जिगर जमीन, मेरा दिल है आसमान।
जहाँ भी डाल दूँ डेरा, वहीं मकान।।
हँसी हजार की, है लाखों की मुस्कान;
देता हूँ मुफ्त, अगर मिलें कद्रदान।
गुल है मेरा दिल, मैं हूँ बागवान;
सजाओ इल्म से, मानूँगा एहसान।
आँखों में हैं,ख्वाबों के सैकड़ों तूफान;
साहिल मिलेगा तुमको, ढूँढो कोई उफान।
अरमान हैं खंज़र मेरे, वक्त उनकी शान;
तराशो बेरुखी से, पाओ नई पहचान।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 कविताप्रेमियों का कहना है :
अतिउत्तम।
बिल्कुल अपनी तरह की रचना, जिसका दूसरा कोई सानी नही ।
"हँसी हज़ार की, लाखो की मुस्कान॰॰॰॰॰" शे'र बहुत अच्छा लगा ।
मेरी बधाई स्वीकारिये ।
आर्यमनु
पंकज जी,
मैं आपसे इस तर्ज की गज़ल का कई दिनों से इंतज़ार कर रहा था, मन प्रसन्न हो गया। बहुत गहरा लिखा है..
जिगर जमीन, मेरा दिल है आसमान।
जहाँ भी डाल दूँ डेरा, वहीं मकान।।
हँसी हजार की, है लाखों की मुस्कान;
देता हूँ मुफ्त, अगर मिलें कद्रदान।
वाह!!!!
***राजीव रंजन प्रसाद
मजा आ गया। लम्बे समय के बाद आपकी कलम दिल में उतरी है।
बधाई।
आँखों में हैं,ख्वाबों के सैकड़ों तूफान;
साहिल मिलेगा तुमको, ढूँढो कोई उफान।
वाह!वाह ..बहुत ख़ूब पंकज जी
जिगर जमीन, मेरा दिल है आसमान।
जहाँ भी डाल दूँ डेरा, वहीं मकान।।
खासे यायावर हैं आप तो! सुंदर रचना!
पंकज भाई
अच्छी गजल है खाबोख्याल से सजी हुयी
अरमान हैं खंज़र मेरे, वक्त उनकी शान;
तराशो बेरुखी से, पाओ नई पहचान।
बहुत खूब पंकज जी। मेरी बधाई स्वीकारें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)