ऐसे कम ही अंतरजालीय हिन्दी-कविता-प्रेमी होंगे जिन्होंने सजीव सारथी को न पढ़ा हो। कई बार से हमारी प्रतियोगिता में भी भाग लेकर हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता को सफल किया है। जुलाई माह की प्रतियोगिता में इनकी कविता 'स्पर्श' पाँचवे स्थान पर रही। आज 'प्रतियोगिता की कविता' में 'स्पर्श' का मज़ा लीजिए।
कविता- स्पर्श
कवयिता- सजीव सारथी, नई दिल्ली
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
संवेदना की आख़िरी परत तक
जिसकी पहुँच हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसकी निर्मल चेतना
घेरे मन और मगज हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसकी मीठी वेदना
अंतर्मन की समझ हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसके पार तुम्हें देखना
मेरे लिए सहज हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसकी अनुभूती के लिए
उम्र भी एक महज हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसमें सूर्य सी उष्मा हो
जिसमें चांद सी शीतलता
जिसमें ध्यान की आभा हो
जिसमें प्रेम की कोमलता
जिसमें लोच हो डाली सी
जिसमें रेत हो खाली सी
जिसमें धूप हो धुंधली सी
जिसमें छाँव हो उजली सी
जो तन मन को दे उमंग नयी
जो यौवन को दे तरंग नयी
जो उत्सव बना दे जीवन को
जो करूणा से भर दे इस मन को
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसकी अनुभूती के लिए
उम्र भी एक महज हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
संवेदना की आख़िरी परत तक
जिसकी पहुँच हो।
रिज़ल्ट-कार्ड
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८, ७॰५
औसत अंक- ७॰३३३३
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
७, ९॰५, ७॰९, ७॰८, ५॰१६, ७॰३३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰४४८८८
स्थान- आठवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता में अतिरिक्त फैलाव है,जिस कारण भाव खो गए हैं।
अंक- ४
स्थान- पाँचवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रस्तुतिकरण भी साधारण है। शिल्प में भी कसावत नहीं है। रचना में कई बिम्ब बेहद सुन्दर बन पडे़ है
”जिसमें चाँद सी शीतलता,
जिसमें ध्यान की आभा हो”
“जिसमें लोच हो डाली सी
जिसमें रेत हो खाली सी
जिसमें धूप हो धुंधली सी
जिसमें छाँव हो उजली सी”
कविता को इंतजार है कि कवि उसे थोड़ा समय दे कर कसे, निखारे।
कला पक्ष: ६॰५/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १२॰५/२०
पुरस्कार- सुनील डोगरा ज़ालिम की ओर से उन्हीं की पसंद की पुस्तकें।
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसमें सूर्य सी उष्मा हो
जिसमें चांद सी शीतलता
जिसमें ध्यान की आभा हो
जिसमें प्रेम की कोमलता
जिसमें लोच हो डाली सी
जिसमें रेत हो खाली सी
जिसमें धूप हो धुंधली सी
जिसमें छाँव हो उजली सी
जो तन मन को दे उमंग नयी
जो यौवन को दे तरंग नयी
जो उत्सव बना दे जीवन को
जो करूणा से भर दे इस मन को
सजीव जी, कविता अच्छी है सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया है आपने। कविता का अंत असाधारण है:
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
संवेदना की आख़िरी परत तक
जिसकी पहुँच हो।
बधाई आपको
*** राजीव रंजन प्रसाद
सजीव जी!
कविता का भाव-पक्ष अच्छा बन पड़ा है. शिल्प पर भी थोड़ा और ध्यान देते तो रचना और भी निखर सकती थी. फिर भी कुल मिलाकर एक सुंदर कविता!
अच्छी कविता है।
सजीव जी हमेशा ही अच्छा लिखते हैं । प्रेम की कामना की सुन्दर अभिव्यक्ति है ।
कविता तो अच्छी बन पड़ी है ...
पर यहाँ ज़रा स्पष्ट करें कि इस पंक्ति का क्या अर्थ है।
"घेरे मन और मगज हो"
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसके पार तुम्हें देखना
मेरे लिए सहज हो
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसकी अनुभूती के लिए
उम्र भी एक महज हो
सजीव ज़ी बहुत ही सुंदर लगी आपकी यह रचना
Ek shabd....Atisundar...
Best Wishes
Anu
बेनामी जी,
'मग़ज़' फ़ारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है दिमाग, मस्तिष्क । मैं भोजपुर बोली-क्षेत्र से हूँ वहाँ कई ज़गहों पर दिमाग के अर्थ के लिए 'मगज़' का प्रयोग प्रायः होता है। प्रयोग के स्तर पर सजीव जी ने 'मन और मस्तिष्क' या 'दिल या दिमाग' के स्थान बहुत ही सुंदर 'मन और मग़ज़' का प्रयोग किया है।
दुष्यंत कुमार जी ने भी अपनी हिन्दी-ग़ज़लों में संस्कृत और अरबी-फ़ारसी के बहुत सुंदर जोड़े बनाये हैं।
ऐसा स्पर्श दे दो मुझे
जिसमें सूर्य सी उष्मा हो
जिसमें चांद सी शीतलता
जिसमें ध्यान की आभा हो
जिसमें प्रेम की कोमलता
कोमल भावों की मधुर अभिव्यक्ति है।
सुन्दर रचना के लिए बधाई।
कविता अच्छी है.......
गति भी है .......
परंतु "ऐसा स्पर्श दे दो मुझे " पंक्ति की पुनरावृत्ती के कारण एकरसता जान पढ़ती है........
शिल्प कसा हुआ जान पढ़ता यदि यह पंक्ति हटा कर कुछ और लायबाद्धता के साथ जोड़ दिया जाता........
पर तब भी अंतिम पंक्तियों मे आपने बिंब डालकर अचंभौतापान्न किया है.......
और भावो की तरफ़ से तो कविता अत्यंत ही सुंदर जान पड़ती है
सुन्दर कविता है। परन्तु कविता की संरचना इसका आर्कषण केन्द्र दुर्लभ बना देती है। उम्मीद है कि अगले यूनिपाठक आप हॊंगें।
गहरे भाव लिए हुए है आपकी कविता, बस प्रस्तुतिकरण पर थोड़ी और मेहनत होती तो और प्रभावोत्पादक बन सकती थी।
बहुत शुभकामनाएँ।
सजीव जी कविता भी आपके नाम की तरह सजीव है बहुत सुंदर भावो की अनुभूती है...बधाई
कभी-कभी कवि एक पंक्ति या एक ही भाव को पकड़कर उसे नये-नये बिम्बों से फैलाना चाहता है। जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ यहाँ कवि 'ऐसा स्पर्श दे दो मुझे' का विस्तार करना चाहता था, किया, लेकिन पाठक उससे नहीं जुड़ पाया। इस तरह के लेखन में चमत्कार-सा होना चाहिए, जहाँ आप चूक गये हैं। चूँकि भाव या बातें भी नई या अनूठी नहीं हैं, इसलिए बाँध नहीं पातीं।
सुन्दर मन को छूते हुये भावों से ओतप्रोत कविता.. और भी सुन्दर बन जाती है क्योंकि सरल शब्दो में आम दिलों मे सीधे उतरती है... बधाई
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