यह पल-दो पल का
साथ तुम्हारा
जैसे पवन बसंती का
हौले से छूकर
आनंदित कर जाना,
जैसे बरखा की किसी
नन्हीं बूँद का
अथाह सागर में
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना ।
ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूँजी ।
यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर …
एक-एक कर
यह पल-दो पल का
साथ तुम्हारा ।
- सीमा
१५ जून, २००१
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी,
इस बिम्ब को सुन्दरता से बुना है आपने:
"जैसे बरखा की किसी
नन्हीं बूँद का
अथाह सागर में
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना ।"
रचना का अंत बहुर सुन्दर है:
"ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूँजी ।
यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर …"
बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बिंब अच्छे है,भाव अच्छे है,कला पक्ष अच्छा है.गति भी है कविता मे,लय भी है टुक भी है,नयी कविता की विशेषताएँ भी है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सबकुछ तो है फिर कविता इतनी शीघ्रता से क्यूं समाप्त कर दी...........
अधूरी सी लगती है..............
पर जितनी है वो प्रभावित करने हेतु पर्याप्त है..........
बहुत अच्छी रचना है........
शुभकामनाएँ
जैसे बरखा की किसी
नन्हीं बूँद का
अथाह सागर में
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना ।
nice imaginery ground......
ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूँजी ।
यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर …
एक-एक कर
यह पल-दो पल का
साथ तुम्हारा ।
excellent emotional touch....
keep writing....good wishes to you
Luv Anu
सीमा जी,
सरल प्रवाह लेकिन भावों का वेग तीव्र है, अच्छे बिम्ब
"जैसे बरखा की किसी
नन्हीं बूँद का
अथाह सागर में
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना ।"
और कविता का अन्त तो पूरी तरह परिपक्व है
"यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर "
आपको पढना सुखद है
सुन्दर रचना के लिये बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
सुन्दर भाव भरी रचना..
हर पल के साथ कोई न कोई याद जुडी होती है और तन्हाई में यही पूंजी होती है जिसे याद करके वाकी की जिन्दगी काटी जा सकती है
"कुछ भूली हुयी यादें, कुछ टूटे हुये सपने
अपने दिल को मैने, बस इनसे ही सजा रखा है"
सुन्दर भावों की अच्छी कविता, लेकिन यदि और बड़ी होती तो और अच्छा लगता।
बधाई।
सीमा जी...बहुत अच्छी रचना है,बधाई।
ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूँजी ।
यादों की माला में पिरो देती हूँ!!
यह "पल-दो-पल का साथ"
"जनम-जनम का साथ" से भी कहीं ज्यादा प्रभावी है।
सफल कविता है ! वैसे इसकी लंबाई के बारे में मैं पीयूष जी और ग़ौरंज़ी से एकदम सहमत हूँ आने हमे और अधिक आनंद लेने से वंचित कर दिया!
वाह सीमा जी!
आपके शब्द वास्तव में मोतियों की तरह पिरोये मालूम होते हैं. बहुत सुंदर!
सींमा जी
अच्छा लिखा है । कभी- कभी पल दो पल का
साथ भी जन्मों के साथ से कीमती होता है ।
मुझे फिल्म का गाना याद आ रहा है -
पल दो पल का साथ हमारा
पल दो पल के याराने हैं ।
उम्र का रिश्ता जोड़ने वाले
अपनी नज़र में दीवाने हैं ।
सीमा जी,
सुन्दर रचना के लिए बधाई।जीवन के प्रति आपकी विधायक सोच प्रसंशनीय है।
जैसे बरखा की किसी
नन्हीं बूँद का
अथाह सागर में
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना ।
बेहद सशक्त पंक्तियाँ हैं ये।
जैसे पवन बसंती का
हौले से छूकर
आनंदित कर जाना
कहीं किसी सीपी में गिरकर
मोती बन
अमर हो जाना
बहुत खूबसूरत बिंब हैं। एक पल का साथ पल-पल के साथ से भी बड़ा होता है , यदि उसमें कई जन्मों का प्रेम भरा हो। आपने उसे बड़े हीं उम्दे तरीके से रेखांकित किया है।
कविता का अंत प्रभावी बन पड़ा है-
यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर
बधाई स्वीकारें।
ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूँजी ।
यादों की माला में पिरो देती हूँ
मैं हर मोती को चुनकर …
कविता भी मोती ही है। बहुत खूब।
-रचना सागर
यह कविता बहुत जल्दी खत्म होती है और बिना कालजयी प्रभाव छोड़े। प्रतीक बिलकुल पुराने हैं। थोड़ा ध्यान दीजिए
कही किसी सीपी मी गिरकर मोटी बन अमर हो जाना
ऐसे पल के मोती ही
हैं बनते मेरे जीवन की पूंजी
अच्छी रचना है . जो सहज भाव आपने अपनी कविता मे उकेरे हैं वह निश्चित तौर तारीफ के हकदार हैं.
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