अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती॥"

Udan Tashtari का कहना है कि -

अति संवेदनशील, बधाई.

गीता पंडित का कहना है कि -

अनुराधा जी,

एक बहुत ही
संवेदनशील कविता

बहुत जटिल समस्या का
सफल चित्रण

धन्यवाद|

बधाई स्वीकार करें

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

लगता है यह कविता किसी झुग्गीवाले के समीप रहकर लिखी गई है। वास्तविक चित्रण करने में सफल रही हैं।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत संवेदनशील कविता अनुराधा जी।
यथार्थ को हूबहू चित्रित करने में आप पूरी सफल रही हैं। आपकी अगली कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी।

Anita kumar का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना है अनुराधा जी बधाई

SahityaShilpi का कहना है कि -

अनुराधा जी!
इतनी टिप्पणियों के बाद मेरे पास कहने को कुछ खास नहीं रह जाता. अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें और कोशिश करें शिल्प पर कुछ और मेहनत की ताकि रचनायें अच्छी से बहुत अच्छी बन सकें.

विश्व दीपक का कहना है कि -

अनुराधा जी, आपकी कविता अंदर तक झकझोर देती है। आपने बड़ी बखूबी से झुग्गी-झोपड़ी और फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के दर्द का चित्रण किया है। बस मुझे शिल्प में थोड़ी-सी कमी लगी। तुकबंदी करने का आप प्रयास नहीं करतीं तो शायद ज्यादा अच्छा होता।
आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

anuradha srivastav का कहना है कि -

आप सभी का हौसला अफजाई करने के लिये बहुत -बहुत शुक्रिया । तपन जी सही कहा आपने इन्हें पढने के लिये प्रेरित करना वाकई मुशकिल काम है ।ये असफल चेष्टा में कई बार कर चुकी हूँ ।साम,दाम ,दंड ,भेद सब आजमा लिये पर सफल ना हो पाई ।

Anonymous का कहना है कि -

Anuradha Antee" I Love You,

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