आज से १८ दिन पहले हिन्द-युग्म ने राजस्थान की वर्तमान समस्या पर एक काव्य-प्रतियोगिता का आयोजन किया था। जगह-जगह इसकी सूचना दी गई, फ़िर भी प्रविष्टियों की संख्या अपेक्षानुरूप नहीं थीं। मात्र ५ कवियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया जबकि हमने इस प्रतियोगिता में रचनाओं के अप्रकाशित होने की शर्त भी नहीं रखी थी।
यह प्रतियोगिता Aptech Computer Education, उदयपुर द्वारा प्रायोजित थी, जिसको युवा कवि आर्य मनु जी के प्रयास से हिन्द-युग्म मंच से आयोजित किया जाना संभव हो सका।
प्रथम चरण का ज़ज़मेंट हिन्द-युग्म के ज़ज़ के द्वारा ही कराया गया। जिसके बाद बचीं ३ कविताओं को अंतिम ज़ज़ों जिसमें राजस्थान की वयोवृद्ध कवियित्री शकुन्तला जी पवार और सत्यार्थ प्रकाश न्यास, उदयपुर के अध्यक्ष अशोक आर्य शामिल थे, के समक्ष रखा गया। अंतिम तीन कविताएँ क्रमशः कवि कुलवंत सिंह की 'बापू फ़िर न आना इस देश में', श्रीकांत मिश्र 'कांत' की 'आत्याचारम् प्रणमामि' और विपुल शुक्ला की 'राजस्थान की आग' रहीं।
दोनों ज़ज़ों की बिलकुल विपरीत प्रतिक्रियाएँ थीं। कवयित्री शकुंतला जी को विपुल शुक्ला की कविता 'राजस्थान की आग' जँच रही थी जबकि अशोक आर्य जी को श्रीकांत मिश्र 'कांत' की कविता 'आत्याचारम् प्रणमामि' पसंद आ रही थी। फ़िर Aptech Computer Education, उदयपुर के निदेशक के अनुसार उस कविता को विजयी बनाना ज़्याद उचित था जिसके शब्द और भाव एक आम हिन्दी-पाठक को समझ में आ जायें। और यह विशेषताएँ विपुल शुक्ला की कविता 'राजस्थान की आग' में थीं।
कार्यक्रम के संकल्पनाकर्ता श्री आर्य मनु प्रतियोगिता में हिन्द-युग्म पर प्रकाशित कवि राजीव रंजन प्रसाद की कविता 'पधारो म्हारे देश' और '.....श्री कृष्णम् समर्पयामी' पर प्रकाशित कवि देवेश वशिष्ठ 'ख़बरी' की कविता 'मैंने कुछ नहीं छोड़ा है तुम्हारे लिए' को भी सम्मिलित करना चाह रहे थे, मगर हिन्द-युग्म ने उनका यह प्रस्ताव इसलिए नहीं माना क्योंकि हिन्द-युग्म का उद्देश्य नये रचनाकारों को प्रोत्साहित करना है।
विपुल शुक्ला हिन्द-युग्म के मई माह के यूनिकवि भी हैं। उन्होंने जुलाई माह से हिन्द-युग्म की स्थाई सदस्यता स्वीकारने का वचन दिया है। ये बहुत सौभाग्यशाली हैं जिन्होंने एक ही महीने में दो-दो बार प्रतियोगिता में विजयी रहें।
विपुल शुक्ला का पूरा परिचय यहाँ उपलब्ध है।
कविता- राजस्थान की आग
राजस्थान का इतिहास...
परम्पराओं और भावनाओं का सम्मान ...
यहाँ की रेत नहीं साधारण ,
यह है अपनेपन और स्नेह की खान।
आरक्षण का बवंडर....
प्यार की रेत बदली द्वेष में, -
धुएं से भर उठा आकाश..
धूल-धूसरित परंपरा..
मिट रहा समाज !
हाय दुर्भाग्य !
राजनीति की जोंक ने,
चूस लिया विवेक ,
रगों में आरक्षण-संक्रमित रक्त,
क्या गुर्जर, क्या मीणा,
सब एक !
स्वार्थ की आग पर..
राजनीति की हांडी है,
आरक्षण की खिचड़ी कौन खायेगा ?
जंग बाकायदा ज़ारी है !
यह आग खूब भड़कायी थी ,
वोट पाने की जुगत लगायी थी,
आग फैल गयी , दामन जल गया !
पुलिस ने गोलियाँ चला दीं,
मर गये दस-बारह,
अगले दिन पेपर में छप गया !
एक पहिये के चलने से गाड़ी नही चलती ,
सब साथ में चलते है ।
यहाँ गुनेहगार कोई एक नहीं,
दोषी आप हैं और हम भी,
देखिये,अब सब साथ मे रोते हैं ।
नेताओं को क्यों कोसें ?
वो भी तो हम में से ही एक हैं !
गुर्जर भी भाई , मीणा भी भाई ,
दिल से सारे नेक हैं...
पर क्या है..!
आरक्षण जैसे कोई सुन्दर सी लड़की ,
आदमी देख कर बौरा जाता है ,
कैसे भी हो बस पा लूँ,
उचित-अनुचित भूल जाता है !
तेरे पास है मेरे पास नहीं,
यह तेरे-मेरे की प्रवत्ति पुरानी है ।
दोष नहीं दे सकते इसे भी ,
मूलभूत मानवीय गुण है,
बात समझ में आती है ,
लगती जानी पहचानी है।
मगर दोष हो किसी का भी,
इससे क्या?
परिणाम... !
खून का प्यासा इंसान ।
स्वार्थ की भट्टी में ,
भावनायें जल गयीं !
राख निकली द्वेष की,
दिलों को काला कर गयी..।
भूल गये सब,
ये मीणा मेरा भाई था...
मैं घर नहीं था जब..
इसी ने मेरे बच्चे को,
अस्पताल पहुँचाया था ।
भूल गये...
मेरी मोटर जल गयी थी,
खेत में फसल खड़ी थी,
तब इसी गुर्जर ने मुझे पानी दिया था,
सूख जाती फसल वरना,
इसने एहसान किया था.....
भूल गये सब बातें
कारण ?
कम्बख्त आरक्षण की सौगातें !
ओह !
स्वार्थ की ईटों से दब गयी ,
भावनाओं की लाशें,
कर्फ़्यू लगा है ,
पसरे हैं बस सन्नाटें..
साथ में गाते थे फाग के गीत,
आज मारो-काटो की आवाज़ें
चारों तरफ बस गालियों की बौछारें !
सच,
इस आरक्षण के बादल से ,
द्वेष की बारिश आयी ।
भीगा सारा राजस्थान,
पर शीत-लहर पूरे देश में छायी ।
इससे अगर बचना है ,
तो वैचारिक उन्नति का कम्बल चाहिये,
आपा न खोयें कभी ,
इतना सम्बल होना चाहिये ।
अरे ! यह गणतंत्र है ... ,
बातचीत से सब हल होता आया है,
अभी धीरज रखो ..
छाया मनहूसियत का साया है...,
इस आरक्षण की चकाचौंध में,
सब के सब अन्ध हैं,
अरे! कुंभकर्ण की आँख भी छ: माह में खुलती थी ,
पर हमारी सदियों से बन्द हैं ।
महाभारत क्या ? एक बार हुई,खतम हो गयी ,
पर इस कथा का कोई ना अंत है ।
सोचो, समझो,
जो आग लगायी है ,बुझा लो ...
दिल में द्वेष है, गन्दगी है,
हिम्मत करो, धो डालो ।
मत जलाओ दूसरों का घर,
अकेले हो जाओगे..
और जब तुम्हारे घर में आग लगेगी ,
तब खुद को तन्हा पाओगे !
पुरस्कार- Aptech Computer Education, उदयपुर की ओर से रु ५००/- का नक़द ईनाम।
इस कविता के साथ ही साथ चंडीगढ़ निवासी श्रीकांत मिश्र 'कांत' की कविता ''आत्याचारम् प्रणमामि' को यदि प्रकाशित न किया जाय तो यह अन्याय होगा। क्योंकि हमारे असली निर्णयकर्ता पाठकों की प्रतिक्रिया जान लेना आवश्यक है।
आत्याचारम् प्रणमामि
लो स्वीकारो साधुवाद
कोटिश धन्यवाद
सादर प्रणाम
ओ मेरे वैचारिक आक्रन्ता
विश्वासघात
झूठ और फ़रेब तुम्हारा
हैं मेरी अनमोल निधि
और श्वास
चिर अक्षुण अक्षय
आत्याचार तुम्हारे
है अस्तिव तुम्हारा
मेरे कवि जीवन की थाती
तुमने ही तो दिया जन्म
कागज पर 'कान्त' बनाकर
कभी किया निष्काषन
घर से गाँव से
नैसर्गिक अधिकारो से
स्तम्भित मत हो
प्रभो, प्रणाम स्वीकारो
ये जो पीछे भीड़ खड़ी है
उसे मत चकित निहारो
ये सब तो हैं आज
हमारे मीत...
किन्तु तुम ....
विगत कटु अतीत
आज आये हैं
यह सब मेरे साथ
आपका अभिनन्दन
क्योंकि आपके
सत्ता और शोषण से
अनृत के पोषण से
तर्क पर कुतर्क से
शास्त्र पर शस्त्र से
विजयाभिमान ने
स्रजित किया है
निरा निरीह करूण क्रन्दन
मत संकोच करो हे तात
जन्मदाता तुम कवि के
क्योंकि
तुम अटूट बेशर्म
तुम्हीं से युग चलता है
' विघटन' का हर सूत्र
स्रजित तुमसे होता है
हे महाभ्रष्ट. पथ दिग्भ्रामक
बढ़ाना थोड़ा सा कुछ और
झूठ ...... पाखण्ड .....
जन उपेक्षा और स्वार्थ
होगा तभी अमर शायद
युग-युग तक नाम तुम्हारा.
अतः हे श्रद्धेय या जाने हेय
तुमको प्रणाम तुमको प्रणाम
त्राहिमाम् त्राहिमाम्
इनके अतिरिक्त इस प्रतियोगिता में कवि कुलवंत सिंह, कवि सजीव सारथी और कवि सचिन जैन ने भाग लिया।
समय-समय पर हम इस प्रकार की काव्य-प्रयोगशालाएँ आयोजित करते रहेंगे।
विपुल शुक्ला और श्रीकांत मिश्र 'कांत' को बधाइयाँ एवम् सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
हार्दिक शुभ कामनाऐं
विपुल शुक्ला द्वारा रचित् 'राजस्थान की ऑग' के बारे में लिखने के लिये मेरी लेखनी में कोई शब्द नहीं है।
विपुल शुक्ला जी को मेरी तरफ से ढेर सारी बधाईयां और साथ में शैलेश जी को और इनकी संस्था को भी मेरे तरफ से बधाई क्योकि इनके ही द्वारा ही हमें इन नये लेखको की विचारो और कलम की धार का पता चला।
धन्यवाद्
नवीन
विपुल जी,
आपको इस विचार आंदोलित कविता लिखने के लिये बधाई. प्रथम चरण है अभी बहुत आगे जाना है... उर्जावान रह कर लिखते रहें
श्रीकांत जी,
आपकी कविता भी किसी कोण से कम नहीं.. भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनाये
ओज[ज’
पिपुल जी..
आपका लेखन सराहनीय है। आपको पुरस्कार की हार्दिक बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मुझे श्रीकांत जी की कविता ज्यादा सटीक जान पडती है तथा पढने में अच्छी लगती हैं । विपूल शुक्ला जी की कविता भी काफी अच्छी है .......
आदरणीय मित्रगणों,
सादर वन्दे । राजस्थान की आग ने पूरे भारत को सोचने पर मज़बूर कर दिया था । राजस्थान मे जो कुछ घटा, उसे आसानी से कोई भी स्वीकार करने मे हिचकिचा रहा था। मेरे पास भी कई मित्रों के फोन आये, मेरी स्वीकारोक्ति सुनकर मित्रों के मुँह से बस यही अल्फाज़ निकलते कि इस शान्त प्रदेश के लोगों से ऐसी उम्मीद न थी, तब मेरा दिल रो पडता था ।
मेरी माँ की १ जून को दिल्ली के रास्ते "पुरी" जाना था ।और ३० मई को उदयपुर से निकली मेरी माँ ५ जून तक जयपुर मे ही फँसकर रह गई । जयपुर से ना तो लौटकर आ सकती थी, ना ही दिल्ली जा सकी ।
इन सभी घटनाओं ने एक "आम राजस्थानी" को तोड कर रख दिया ।
एप्टेक, उदयपुर के निदेशक श्री एम॰एल॰ तलेसरा को जब मेरी भावनायें पता चली, और उन्होने हिन्दयुग्म को देखा, तो इस प्रकरण पर प्रतियोगिता आयोजित करने को कहा, जिसकी सफल परिणति शैलेश जी की सहायता से सम्पन्न हुई ।
विपुल जी की दो दो उपलब्धियाँ मन को मोहने वाली है । एप्टेक परिवार की तरफ से आपको बहुत बहुत बधाई , साथ ही श्रीकान्त जी को भी बहुत बहुत बधाई, जिनकी रचना को भी काफी पसन्द किया गया और इसी वजह से निर्णायकों को भी निर्णय देने मे परेशानी का सामना करना पडा ।
साथ ही शैलेश जी और सम्पूर्ण "हिन्दयुग्म" परिवार को बहुत बहुत आभार ।
विपुल जी,श्रीकांत जी,..बहुत बहुत शुभकामनाएँ...शैलेश जी आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया
विपुलजी और श्रीकांतजी,
आप दोनों की रचनाएँ बेहद खूबसूरत है, राजस्थान जैसे शांत प्रदेश में आरक्षण के नाम पर जो कुछ घटा, आश्चर्य होता है!
आप दोनों की ही रचनाएँ प्रशंसनिय है, बधाई स्वीकार करें!
श्रीकांत मिश्र 'कांत' की 'आत्याचारम् प्रणमामि' और विपुल शुक्ला की 'राजस्थान की आग' रहीं।
इस विशेष काव्य-कार्यशाला के आयोजन की सफलता पर मुझे तनिक भी संशय नहीं था। हाँ, मगर ऐसे विषय पर जिस पर पाठक भी कविता कर सकता है, वैसे विषय पर भी मात्र ५ कविताओं का आना सोचनीय है। मगर आशा है कि आने वाले दिनों में हम बेहतर से बेहतर अंतरजालीय कवि तैयार करेंगे जिन्हें चली आ रही साहित्य की तारीखों में भी स्थान मिलेगा।
विपुल शुक्ला की सभी कविताओं की ख़ास बात यह होती है कि उसमें बिलकुल यूनीक उपमाओं का प्रयोग किया गया होता है। यह कविता उनकी प्रतिभा का अनुपम उदाहरण है। जैसे-
आरक्षण का बवंडर....
राजनीति की हांडी है,
आरक्षण जैसे कोई सुन्दर सी लड़की
यह कहूँ तो अधिक नहीं होगा कि यह कविता नहीं आरक्षण के कारणों, परिणामों का विश्लेषण है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नेताओं को क्यों कोसें ?
वो भी तो हम में से ही एक हैं !
गुर्जर भी भाई , मीणा भी भाई ,
दिल से सारे नेक हैं...
इससे अगर बचना है ,
तो वैचारिक उन्नति का कम्बल चाहिये,
आपा न खोयें कभी ,
इतना सम्बल होना चाहिये ।
महाभारत क्या ? एक बार हुई,खतम हो गयी ,
पर इस कथा का कोई ना अंत है ।
कविता का संदेश वरण करने योग्य है-
मत जलाओ दूसरों का घर,
अकेले हो जाओगे..
और जब तुम्हारे घर में आग लगेगी ,
तब खुद को तन्हा पाओगे !
ज़ज़ कोई भी होता तो उसके लिए यह तय कर पाना मुश्किल होता कि कौन-सी कविता बेहतर है। श्रीकांत मिश्र 'कांत' की कविता 'आत्याचारम् प्रणमामि' में बहुत करारा व्यंग्य है।
ओ मेरे वैचारिक आक्रन्ता
विश्वासघात
झूठ और फ़रेब तुम्हारा
हैं मेरी अनमोल निधि
बिलकुल सटीक बात-
क्योंकि आपके
सत्ता और शोषण से
अनृत के पोषण से
तर्क पर कुतर्क से
शास्त्र पर शस्त्र से
तुम अटूट बेशर्म
तुम्हीं से युग चलता है
' विघटन' का हर सूत्र
स्रजित तुमसे होता है
Great Job Vipul Ji Great Job.
"Taarif Kya karoon aapki Alfaaj nahi milte"
Keep it up.Grow towards Excellence
God Bless you.
Thanx and Regards,
Rajeev Pandya
Human Resources.
कवि कॊ बधाई एवं आयॊजकॊं कॊ साधुवाद।
दोनों कवियों को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आयोजकों को साधुवाद।
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