मीत साथिया साजन दिलवर या तुझको दिलदार कहूँ।
तुझको अब किस नाम पुकारूँ, मैं तुझको क्या यार कहूँ।।
जानम शबनम मधु मधुशाला ये भी नाम तुम्हारे हैं;
तुझको मैं किस रूप में सोचूँ किस रंगत में याद करूँ।
प्रिये प्रिया प्रियतम प्रियवर भी नाम तेरे ही लगते हैं;
मन की मलिका कह दूँ तुमको या ख्वाबओं का यार कहूँ।
तुझ जैसे ही चाँद सितारे सारे नज़ारे तुझ-से हैं;
इनको मैं देखूँ पहले या प्रथम तेरा दीदार करूँ।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
फॅन-दू............यार......
मस्त है.........
बहुत श्र्नगरिक और रोमॅंटिक है
साधुवाद
नाम की महिमा न्यारी है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Priya ko koi bhi naam se pookaariye....priyawar to priwar hi rahegaa...haan alag alag naamon
se kaun sa naam sabse zyada jachta hai? shayd chaad!!!!!
keep writing
luv
Anu
पंकज जी सच कहूं... मजा नहीं आया...आप से अपेक्षायें अधिक है
पंकज जी
आपको पहले भी पढा है,इसीलिये आपसे शिकायत कर बैठता हूँ
आप बहुत अच्छा लिखते हैं लेकिन न जाने इधर क्या गडबड हो गई है
आपके स्तर की यह रचना नहीं है
अन्यथा न लीजियेगा
सस्नेह
गौरव शुक्ल
रचना स्तरीय नहीं है...
नाम कई पर रूप वही सुंदर, ठीक है यह रचना आपकी पंकज जी:)
पंकज़ज़ी ! आप अपने स्तर तक नहीं पहुँच पाए वैसे फिर भी पढ़ने में मज़ा आया |
अच्छी पंक्तियाँ । प्यार के लिए किसी नाम की कोई जरूरत नहीं ।
आपकी भावुकता को सलाम । डूबे रहिए ।
यह कविता आपने आपमे आत्माभिव्यक्ति को व्यक्त करती एक श्रेष्ठ कृति है।
टिप्पणी पर टिप्पणी किया जाना उचित नही है। टिप्पणी रचना पर ही होनी चाहिऐ। अगर कोई रचना में त्रुटि हो तो उसका उल्लेख किया जाना चाहिये ताकि अगली बार सीख मिले। यह कह देना कि स्तर की कविता है या स्तर की कविता नही है यह कविता या कवि दोनो के साथ अन्याय है। चूकिं अभी न कोई महान लेखक है न महान कवि सभी एक प्रकार से हिन्द-युग्म की प्रयोगशाला में परिपक्व होने की कोशिस कर रहे है। अपेक्षाऐ इतनी की जानी चाहिये जितनी पूरी की जा सकें। किसी कच्चे मटके पर थाप उतनी ही दी जानी चाहिये जितनी मटका सहन कर सके। जोर का थाप निश्चित रूप से मटके को छति पहुँचायेगा।
मै पुन: कहना चाहूँगा खास कर युग्म के कवियों से कि अगर रचना में त्रुटि या कमी हो उसकों बताया जाना चाहिये। मात्र यह कह देने से कि स्तर की नही है काम नही चालेगा।
पंकज जी!
रचना में इस बार सचमुच कमी रह गय़ी. आपने इसे गज़ल के फोरमेट में लिखा है, तो उस लिहाज़ से तो काफ़िया और रदीफ तक में गड़बड़ है. अलग अलग देखने पर शेर बहुत अच्छे हैं, पर समग्र रूप में एक उम्दा गज़ल का अह्सास नहीं करा पाते. वैसे इस बार आपने अनुप्रास का प्रयोग बहुत सुंदर किया है.
यह मेरी नितांत निजी राय है और मैं इसमें गलत भी हो सकता हूँ.
महाशक्ति जी और पंकज जी,
मेरी टिप्पणी से यदि आप आहत हुए हों तो उसके लिए मैं हृदय से क्षमाप्रार्थी हूं। मेरा उद्देश्य आपको आहत करना या कवि की आलोचना करना नहीं था। पढ़ने पर रचना मुझे जैसी लगी, मैंने सीधा लिख दिया और मुझे तो यही लगता है कि हम ऐसे मंच पर हैं, जहाँ दिल की बात सच्चाई से कही जा सकती है और यही प्रतिक्रियाएँ देने का उद्देश्य होता है। साथ ही मैं यह भी कहना चाहता हूं कि मैं कवि के स्तर पर कहीं भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रहा, मैं सिर्फ़ इस कविता पर टिप्पणी कर रहा हूँ।
वैसे यह सही है कि मुझे कमियाँ भी बतानी चाहिए थीं।
क्या आपको लगता है कि कुछ पर्यायवाची से दिखने वाले शब्दों के प्रयोग से ही एक अच्छी कविता या गज़ल बन जाती है?
प्रिये प्रिया प्रियतम प्रियवर...यह प्रयोग मुझे तो सुन्दर नहीं लगता।
न ही भावों में नयापन है और न ही प्रस्तुतिकरण में।
पंकज जी, मेरा फिर निवेदन है कि मुझे अन्यथा न लें। कृपया कविता पर फिर स्वयं गंभीरता से विचार करें।
धन्यवाद।
प्रेम में सराबोर कविता है यह।नाम मे क्या रखा है पंकज जी? हर नाम तो उसी की खबर देगा।
तुझ जैसे ही चाँद सितारे सारे नज़ारे तुझ-से हैं;
इनको मैं देखूँ पहले या प्रथम तेरा दीदार करूँ।
इतना भी क्या सोचना कहीं देखिए दिखेगा वही क्योन्कि असली बात तो देखनेवाले नजर की है।
धाराप्रवाह रचना है परन्तु भाव शक्तिहीन हैं। साथ ही पाठकॊं से निवेदन है कि कविता पर टिप्पणी करे ना कि टिप्पणियॊं पर।
मनमोहक रचना है। आजकल ऎसी रचनाएँ मिलती नहीं। लेकिन आप इसे उम्दा बनाने में थोड़ा चूक गए। अनुप्रास का प्र्योग जहाँ रचना में चार चाँद लगाता है , वहीं "यार" और "याद" का बेतरतीब प्रयोग इसे कमजोर कर देता है। अंतिम छंद पूरी रचना में सबसे खूबसूरत है-
तुझ जैसे ही चाँद सितारे सारे नज़ारे तुझ-से हैं;
इनको मैं देखूँ पहले या प्रथम तेरा दीदार करूँ।
कुल मिलाकर एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
गज़ल अच्छी है.. और भी अच्छी हो सकती है, रचनाकार यदि समालोचनाओं को सकारात्मक रूप में ले।
-रचना सागर
जहाँ तक मैं जानता हूँ, आपने बहुत उम्दा-उम्दा कविताएँ व ग़ज़लें लिखी हैं वैसे में इस ग़ज़ल को प्रकाशित करना लोगों की राय जानने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। प्रकाशित करने से पूर्व थोड़ा सोचा करें।
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