बैठे रहे हम महफिल में इस लिए चुपचाप से
तू पुकरेगा प्यार से , दिल को यह एतबार रहा
अजब सिलसिला है बीतती रातों का यहाँ
आँखो में कभी ख़वाब रहा कभी ख्याल रहा
एक मिट्टी के सिवा क्या है बदन का जादू
उसकी नज़रो में सिर्फ़ यही अक्स क्यूँ आबाद रहा
छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा
हर रंग में हर मौसम में तलाशा हमने ख़ुशी को
पर हर मौसम में बस पतझर का इख़्तियार रहा
मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
43 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह रंजना जी!!
एक नारी मन की मनोभावना का अच्छा चित्रण किया है आपने।
बहुत खूब!!
रंजना जी,
अच्छी कोशिश हैं, महनत हैं, अहसास है।
पर कुछ मेरी समझ से बाहर रहा।
बहुत खूब जी
याद करते रहे
अरविन्द व्यास "प्यास"
छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा
kya baat hai Ranjuji, bahut hi sunder rachna hai yeh,
ye line mujhe kuch jyada hi acchi lagi aapki jo mene upper likhi hai.
Me jyada likhta nahi aur agar likhunga tau jaroo tumhare saath hi share karoonga.
aapka khyal rakhe aur thoda pyar ahmedabad se.
kya likhu aapko ab, dau line hai mere pass, par maine nahi likhi,
"veeraaniyo mai tujhe dhoondha kerte hai,
iss tereh hum waqt poora kerte hai"
Prakash, Ahmedabad
हर रंग में हर मौसम में तलाशा हमने ख़ुशी को
पर हर मौसम में बस पतझर का इख़्तियार रहा
bahut khoob...
Speechless its Awesome..!!
Ranju di... Yahan sirf ek sher ko quote kar ke nahin kahungi ki yeh line sabse achhi lagi...
Saari kavita hi bahut pyaari likhi hai aapne. Ek Ek sher dil ko chuu gaya. Bahut nazdeek se dard ko mehsoos kiya... Bilcul apna sa hi laga. Likhti Rahiyega. :)
Well! well! well! Now that is what I'd say is expertise in lines in all their avataars!!
Lines, as in graphics, are your forte!
Lines, as in words, too are infective.
Good work. Keep it up.
kafi urzawan , avam alnkaro se pari pun , charitirk visheshtao ko liye adbhut rachna ke liye ranjana ji ko sadhuwad
te ab tak kee
aapkee sabse axhhee rachmaa
mujhe lagee.....
har pankti ne man ko chhuaa..
aabhaar
छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा
ye line aapki mujha baut hi achi lagi....aap baut hi acha likhti hai aap baut hi jaldi dil ko cho jana vali rachna likhti hai main tho aapka friend hi ho gaye hon..
mujha aapki or bhi rachna ka intjar rahega,,,,bye tc,,,,aapka friend pradeep gupta(pali raj)
Bahut hi sundar
अजब सिलसिला है बीतती रातों का यहाँ
आँखो में कभी ख़वाब रहा कभी ख्याल रहा
एक मिट्टी के सिवा क्या है बदन का जादू
उसकी नज़रो में सिर्फ़ यही अक्स क्यूँ आबाद रहा
छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा
BAHUT KHOOB...AACCHA LIKHA HAI AAPNE...KHAAS TAUR SE MENTIONED KI GAI LINES MAN KO CHU GAI.....PREM KE VISHAY ME LIKHNE KI AAPKO MAHAARAT HAASIL HAI....KEEP IT UP MADAM.....TAKE CARE
wah wah ! atiuttam !
aapki kavitae to man mohak hai ! humer khushi hui ise pad kar !
Ek mitti ke siwa kya hai badan ka jaadoo???...Uski nazaron mein sirf yahi aks kyun aabad raha...."
I can actually relate to these lines....
वाह रंजना जी,
प्रेम आपका न केवल प्रिय विषय है अपितु इससे संदर्भित भावनाओं को शब्द देनें में आपको महारत हासिल है।
छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा
मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!!
वाह!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
Kya kahein aapki rachna ke baarein mein ... hum to jaise mook hi ho gaye hain... bas kuch kahna chahtien hain aapki tareef mein...
jo achhe hotein hain aksar unhe achha hone ka ahsaas nahi hota.
jis tarah kohinoor, apne baare mein lajawab sun ne kaa mohtaaz nahi hota..
रंजना जी हर पंक्ति दिल को छूने वाली है ।
बहुत सुन्दर लिखा है ।
दिल की गहराईयों मे उतर कर आप हर बार जो प्यार को एक नई अन्तर्दृष्टि देती हैं, वो वाकई काबिले-तारीफ है। दिल की अनुभूति को शब्दों मे पिरोना ; एक रूहानी अहसास को अल्फाजों से पैकर करना , बड़ा ही कठिन होता है और इस विधा मे प्रभु की आप पर असीम अनुकम्पा है।
"एक मिट्टी के सिवा क्या है बदन का जादू
उसकी नज़रो में सिर्फ़ यही अक्स क्यूँ आबाद रहा "..... लाइनें मन को छू गई।
गजल है;नये जमाने की है, सो शिल्प पर चर्चा करना व्यर्थ है। मीटर और पैमाने की बात करें, तो बेकार के विवाद उठ खड़े होंगे। आप खुद परिपक्व एवं समझदार हैं, मे्रे विचारो को अन्यथा नही लेंगी।
साभार,
श्रवण
Hmm...............
really............best so far.
kya khub likha hai aap ne , wahh
ek kavi hote huee bhi, mere pass shabd nahi hai, aap ki tarif ke liye wah............
रंजना जी, ऐसा आप कह सकती है. कि मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!! वरना लोग तो कहते है पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले झूठा ही सही.
अरे!हटा दिया तुमने मेरा लिखा शेर !!!
इतना बुरा भी तो न नहीं लिखा था।
रंजना जी!
भाव की दृष्टि से रचना बहुत सुंदर है. मगर आपने इसे गज़ल के तौर पर लिखा है और उस हिसाब से कई शिल्पगत खामियाँ नज़र आतीं हैं. आशा है कि इस पर ध्यान देंगी और मेरे इस कथन को अन्यथा नहीं लेंगीं.
अब किस पंक्ति की तारीफ़ करूँ.... हर एक शेर लाजवाब है.......
आदाब अर्ज़ है...
सभी तारीफ़ कर रहे है अब कुछ कहने लायक बचा ही नही है
तब भी भाव और कला का अदभुत संगम है आपकी कविता
इक शेर लाजवाब है
मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!!
कल 'मैं शायर बदनाम' के नाम से इस कविता पर टिप्पणी आई थी, जो पता नहीं कहाँ से हट गई। सभी प्रबंधकों से पूछा गया, नहीं पता चला। चूँकि सभी कमेंट पोस्ट होते ही एक मेल पर सुरक्षित होते हैं, इसलिए उसे वहीं से उठाकर यहाँ पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है-
खास आपके लिये ये शेर अर्ज़ है।
मौहरमा,बे-बहर लगती हैं ये ग़ज़लें तुम्हारी
कि हर्फ़ ज़रा कभी अपना संभाल कर रखिये
हम पूरी टीम की तरफ़ से 'मैं शायर बदनाम' से माफ़ी माँगते हैं।
रंजना ही हमने कविता छोड कर गजल पर हाथ आजमाने चाहे तो आपने वहां भी पदापर्ण कर लिया वो भी जोर दार अंदाज के साथ... अब आप ही बतायें हम कहां जायें........
लिखते रहिये
आनन्द नहीं आ पाया रंजना जी।
साथ ही गज़ल में बहुत सारी शिल्पगत खामियाँ भी हैं।
आशा है अगली बार आप एक ज्यादा ख़ूबसूरत गज़ल पढ़ने को देंगी।
शुभकामनाएँ।
very good ranju ji bahut khob
अजब सिलसिला है बीतती रातों का यहाँ
आँखो में कभी ख़वाब रहा कभी ख्याल रहा
apki kavitaoan ke barre mein kya kehna....
aap hamesha dil ko chunne wali baat karte hai..
एक मिट्टी के सिवा क्या है बदन का जादू
उसकी नज़रो में सिर्फ़ यही अक्स क्यूँ आबाद रहा
bahut gahara arth aur sundar rachana
ranjana ji.. aapki rachanaon se adbhut bhavanaye barasti hain
"छिपा के रखा हर दर्द के लफ़्ज़ को गीतों में अपने
जाने दुनिया को कैसे मेरे अश्कों का आभास रहा "
सुन्दर गजल है, प्रेम आपका प्रिय विषय है अच्छा लिखती हैं आप
सस्नेह
गौरव शुक्ल
hi actualy mujh itni shayri atti nahi hai but im a big faan of u..the way u write is owesome...keep it up
मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!!
प्रेम-विरहणी के मान और दर्द की मार्मिक अभिव्यक्ति .
प्रेम आपका प्रिय विषय रहा है, इसलिए इस विषय पर कुछ बोलना मेरे लिए असंभव है। आप हर बार प्रेम को एक अलग हीं रूख देती हैं, जो काबिले-तारीफ है। लेकिन मैं गौरव सोलंकी जी से भी सहमत हूँ, जिनका कहना है कि कई सारी शिल्पगत खामियाँ हैं। मसलन "काफिये" में "आबाद" और "आभास" का प्रयोग जरा खटक रहा है। "बहर" भी हर शेर में मुक्तलिफ है। उम्मीद करता हूँ कि अगली बार मुझे आपकी रचना में कोई खामी नहीं दिखेगी।
इतने सारे लोगों के बाद अब मैं क्या बोलूं ?
विषय अगर प्रेम हो और कवियित्रि आप हों तो पढ़ने में हमेशा आनंद आता आया है , और यह परंपरा इस बार भी नही टूटी सबसे अंतिम शेर सबसे अच्छा लगा.......
मत देना मुझे भीख में अपना प्यार तू मेरे हमराही
रख अपनी हमदर्दी पास तू अपने प्यार मेरा उधार रहा!!
udhar le na ya dena hi to mahobat ka ek uphaar hai warna badalti is duniya main kon kiske paas hai mil jaaye is udhar chukane ke bahane se hi warna milna bhi yahan duswar hai
सच कहा जाए तो आपकी लेखनी में प्यार की वो कसीस है जिससे बंजर हृदय में भी अंकुरण फूट पड़े…
काफी अच्छा लिखा है… वह पुकार भी है संयोजन के साथ जो प्रिय की प्रीत में लिपटी है…।
रंजना जी,
आपने भावनाओं को शब्द देने मे अच्छी सफ़लता पाई है।
जब कविता के शिल्प पर मेहनत नहीं होती तो मज़ा नहीं आ पाता। इस ग़ज़ल पर थोड़ा और परिश्रन हुआ होता तो खूबसूरत बन जाती।
जैसे- दूसरा शे'र-
अजब सिलसिला रहा है बीतती रातों का यहाँ
न ख़्वाबों, न ख़्यालों पर मेरा अख्तियार रहा।
नीचे के शे'रों को पढ़ने पर लगा कि इसमें प्रवाह पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जब प्रवाह में लिखें तब भी शब्द-चयन पर ग़ौर न किया गया तो यह चिंताजनक है।
ranjanajee
bahut hi sundar abhiyakti hai. sach main nari jis pyar ko chahti hai vo pyar use kabhi nahin mil pata. is kavita main nari swabhimaan ko bhi khub sundar rup main dikhaya hai. pata nahin kab tak is udhar ka bojh sambhalna hoga. itna sundar likhne ke liye badhayi
bahut sunder . kai baar humare sath esa hi hota hai ki jessee hum pyar karte hai wo humare pyar ki kadar hi nhi karta . any way bahut sunder rachna hai.
गज़ल बहुत अच्छी तरह से लिखी गयी है तथा भावों को संप्रेषित करने में सफल है।
-रचना सागर
रंजना जी.. पढते पढते कृष्णा सीरीयल मे होने वाला एक दृश्य याद आ गया.. जब राधा कृष्ण को अपने प्यार का चिर ऋणी बताती हैं। सुन्दर रचना है बधाई।
ranju jee mujhaa es site se phar k pata chalaa k ehsasaat kia hooty hain jo her koi apney kisi dost k liay apeney DIL main rakhtaa hay.
koi shakhs eysa hoowa karey
na shekaayetin na gelaa karey
kabhi be tahaasha udass hoo
kabhi roye jay behesaab
kabhi chupkey chupkey dabey qadam
meray ageyaa pechey hansaa karey
beraa shoor hay meraa sheher main
kisi ajnbi k qyaam ka
wo qafley kahaan gay
koi jaa k un ka pataa karey
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)