कविता प्रतियोगिता के नाम से दिल घबरा रहा था
दिमाग में इक थीम आ रहा था इक जा रहा था
कागज पर कागज काले किये जा रहे थे
मगर कुछ खास न बन पा रहा था
आखिर में थक कर वाईफ़ को काल किया
अपना प्रावल्म उन्हीं पर डाल दिया
वो बोलीं
"घर में रखी ढेर पत्र पत्रिकायें
किसे दिन काम आयेंगी
दो दो लाईन भी उठाओगे तो
पचास कविताये बन जायेंगी"
सर चकराया
समय न होने से आईडिया न भाया
आफ़िस में हमारे साथ शर्मा जी बैठते हैं
बोले कविता लिखने में क्या है
कोई एक शब्द चुन कर
उस के इर्द गिर्द ताना बाना बुन डालो
पहले उसकी बाल में से खाल
और बाद में खाल में से बाल निकालो
बात में बजन था, हमे भाया
हमने अपना शब्द-कोष उठाया
जो छोटा और बजनदार शब्द हमें नजर आया
वो था "भूख"
भूख कई तरह की होती है
इज्जत की भूख,
पैसे की भूख
चन्दे की भूख
धन्धे की भूख
मगर पेट की भूख सब से बडी होती है
जान पर बन आती है जब उठ खडी होती है
पेट पीठ से सट कर
दिमाग सब बातों से ह्ट कर
सिर्फ़ रोटी और रोटी से चिपक जाता है
कोई मासूम भाई या बाप
कभी खुद के लिये
कभी परिवार के लिये
इस भूख की तपन में तप कर
लुच्चा, गुंडा, जेबकतरा
या ह्त्यारा तक बन जाता है
बात छोटी है इसमें क्या शक है
मगर कुछ बातों पर तो सब का हक है
हक जब मिलता नही तो छीन लिया जाता है
जो छीन रहे आज मासूमों की रोटियां उनसे कह दो
और किसी बात पर आये न आये
रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
इक सच है आपने आप रचना में ..उस पर यह तस्वीर हिला देती है .
मगर पेट की भूख सब से बडी होती है
जान पर बन आती है जब उठ खडी होती है
पेट पीठ से सट कर
दिमाग सब बातों से ह्ट कर
सिर्फ़ रोटी और रोटी से चिपक जाता है
मोहिन्दर जी,
बहुत ही अद्भुत रचना है। जिस भाषा में आपने इसे लिखा है वह इसे रोचक भी बनाता है ऐर कविता जैसे ही उफान पर आती है आपने उसे गहरा कर दिया है:
हक जब मिलता नही तो छीन लिया जाता है
जो छीन रहे आज मासूमों की रोटियां उनसे कह दो
और किसी बात पर आये न आये
रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है
बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"और किसी बात पर आये न आये
रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है "
नग्न सत्य परोसा है आपने। बधाई।
रचना पढकर एक शब्द बरबस निकल पडा- अद्वितीय ।
रचना का "फ्लो" काफी अच्छा लगा, जो धीरे धीरे बढता है, और जब पूर्ण वेग में आता है तो बहुत कुछ सोचने पर विवश कर जाता है ।
"हक जब मिलता नही तो छीन लिया जाता है, जो छीन रहे आज मासूमों की रोटियां उनसे कह दो
और किसी बात पर आये न आये, रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है"
उम्दा रचना।।।
आपकी लेखनी को प्रणाम करता हूँ ।
आर्यमनु
you always write very expressively
वाह आज जरा हट के मगर आप तो हमेशा ही सुंदर लिखते है क्या कारं है..आखिर राज की बात हमे भी बता दिजिये...
हास्य तो है ही मगर व्यंग्य बहुत अधिक गहरा है...इस तस्वीर ने ज्यादा उभार दिया है...
मगर पेट की भूख सब से बडी होती है
जान पर बन आती है जब उठ खडी होती है
पेट पीठ से सट कर
दिमाग सब बातों से ह्ट कर
सिर्फ़ रोटी और रोटी से चिपक जाता है
सही है
शानू
अद्भुत रचना, मोहिन्दर भाई! अधिक कहने को शब्द नहीं हैं मेरे पास. वैसे भी पहले ही काफी कुछ कहा जा चुका है.
बेहद खूबसूरत और प्रभावपूर्ण रचना के लिये हार्दिक बधाई.
बात में बजन था, हमे भाया
हमने अपना शब्द-कोष उठाया
जो छोटा और बजनदार शब्द हमें नजर आया
वो था "भूख"
मोहिन्दर जी.. बहुत अच्छा मोड़.. और प्रवाह अद्भुत।
बात छोटी है इसमें क्या शक है
मगर कुछ बातों पर तो सब का हक है
कविता की जितनी प्रशंसा की जायेगा कम है।
कविता के आरंभ में लगा कि आगे ना पढूं परन्तु चित्र ने जॊडें रखा। अन्त तक पहुंचते पहुंचते अपनी भूल का अहसास हुआ तथा लगा कि दस कविता की प्रशंसा ना की जाए तॊ पाप हॊ जाएगा।
इस बार सही नव्ज पकड़ा है आपने क्या हास्य और ठहाको के साथ पूरी दुनिया की नीव को पकड़ लिया…
मजा आगया पढ़कर…मेरी बधाई स्वीकारे!!!
बहुत सुना था हम विकास के पथ पर हे, आज आप ने सच दिखा दिया, मे बस फ़ोटो को देख कर हेरान रह गया.
ह्क जब मिलता....
मोहिन्द्र जी ध्न्य्वाद
mohinder ji, kya kahun kis gambheer baat ko is tarah haasay ras main kahne ka aapka ye andaaj behad pasand aaya
bahut hi anuthi kavita
पहली बार ऎसी कोई रचना पढी है मैने, जो हास्य से अपना आधार लेती है,फिर एक बहुत हीं अद्भुत मोड़ लेती है एवं व्यंग्य बनकर सीना छलनी करती हुई निकल जाती है।
हक जब मिलता नही तो छीन लिया जाता है
जो छीन रहे आज मासूमों की रोटियां उनसे कह दो
और किसी बात पर आये न आये
रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है
मोहिन्दर जी आपकी लेखनी को नमन करता हूँ।
आप लेखनी को जो ऊँचाई देने लगे हैं वो प्रत्येक रचनाकार की ख़्वाहिश होती है। सबसे ख़ास बात जो इस कविता की है वो है कविता की भूमिका। आपने हँसते-खेलते ही हमें भूख की औकात और बिसात बता दी है। चौंकाया अच्छा आपने अच्छा , एक तो कविता के स्टाईल से भी दूसरी कविता की कथ्य से भी।
संदेश पर संदेह शायद कोई नहीं करेगा।
और किसी बात पर आये न आये
रोटी की बात चले तो इन्कलाब आता है
इसे ही कहते है ज़ोर का डंका धीरे से बजे.....
कविता हास्य के कारण हल्की हो गयी है की गंभीरता के साथ होते हुए भी.
कविता ख़ुद ही काफ़ी कुछ कहती है
टिप्पणियों की इसे आवश्यकता नही
बधाईयाँ
आपकी रचना अच्छी लगी. विशेष तौर पर अंतिम पंक्तियां- रोटी से इंकलाब आता है.
एक अच्छी रचना के लिये साधुवाद.
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