गृहस्थी
दोस्तों से
दो चार ग़म,उधार लेके
शुरु की
गृहस्थी अपनी
आज......
हजा़र ग़मों का मालिक हूँ।
उजाला
मैं
और
मोमबत्ती
बारी-बारी जलते हैं
इस कमरे में
हमेशा उजाला रहता है।
बारिश की फसलें
धरती पर
पानी का अंबार देखकर
बाढ़ में डूबते गाँव-गिराँव देखकर
बडा़ खुश होता होगा वो
जिसने भी बोई होंगी
बारिश की फसलें
अपील
अपने नैनों के
डोरे में फंसा कर
सिल दिया है
उसने मुझे,ग़म की बर्फ़ में
बातों की आँच दो यारों
कु्छ बर्फ़ पिघले
दर्द
दहेज़ से जली
बेटी को
बाप ने जब
आग देनी चाही
लाश बोल पडी़....
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
दिल को छू गयी।
मनीष जी,
बहुत ही उत्कृष्ठ क्षणिकायें हैं।
"आज......
हजा़र ग़मों का मालिक हूँ।"
"इस कमरे में
हमेशा उजाला रहता है।"
"जिसने भी बोई होंगी
बारिश की फसलें"
"बातों की आँच दो यारों
कु्छ बर्फ़ पिघले"
"बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।"
क्षणिका का जिस प्रकार आपनें अंत किया है वह पढते ही स्तब्ध कर देता है। बहुत छूती हैं आपकी ये क्षणिकायें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मनीष जी,
काफी समय के बाद युग्म पर आपको देख कर हर्ष हुआ है
आपकी क्षणिकायें बहुत ही संवेदनशील हैं, कुछ क्षणिकायें धीरे से असर देती हैं तो कुछ बहुत निर्दयता से भेद जाती हैं
"गृहस्थी" बडी सच सी लगती है|
"मैं
और
मोमबत्ती
बारी-बारी जलते हैं
इस कमरे में
हमेशा उजाला रहता है।" ...... क्या बात है, सुन्दर
"बारिश की फसलें" चुभने वाला व्यंग्य है, दुआ है कि उसकी भी समझ में आये जिसे कहा है आपने
"अपील" देर से की आपने :-)
"दर्द" ने भीतर तक सिहरा दिया है,
"बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है। "
हृदयस्पर्शी क्षणिकायें पढवाई आपने, हार्दिक धन्यवाद
सस्नेह
गौरव शुक्ल
हिन्द युग्म पर लगता है कि क्षणिकाओं का महोत्सव चल रहा है। लगभग सभी स्थाई कवि क्षणिका प्रस्तुत कर चुके हैं वह भी एक माह के भीतर ही। यह अच्छा है - क्षणिका पडने का आनंद और अनुभूती एक बडी कविता के मुकाबले अधिक है।
आपकी सभी क्षणिकाये श्रेष्ठ हैं खासकर "दर्द"
मनीष जी सभी बहुत अच्छी हैं । पर 'दर्द' बहुत मर्मान्तक है।
मनीष जी, क्या कहूँ शब्द नहीं मिल पा रहे हैं..हर एक क्षणिका ने दिल को छू लिया... पहली और आखिरी दोनों क्षणिका सबसे ज्यादा पसंद आई..
शायद ही कोई पाठक होगा जिसे 'दर्द' में दर्द महसूस न हुआ हो..
"बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।"
दहेज़ से जली
बेटी को
बाप ने जब
आग देनी चाही
लाश बोल पडी़....
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
waah Manish ji, kya adbhoot hai yah kavita aap ki. haan ek baat aur bhi baat kahna chahunga ki koi badkismat baap ko hi aisa dukh jhelna padta hai, ki jali hui beti ko fir jalana padta hai.
मनीष जी!
आज बहुत समय बाद युग्म पर आपको देख कर खुशी हुयी. बहुत ही खूबसूरत और प्रभावशाली क्षणिकायें लेकर आये हैं आप. बधाई स्वीकारें.
आपको पढ़कर बार बस ही मुँह से वाह निकलती है
आपकी क्षणिकायें सीधे दिल से निकली हुई हैं अर्जुन के निशाने की तरह सीधे लक्ष्य को भेदती हैं
किसी एक का उल्लेख करना व्यर्थ है सारा का सारा लेखन ही अत्यधिक स्तरीय |
बधाई .......
मनीष जी , आज आपने मुझे स्तब्ध कर दिया है। मूक हो गया हूँ मैं ,क्या लिखूँ। क्षणिका लिखने में आप सिद्धहस्त प्रतीत हो रहे हैं। सारी क्षणिकाएँ दिल को छू गईं , लेकिन "दर्द" ने दिल पर गहरा वार किया है। हमारे समाज का दुर्भाग्य है यह कि यहँ बहुएँ जलाई जाती हैं। दुआ करता हू`ं कि किसी पिता को ऎसा दिन न देखना पड़े।
मनीष जी
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ हैं । मज़ा आ गया । शुभकामनाओं सहित
In sab kshanikaayon ke ant behtareen hain.....khaas taur par aakhri ksanika ne man kured diyaa
आज......
हजा़र ग़मों का मालिक हूँ।
इस कमरे में
हमेशा उजाला रहता है।
बडा़ खुश होता होगा वो
जिसने भी बोई होंगी
बारिश की फसलें
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
दर्द
दहेज़ से जली
बेटी को
बाप ने जब
आग देनी चाही
लाश बोल पडी़....
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ हैं ।"दर्द"दिल को छू गयी।
मनीष जी,
मंत्रमुग्ध कर दिया आप्ने!प्रभावोत्पादक क्षणिकायें हैं।
मैं
और
मोमबत्ती
बारी-बारी जलते हैं
इस कमरे में
हमेशा उजाला रहता है।
या फ़िर
दहेज़ से जली
बेटी को
बाप ने जब
आग देनी चाही
लाश बोल पडी़....
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
सभी एक से बढ़कर एक हैं।
accha likha hai.
15 टिप्पणियाँ वो भी सभी आपके पक्ष मे यह स्वत: सिद्ध है की आप ने उत्करश्ठ रचांयें प्रेशित की है.........
हर एक रचना रुला देती है........
दर्द चूता सा जान पड़ता है..
ऐसा कदापि नही लगा की मै मॉनिटर को देख रहा हूँ.......... लगता है आप के दिल को पढ़ रहा हूँ.............
और क्या कहूँ
अन्यो की तरह किसी एक क्षणिका का उल्लेख ना करूँगा क्यूँकी यह तो अपमान होगा बाक़ी की क्षणिकाओं के साथ..............
बधाइयाँ
एवं आगे की ऐसी ही रचनाओ के लिए शुभकामनाएँ
क्षणिकाएँ बहुत अच्छी हैं सभी। पहले सोचा कि जो पसन्द आईं हैं, उनके नाम लिखूं लेकिन फिर देखा तो सब नाम ही उस सूची में आ गए थे।
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
यह बात बहुत गहरे तक घाव कर गई है मनीष जी।
साथ ही 'उजाला' भी बहुत जला गया। अब आपकी और भी क्षणिकाएँ जल्द ही पढ़ना चाहूंगा।
मनीष जी,
क्षणिका विधा में प्रथम प्रयास और इतना सुंदर। आप पूरी तरह सफल रहे हैं। कम शब्दों में आपने दिल चीर कर रख दिया है। आपकी कविताओं की यह हमेशा से विशेषता रही है कि उनके भाव को पाठक या श्रोता महसूस कर पाता है।
बधाइयाँ!!
शब्दो की भीड़ मे
मौन हो गयी
दर्द इस तरह उतरा
आँखे छलक आयीं
हृदय स्पर्शी, सभी एक से बढ़कर एक
मनिष जी,
आपकी क्षणिकाएँ पढ़कर मन संवेदना प्रधान हो गया। आपकी कविताएँ मै हमेशा से पसंद करता हूँ। आज आप की क्षणिकाए पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त कर के मन प्रसन्न हो गया। मनिष जी मै गर्व महसूस करता हूँ जब हिन्दयुग्म के स्थाई कवियों में आपका नाम पढ़ता हूँ। आप संवेदनाओं की जिस तरह अभिव्यक्त करते है, लाजवाब है। आपको अनगिनत बधाईयाँ, मेरी तरफ से आप एक चाँद की रात और तीन खुशियों के गाँव कबूल करें।
~ तुषार जोशी, नागपुर
सुन्दर... छोटी कटारी घाव करे गंभीर
bahut shandaar
mazaa aa gaya.
sabhi chhanikaye bahut pasand aayi aur khas kar ye
दहेज़ से जली
बेटी को
बाप ने जब
आग देनी चाही
लाश बोल पडी़....
बाबूजी! फिर मत जलाओ
जलने में
बड़ा दर्द होता है।
Bahut dard hai
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