लड़कियाँ ज्यों-ज्यों बड़ी होती जाती हैं,
उनकी आवाज मन्द होती जाती है,
लड़के ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं,
गुस्सेवर और कड़े होते जाते हैं,
लड़कियाँ नहीं रूठती फिर,
कम खीर मिलने पर,
मेले के कंगनों पर
या पिता की डाँट पर,
लड़के ज़िद्दी हो जाते हैं,
पिता पर उग्र होते हैं,
देर से लौटते हैं और ज्यादा खाते हैं,
लड़कियाँ जितनी बड़ी हो जाती हैं,
सबसे उतनी अजनबी हो जाती हैं,
अकेली कम निकलती हैं घर से,
भरोसे खोती हैं, नए किस्सों में आती हैं,
बड़े होकर सभी लड़के जरा आज़ाद होते हैं,
ठोकर में रहे दुनिया, नज़र में ख़्वाब होते हैं,
सभी मर्ज़ी के मालिक हैं, सुने कोई नहीं कुछ भी,
कुछ महज शोर बनते हैं, कुछ इंक़लाब होते हैं,
जवान लड़के
माँओं को उम्मीद लगते हैं,
और जवान लड़कियाँ
बोझ लगती हैं,
बड़े लड़के,
बड़ी बातें, बड़े सपने संजोते हैं,
बड़ी लड़कियाँ,
बड़ी बातों, बड़े सपनों पे रोती हैं,
लड़कियाँ,
जो लड़कों के जन्म पर थाली बजाती हैं,
उम्र भर खाने की फिर थाली बनाती हैं,
हर रोज ढहती हैं मगर हर घर बनाती हैं,
बहुत नम हैं भीतर से मगर मुस्कुराती हैं,
जीती हैं मर-मरकर मगर जीना सिखाती हैं,
बहुत मासूम होती हैं मगर चतुरा कहाती हैं,
बहुत आज़ाद होती हैं मगर गहनों में बँधती हैं,
सुबह सोके तो उठती हैं मगर हर रात जगती हैं,
वही भगवान होती हैं, वही जीवन बनाती हैं,
मगर लांछन वे सहती हैं, घुटन में छटपटाती हैं,
लड़कियाँ पेड़ हैं,
मौन रहती हैं, छाँव देती हैं
और काट दी जाती हैं,
लड़कियाँ नदी हैं,
बहती रहती हैं, सहती रहती हैं
और सूख जाती हैं,
लड़कियाँ किताब हैं,
पढ़ी जाती हैं, फाड़ी जाती हैं
और रद्दी में बेच दी जाती हैं,
लड़कियाँ आवाज हैं,
कही जाती हैं, सुनी जाती हैं
और फिर गुम हो जाती हैं,
लड़कियाँ युद्ध हैं,
लड़ी जाती हैं, जीती जाती हैं
और कोसी जाती हैं,
लड़कियाँ नींद हैं,
सोई जाती हैं, सपने बनाती हैं
और सुबह छोड़ दी जाती हैं,
लड़कियों से कहो,
आवाज बनें पर आग बनें,
अब नींद नहीं, निदाघ बनें,
कोख में मरना बहुत हुआ,
अब कोख से प्यारे फूल जनें,
उन्हें सिखाओ
कि बदन को नहीं,
सपनों को सजाएँ,
चीर डालें घुटन को,
आज़ाद हो जाएँ,
वे किताबें बनें,
जो वेद बन जाएँ,
वे नदियाँ बनें,
जो सूख न पाएँ,
वे पेड़ बनें,
जो काटने वाले का लहू पी जाएँ,
और हाँ,
अब राम नहीं आएँगे अहिल्याओं के लिए,
क्यों न हम सब भी राम हो जाएँ?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
40 कविताप्रेमियों का कहना है :
yaar it is very nice.............. keep on doing this
awesome man...keep up the gud work....
He Prabhu... Atyant hi bakvas kavita hai
अच्छा लिखा है!
wow....gr8 poem.....kab se hum chahate hain ki sab badal jaye...aur hum sab me iski kabiliyat hai...koi margdarshak chahiye...aapki ye kavita badi prernadayak hai.....kripya aur likhiye kuchh aisa...
aur haan .... DRONE jo bolte hain ki ye bakwas hai ...hakikat to ye hai ki DRONE me himmat nahi hai sach sunnne ki...unka dil jalta hai jab koi ladki saamne khadi hokar apne haak ke liye ladti hai...this person is one of them who try to drag back evreytime they see any successful female..they comment,they laugh, they harass....but it wont stop girls to achieve their goals...
so keep it up Gaurav!!!!!!!!!
ram bankae mat dena phir kisiss
sita ko tum banvass
bus yae hii ab ichha hae
kavita ka har shabd sachaa hae
man sae tum nae likha hae
apane likae ko apan karm bananaa
yehi dua hae
Good comparision and good theme
उन्हें सिखाओ
कि बदन को नहीं,
सपनों को सजाएँ,
चीर डालें घुटन को,
आज़ाद हो जाएँ,
वे किताबें बनें,
जो वेद बन जाएँ,
वे नदियाँ बनें,
जो सूख न पाएँ,
वे पेड़ बनें,
जो काटने वाले का लहू पी जाएँ,
और हाँ,
अब राम नहीं आएँगे अहिल्याओं के लिए,
क्यों न हम सब भी राम हो जाएँ?
bahut sundar.
bahut saty baat
aapne kahee...
koee to hai jo aavaaz
utaa sakta hai....kaheen to
agni dhadhakatee hai...
aabhaar
बहुत सुन्दर रचना
चलते रहे ध्येय की ओर निरन्तर्….।………॥
मेरी शुभ कामना……………
सम्भव जैन
भावाव्यक्ति तथा अति-अभिव्यंजना से सजा ये थाल परोसने वाले के लिए भले ही गर्व का विषय हो, पर यूँ लगता है जैसे अतिव्यस्त इस दुनियाँ मे लंच और डिनर एक साथ परोसने की जल्दबाजी हो गयी। मानो तो दो कविताओं को एक साथ जोड़ दिया गया -
"लड़कियाँ ज्यों-ज्यों बड़ी ....
.....................
.......सपनों पे रोती हैं ।"
और
"लड़कियाँ,
जो लड़कों के....
............
............
सब भी राम हो जाएँ?"..... बिल्कुल ही अलग भाव एवं संदर्भ की अभिव्यक्ति है।
अलग-अलग देखो तो, दोनो ही अपने आप मे सार्थक एवं परिपूर्ण रचना है। उस दृष्टिकोण से कवि की तो तारीफ हो सकती है , पर इस रचना की नही। कवि महोदय मेरे प्रिय हैं तथा मैं खुद इस बचकानेपन पे हैरान हूँ ..... आशा है वे मेरे विचारो को सही अर्थ मे लेने की कृपा करेंगे।
साभार,
श्रवण
गौरव जी,
इस रचना पर मेरी मिश्रित प्रतिकृया है। कविता में बिम्ब इतने सुन्दर हैं कि आपकी तारीफ में मैं शब्द नहीं पाता। कविता का कथ्य पुराना होने के बाद भी आज के दौर में अधिक सम-सामयिक है।
लेकिन रचना भटकती है। तुलना पूरी नहीं हुई। तुलना निष्कर्ष तक नहीं पहुँची। आपने साबित किया कि लडके श्रेष्ठ है। कविता यह नहीं बताती कि किस परिस्थिति वश यह विषमता...एसे में कन्या के प्रति लगाव नहीं उत्पन्न करती आपकी रचना, न ही समस्या को सही प्रकार प्रस्तुत करती है।
अचानक आप लडकियों को उकसाते हैं कुछ कर गुजरने के लिये, किंतु इस उकसावे और नैराश्य भरी पंक्तियों के बीच कुछ छूट गया है।
गौरव जी इस रचना के साथ पुन: बैठें।
सस्नेह।
*** राजीव रंजन प्रसाद
शुक्र है ,किसी ने तो सोचा ।
Kavita Chand Main Dhalney Ki Koshish Karen
Dhanyavad
Kavita Chand Main Dhalney Ke Liye Koshish Karo
लड़कियाँ,जो लड़कों के जन्म पर थाली बजाती हैं,उम्र भर खाने की फिर थाली बनाती हैं,
पीडा की सही अभिव्यक्ति है.
बहुत बढिया लिखा आपने . लिखते है तो लोग चाहते भी है कि कोई उनहे पढे. वरना जंगल में मोर नाचा किसने देखा. आप बताते रहिए. हम आपके रास्ते पर चलने की कोशिश करेंगे.
गौरव जी , मैं भी राजीव जी की बात से सहमत हूँ । भाव पक्ष श्रेष्ठ है पर प्रस्तुति में कविता भटकती है । कविता की तरह देखा जाय तो काफ़ी कुछ अधूरा रह जाता है ।
सस्नेह
आलोक
गौरव जी!
आपसे इससे बेहतर की अपेक्षा रहती है. श्रवण जी, राजीव जी और आलोक शंकर जी कीबातों पर ध्यान दीजियेगा.
bahut badiya kavita bhai. ladkiyon ke bare me bilkul sahi chitran. kuchh ladko ko sayad ras na aaye lekin sach kahti hui behad utkristh rachna hai.
ऐसी ही रचनाओ के लिए शुभकामनाए....
मई आबका पंखा हो गया आज से [हा हा हा]
बेहद गंभीर भाव और बेहद गंभीर कविता.....
अब क्या कहूँ...........
ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आई
जो लड़कों के जन्म पर थाली बजाती हैं,उम्र भर खाने की फिर थाली बनाती हैं,हर रोज ढहती हैं मगर हर घर बनाती हैं,बहुत नम हैं भीतर से मगर मुस्कुराती हैं,जीती हैं मर-मरकर मगर जीना सिखाती हैं,बहुत मासूम होती हैं मगर चतुरा कहाती हैं,बहुत आज़ाद होती हैं मगर गहनों में बँधती हैं,सुबह सोके तो उठती हैं मगर हर रात जगती हैं,वही भगवान होती हैं, वही जीवन बनाती हैं,मगर लांछन वे सहती हैं, घुटन में छटपटाती हैं
गौरव जी मुझे आपकी यह रचना आपकी शैली में एक अच्छा बदलाव लगी। लड़कियाँ जो समाज का एक अटूट स्तंभ है , उन्हें हिकारत की नज़रों से देखा जाना और उन्हें अपने हीं घर में अजनबी-सा रखा जाना इस झूठे समाज ्का सच बयां करती है। आपने जिस तरह से इस सच को अनावृत किया है , उसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ।कुछ पंक्तियाँ हृदय को छू गईं-
जो लड़कों के जन्म पर थाली बजाती हैं,
उम्र भर खाने की फिर थाली बनाती हैं,
हर रोज ढहती हैं मगर हर घर बनाती हैं,
बहुत नम हैं भीतर से मगर मुस्कुराती हैं,
जीती हैं मर-मरकर मगर जीना सिखाती हैं,
बहुत मासूम होती हैं मगर चतुरा कहाती हैं,
लड़कियाँ युद्ध हैं,
लड़ी जाती हैं, जीती जाती हैं
और कोसी जाती हैं,
लड़कियों से कहो,
आवाज बनें पर आग बनें,
अब नींद नहीं, निदाघ बनें,
कोख में मरना बहुत हुआ,
अब कोख से प्यारे फूल जनें,
लेकिन कविता का अंत मुझे असमंजस में डाल गया। आप जहाँ लड़कियों में साहस डालने का आह्वान कर रहे थे, वहीं राम और अहिल्या के प्रासंग का वर्णन कर पुनश्च लड़कों के प्रति कोमल से हो गए। शायद मैं इसे समझ न सका या फिर आप कुछ और कहना चाह रहे होंगे।
सर्वकालीन नग्न सत्य को अपनी लेखनी देने के लिए बधाई स्वीकारें।
रचना सुंदर है पर कहीं कहीं उलझ सी गयी है ...
अब राम नहीं आएँगे अहिल्याओं के लिए,
क्यों न हम सब भी राम हो जाएँ????????
.फिर भी इस विषय पर लिखना और पढ़ना
मुझे हमेशा पसंद रहा है ....एक अच्छे विषय पर अच्छी कोशिश है ....
wah......
लड़कियाँ,जो लड़कों के जन्म पर थाली बजाती हैं,उम्र भर खाने की फिर थाली बनाती हैं,
aabhaar aapkaa...
aapne kam-se kam
likhne kaa saahas to kiyaa..
aapkaa prayaas saraahneeya hai..
badhaaee
s-snah
gita p...
गौरव जी
क्षमा कीजियेगा,आपकी इस कविता पर टिप्पणी कर पाने की क्षमता मुझमें नहीं है सो मौन ही रहना चाहूँगा
अगर कभी बाहर आ पाया आपकी कविता से तो अवश्य कुछ कहूँगा| पुनः क्षमा करें
आप बस नमन स्वीकारिये
सस्नेह
गौरव शुक्ल
लड़कियाँ नहीं रूठती फिर
कम खीर मिलने पर,
मेले के कंगनों पर
या पिता की डाँट पर,
नारी-उन्नयन हेतु प्रेरित बेमिसाल रचना है आपकी.
koi ladkaa ladkion ke baare mein itnee gahrai se soch saktaa hai.Vishvaash he nahin hua pahle to.
Keep it up.
अच्छा लिखा है आपने।काफ़ी कुछ सोचने पर विवश
कर देती है ये कविता।
पिछले ३-४ महीनों से 'कादम्बिनी' पत्रिका में तसलीमा नसरीन के निबंधों को क्रमशः प्रकाशित किया जा रहा है। आपकी कविता की बातें और उनकी निबंधों के अनुवाद का सार लगभग एक हैं। बल्कि यह कहूँगा कि उन्होंने आपकी इन बातों को और बेहतर तरीके से रखा हैं, क्योंकि उनका भी उपसंहार तो यही है लेकिन बहुत संदर ढंग से पाठकों के समक्ष आया है। आप इस कविता का फ़िर से मूल्यांकन करें और बेहतर बनायें।
bahut badhiya bhai. yaaniki aapko ladkiyo ke bare me kafi knowledge hai. behad achha likha ab ram koi nahi aayega isliye khud ko ladkiyo ko nahi pathar banana hoga.
बहुत अच्छा लिखा आपने बधाई.
बहुत अच्छी कविता है। एक महिला होने के नाते मैं आपके विचार से सहमत हूँ।
-रचना सागर
अगर यह कवित किसी लड़की ने लिखी होती तो शायद अलग अन्दाज से पढ़ती...
पर अभी अभी पढ़ने के साथ कुछ सवाल खड़े हो रहे है, यहाँ तो नही पुछ सकती माहौल बदल जायेगा...
कविता के भाव स्पष्ट हैं...मार्मिक और सीधे तौर पर वार कर रहे हैं समाजिक परिवेश को ... पर...
किस राम का इंतजार करूँ, एक नारी की व्यथा तो वो समझ नहीं सके, अपनी ही जीवन संगिनी पर यकिन नही था, फिर आज क्या कर लेते वो...?
हाँ अपनी ढोल बजाने जरूर आते... कोई अहिल्या अपमानित हो जाती उसके बाद उसका उद्धार करते... पूरे रामायण मे यह कड़ी कभी पसन्द नही आयी... आज मुझे ऐसे राम का इंतजार नही है।
गरिमा जी,
आप सवाल पूछती पूछती रुक गईं। निवेदन है कि अपने प्रश्न रखिये। यदि मेरे लायक उत्तर हुए तो अवश्य दूँगा।
हाँ, जहाँ तक आपने राम की बात की, उन्हें पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मेरे साथ समस्या यह रही कि मैंने इस पंक्ति को लिखने से पहले बहुत सोचा, लेकिन ऐसा कोई पुरुष दिमाग में आया ही नहीं, जिसे इस संदर्भ में आदर्श बनाया जा सकता। राम से मुझे भी नाराज़गी रही है, लेकिन बाकी सब मामलों में तो उन्हें आदर्श कहा ही जा सकता है। इसलिए राम लिखा इस पंक्ति में।
रही बात आपके राम से सहमत नहीं होने की...तो आप सही कह रही हैं, लेकिन मुझे आश्चर्य इसी बात का सबसे अधिक होता है कि स्त्रियाँ ही अधिक धार्मिक होती हैं और राम की पूजा करती हैं।
कम से कम स्त्रियों को तो उनके चरित्र के इस पक्ष का विरोध दिखाना चाहिए, न कि अन्धश्रद्धावश बस सिर झुकाना चाहिए।
यहाँ बात मेरे नास्तिक-आस्तिक होने की न आ जाए, इसलिए बन्द कर रहा हूँ।
बाकी मैंने एक कविता लिखी थी- 'सीता होने पर' ।
कभी आपको पढ़वाऊँगा। शायद आपकी शिकायतें दूर हो जाएँ।
प्रतीक्षा में।
बहुत गहरी बात बोली है आपने।
dost bahut achha likha hai aapne..bada hi achh vishya chunkar sachai batayi hai... isi tarah likhte raho..
Hi Gaurav
Nice, you have written such a nice comments on our society based on women issues.
Really congrates for your new venture.
Have a nice time
भई वाह, आज पाडकास्ट पर सुना मन प्रसन्न हो गया। सही कहूँ तो आज आपकी कवित को जब सुन कर आया तो फिर से पढने को दिल कहा। बस और कुछ नही अपनी आवाज को मत रोकिये बहने दीजिऐ।
hey gaurav nice work but i saw a flaw in ur poetry....don take it as criticism.i m much younger dan u....n also write poetry....both hindi n english n frrm lil experience i must say u try to makes d lines rhythmatic....like ven one line ends wid for example"jahan"....den in nxt line may end wid "kahan "...u do so.....as u get more deeper poet u must learn dat rhythm is not much necessary as depth.....read gulzars poetry 2 get what i m saying.....anywayz nice work......
क्यों राम ने कौनसा सम्मान दे दिया था सीता को??
राम भी इसी ढोंगी समाज द्वारा बनाए गए एक हीरो से ज्यादा कुछ नहीं है
koi ladkaa ladkion ke baare mein itnee gahrai se soch saktaa hai.Vishvaash he nahin hua pahle to. velvet bed sheets , luxury comforter sets , gul ahmed comforter , dulhan set bed sheet , bedspreads online , soft cotton mattress , best blankets , razai set online , quilted sofa cover , lawn suits online
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)