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Thursday, August 23, 2007

एक प्यास ऐसी भी (प्रतियोगिता से)


प्रतियोगी कविताओं की माला से आज हमने से जो मोती चुना है वो है कवि योगेश कुमार की कविता 'प्यास'। जून माह की प्रतियोगिता में भी कवि योगेश ने भाग लिया था और संयोग की बात रही कि पिछली बार भी इनकी कविता १२वीं स्थान पर थी और इस बार भी १२ वीं स्थान पर है।

कविता- प्यास

रचयिता- योगेश कुमार


सूरज से तपती थी धरती
होने चला सेना में भर्ती
पास के एक महानगर में
देनी थी मुझको अर्ज़ी

गर्मी से था हाल बुरा
प्यास से सूखने लगा गला
नल में भी पानी नहीं था
महानगर लगता था फ़र्ज़ी

एक सज्जन से मैंने पूछा
पीने को पानी मिलेगा
हाथ का इशारा मिला
वहाँ सामने रेस्टोरेंट में

सभी पी रहे थे पेप्सी-कोला
मैंने भी बैरे से बोला
पीने को पानी मिलेगा
'नहीं साहब, कोला चलेगा?'

जैसे ही पीने बैठा कोला
पीछे से कोई यह बोला
बाबू जी, प्यास लगी है
पानी मिल जायेगा थोड़ा

मैं उठा उसे ठंडा पिलाने
होटल मालिक लगा चिल्लाने
भगाओ इसे, बाहर करो
सर, इनकी तो आदत है
आप ख्याल न करो

घुमा कर मैंने देखा सर
सब की नजरें थीं मुझपर
लोगों की नज़रों से जाना
शायद ज़ुर्म था पानी पिलाना

बाहर आकर देखा मैंने
बूढ़ा था जमीन पे पड़ा
रूठ चुकीं थीं उसकी साँसे
भीड़ लगाये टोला था खड़ा

वृद्ध की अब तक खुलीं आँखें
मानो सबसे कह रही थीं
कोई मुझ पर दया दिखा दे
अब तो कोई पानी पिला दे

रिज़ल्ट-कार्ड


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८, ५
औसत अंक- ६॰६६६७
स्थान- तरहवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
६, ८॰५, ६॰४, ६॰८, ४॰६७, ६॰६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰५०६११११
स्थान- बारहवाँ

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

योगेश जी
महानगरों का अनुभव सचमुच में सकते में डालने वाला है । आपने बहुत सुन्दर कविता लिखी है ।
इसमें विशेष बात जो मुझे लगी वह ये कि एक दम सहज ढंग से लिखी गई है । लगता है जैसे
आप बहुत स्वाभाविक रूप से अपना अनुभव सुना रहे हैं । सचमें आज मानवता कहीं खो सी
गई है । हर इन्सान एक बनावटी ज़िन्दगी जी रहा है । एक सही तसवीर दिखाने के लिए बधाई ।

Unknown का कहना है कि -

योगेश जी महानगरीय सभ्यता और सम्वेदन हीनता का सुन्दर चित्रण किया है ।

Anonymous का कहना है कि -

योगेशजी,

रचना में जो भाव आपने डालें है बहुत ही मार्मिक है, मगर शिल्प की दृष्टि से कविता उतनी अच्छी नहीं।

हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से भावों को ही ज्यादा महत्व देता हूँ मगर फिर भी बिना मूल भावों को खोये कवि अपनी रचना को अच्छा शिल्प दे सके तो बेहतर होता है।

बधाई एवं शुभकामनाएँ!!!

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

योगेश जी..आप की कविता को अगर कोई बहुत अच्छी कह रहा है तो वो आप को धोखा दे रहा है
आप की रचना में कविता जैसा कुछ भी नहीं है..
पढते समय ऐसा लगा कि आप कोई कहानी सुना रहे हैं..
भाव कहीं कहीं पर दिखाई दिये हैं..
भाव शिल्प सौंदर्य लय और शब्द
ये सब मिलकर कविता की रचना करते हैं..
अगर इनमें से कुछ छूट जाये तो कविता का प्रभाव भी छूटता जाता है..
विचार कीजियेगा.
और मैं आशा करता हूँ कि इस बार जो आप रचना भेजेंगे वो "कविता" होगी कहानी नहीं..
आभार

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

भाव सुन्दर हैं, शिल्प कमजोर।

*** राजीव रंजन प्रसाद

RAVI KANT का कहना है कि -

योगेश जी,
सुन्दर कविता के लिये बधाई। बहुत कुछ कह दिया है आपने इन शब्दों में-

लोगों की नज़रों से जाना
शायद ज़ुर्म था पानी पिलाना

लय पर थोड़ा ध्यान दें, शुभकामनाएँ।

Anita kumar का कहना है कि -

ati sunder rachna hai , behad samvedansheel

Anonymous का कहना है कि -

भाव उत्तम हैं.. पर मुझे लगता है कि "मन" जी ने काफ़ी कुछ कह दिया है..आप इस बारे में ध्यान देंगे इस आशा और विश्वास के साथ कि आप आने वाली प्रतियोगिताओं में प्रथम 10 में अवश्य स्थान बना पायेंगे।

तपन शर्मा

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

योगेश जी,

इसका अंत बनावटी लगता है। रचना को गंभीर बनाने वक़्त उसकी सहजता पर भी ध्यान दें। अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।

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