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Thursday, August 02, 2007

धारा


मैं संयम नहीं हूँ ,
भावनाओं की धारा हूँ ।
मैं प्रीति हूँ,
दुनिया की रीति नहीं हूँ ।

बहने दो मुझे …
मेरी अशांत धारा को
बन जाने दो लहर;
लड़ जाने दो
पत्थरों से,
चट्टानों से,
बन जाने दो निर्झर ।

मत बाँधो बाँध मुझपर,
ढूँढ़ने दो नए रास्ते
और तय कर लेने दो
समंदर तक का सफ़र ।

रास्ते के पहाड़ों, जंगलों,
शहरों और गाँवों से
गुजरते हुए,
उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम ।

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24 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anupama का कहना है कि -

Choti magar bhaavpoorna kavita...magar ek baat spasht nahi hui is kavita me ki dhaara yeh sab kyun karna chahati hai:) good work keep writing

Anil Arya का कहना है कि -

अच्छी उडान है... बधाई...

anuradha srivastav का कहना है कि -

कविता में प्रवाह है ।

36solutions का कहना है कि -

अच्‍छी कविता, भावनाओं का सुन्‍दर प्रवाह

पढें नारी पर विशेष एवं अपनी टिप्‍पणी देवें 'आरंभ' पर

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

रास्ते के पहाड़ों, जंगलों,
शहरों और गाँवों से
गुजरते हुए,
उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम ।
बहुत

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

bahut bahut khub..aap kafi accha likhtin hain .

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सीमा जी..
गूढ रचना है और बहुत ही स्तरीय।

"रास्ते के पहाड़ों, जंगलों,
शहरों और गाँवों से
गुजरते हुए,
उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम ।"

बहुत बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

SahityaShilpi का कहना है कि -

सीमा जी!
रचना कथ्य और कथन दोनों की दृष्टि से उत्तम है. बधाई स्वीकारें.

Anonymous का कहना है कि -

बेहद हल्की और पुश्ट कविता......
पढ़कर कही भी चिंता नही हुई वरन् अच्छा ही लगा ...
इस तरह कि कविता लिखना भी कठिन ही है

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर कविता सुंदर भावों के साथ सीमा जी...बधाई...!!

गीता पंडित का कहना है कि -

सुंदर कविता ....

मैं संयम नहीं हूँ ,
भावनाओं की धारा हूँ ।
मैं प्रीति हूँ,

सुंदर भाव.......

बहने दो मुझे …
मेरी अशांत धारा को

सीमा जी
बधाई!!

Mohinder56 का कहना है कि -

आपने सही लिखा है कि आपकी, मेरी और राजीव जी की रचना मिलती जुलती हो गयी.....विषय चाहे मिलता जुलता हो परन्तु आपने बहुत सुन्दर ढंग से रचना को ढाला है.. बधाई

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

मैं आपकी आकांक्षाओं और भावनाओं का उफान बखूबी समझता हूं और लहर बनने की इच्छा भी...लेकिन कविता पर विचार किया जाए तो यह तार्किक नहीं है।
पहले आप लहर की बात करती हैं, फिर झरना बनना चाहती हैं, फिर यह याद नहीं रख पाती कि झरनों पर बाँध नहीं लगाए जाते, जिनके लिए आप मना कर रही हैं। फिर लगता है कि आप नदी होकर बहना चाहती हैं रास्ते के शहरों और गाँवों से भी। तो क्या नदी उन गाँवों और शहरों को बर्बाद नहीं कर देगी? और इस बात को आप इस अन्दाज़ में कह रही हैं, जैसे यह बहुत ही मनमोहक दृश्य होगा।
वैसे भी यह बाढ़ किसी को गहन से गहनतम कैसे बना सकती है?
मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ, लेकिन साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि कविता सिर्फ़ भावनाओं का उफान ही नहीं है।
कविता अतार्किक हो तो भावनाएं अकेली कुछ नहीं कर पातीं।
वैसे मुझे आश्चर्य इस बात का भी है कि अब तक यह बात किसी ने नहीं की। सब पाठकों से भी निवेदन है कि सच्ची आलोचना करें क्योंकि यह कवि के विकास के लिए भी बहुत आवश्यक होती है।
आशा है आप मेरे सच्चे मंतव्य को समझेंगी और अगली बार और गंभीरता से लिखेंगी।
शुभकामनाएँ।

Dr. Seema Kumar का कहना है कि -

आप सभी की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद ।

गौरव सोलंकी जी, आपकी टिप्पणी बहुत मूल्यवान है । आपसे सहमत हूँ कि कविता अतार्किक हो तो भावनाएं अकेली कुछ नहीं कर पातीं । यह एक नदी का सफर है जो एक छोटी सी धारा से शुरू होती है, नदी और निर्झर का रूप लेती हुई, शहरों और गाँवो से होती हुई और गहरी और बड़ी होती जाती है और गहरे समुद्र में मिल जाती है । शायद आप 'लहर' शब्द के कारण कुछ और अर्थ कगा रहे हैं । लहर तो छोटी य बड़ी, कैसी भी हो सकती है, नदी में भी लहर हो सकती है । और बाँध तो नदी पर ही बाँधी जाती है न । कहीं-कहीं नदी ही निर्झर हो जाती है । निर्झर पर बाँध की बात हो कहीं नहीं की गई है । क्या हर नदी जो शहरों और गाँवों से बहती है उन्हें बर्बाद कर देती है ? मेरा तो मानना था भारत में बदियाँ शहरों और गाँवों को आबाद करती हैं, और यहाँ बाढ़ की बात तो नहीं है कहीं भी ।
मैंने उपर जो लिखा है वह सिर्फ़ यह बताने के लिए कि लिखते समय मेरे दिमाग में क्या रूपरेखा थी । हो सकता है उसे लिखते समय वह भाव यहाँ नहीं आ पाए । आपसे निवेदन है कि एक बार और पढे़ इसे और अगर फिर भी आपको लग रहा है कि कविता अतार्किक है तो बताएँ । अपने मूल्यवान टिप्पणियाँ देते रहें । धन्यवाद ।

- सीमा कुमार

Alok Shankar का कहना है कि -

मैं संयम नहीं हूँ
pahali hi pankti prabhavit kar gayi
mujhe aapki kavita pasand aayi

Gaurav Shukla का कहना है कि -

परिपक्व रचना,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

"बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम "

सुन्दर

सस्नेह
गौरव शुक्ल

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

सीमा जी,
धन्यवाद कि आपने मेरी प्रतिक्रिया को सही ढंग से लिया। मैं पहले भी कह चुका हूँ और फिर से ये दोहराना चाहता हूँ कि मुझे बखूबी पता है कि लिखते समय आपकी क्या मनोस्थिति रही होगी। लेकिन भावनाओं की तीव्रता के कारण बहुत बार ऐसा होता है कि हम बिल्कुल वही नहीं लिख पाते, जो हमारे भीतर चल रहा होता है।
जैसा कि आपने लिखा
बन जाने दो निर्झर

और तुरंत ही अगली पंक्ति में कहा-
मत बाँधो बाँध मुझपर
यहाँ झरने से नदी का संक्रमण भी नहीं बताया और पाठक दिग्भ्रमित हो गया।
साथ ही कविता विद्रोह के भाव लिए हुए शुरु हुई और अंत में बहुत शांत सी हो गई। छोटी कविता में यह भी नहीं जँचता। आशा है, अब आप मेरी बात समझ पाएँगी।
फिर से धन्यवाद।

विश्व दीपक का कहना है कि -

सीमा जी , आपकी उपस्थिति ने हिन्द-युग्म में चार चाँद लगा दिया है। आपकी यह रचना और मोहिन्दर जी की रचना "मिथ्याबोध" में थोड़ी-सी समानता है, लेकिन अंत पूरी तरह से अलग है।

रास्ते के पहाड़ों, जंगलों,
शहरों और गाँवों से
गुजरते हुए,
उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम ।

मुझे आपकी यह रचना बेहद पसंद आई।बधाई स्वीकारें।

Anonymous का कहना है कि -

excellent...in order to understand a poem, one has to have the poetic feeling..it is not literature so tha everyone can read and understand. It is poem, and onl poets can understand the feeling of it. Great going Seema :)

RAVI KANT का कहना है कि -

मत बाँधो बाँध मुझपर,
ढूँढ़ने दो नए रास्ते
और तय कर लेने दो
समंदर तक का सफ़र

नए रास्ते की चाह बिल्कुल प्रासंगिक है।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मेरे हिसाब से यहाँ सीमा जी 'धारा' की बाद कर रही हैं और वह किसी भी स्रोत से फूट सकती है। इसलिए सारे छंद सटीक हैं।

इसी बहाने आपने प्रेम का संदेश दिया है-


उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए

शोभा का कहना है कि -

seemajee
bahut sundar likha hai aapne. bandhan hamesha peeda ka karan hota hai. sansaar ka sabse bada sukh hai-mukt raho aur mukt karo
kyunki hansi phol main nahin
mukti main hai. keep on writing . we need such a nice poetess

अभिषेक सागर का कहना है कि -

उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम

सुन्दर और गहरी कविता

-रचना सागर

गरिमा का कहना है कि -

रास्ते के पहाड़ों, जंगलों,
शहरों और गाँवों से
गुजरते हुए,
उनकी रंगों में रंगते,
उनकी खुश्बू और मिट्टी
समटते हुए
बन जाने दो
मुझे गहन से गहनतम ।

बहूत सुन्दर लिखा है... बधाई।

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