तब तक मुझको जीना होगा
सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की
दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की
मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की
मुझको ही कथा सँजोनी है,
मुझको ही व्यथा पिरोनी है
स्मृतियाँ घाव भले ही दें
मुझको उनको सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना
पीडा की इस मधुशाला में
आँसू की खारी हाला में
तन-मन जो आज डुबो देगा
वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
कवि: डॉ. कुमार विश्वास
नोट: डॉ. कुमार विश्वास व्यस्तता के कारण अपनी कविता निर्धारित दिन, यथा समय पोस्ट नहीं कर सके। पाठको को विलंब के लिये "हिन्द युग्म" क्षमा प्रार्थी है। ईमेल द्वारा उनकी कविता प्राप्त हुई है, वह पाठको के सम्मुख प्रस्तुत है।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
विश्वास जी आपकी रचना निश्चित ही आपकी उपस्थिति को बताती है, युग्म पर गीत को स्वर भी दिया जा सकता है, सो अपनी आवाज में यह गीत सुनाऐं भी तो अच्छा लगे। हाँ थोडा उदास जरूर हुए थे आपके विलम्ब को लेकर। आप कुछ दिन पहले कविता मेल कर सकते हैं। युग्म कविताई को समर्पित लोगों का समूह है, जहाँ आपका इंतजार बेसब्री से था। इसलिये थोडा वक्त देना तो आपका दायित्व और आपके पाठकों का अधिकार भी बनता है।
सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
पहले बंध ने ही कमाल कर दिया, मैं कल्पना कर रहा ता कि जब आपकी आवाज में इसे सुना जायेगा तो कैसा लगेगा।
इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
श्रंगारिक दर्द लिखने में तो आपकी सानी नहीं है, पर इस कविता में कर्तव्य बोध भी है और उम्मीद भी।
बधाई।
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
९८११८५२३३६
विश्वास जी,
आज कई पाठकों ने मुझसे व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करके पूछा कि विश्वास जी की कविता कब आयेगी, हमें बहुत इंतज़ार हैं। मैं उनको यह बता-बताकर संतुष्ट करता रहा कि वो प्रेस-क्रांफ़्रेमस में व्यस्त हैं, मगर क्या इस तरह के कारण पर्याप्त हैं? आपके द्वारा ही महीने का मात्र एक दिन चुना जाना, और उस दिन भी आप हिन्द-युग्म पर सशरीर उपस्थित नहीं हैं। यही बात हमारे अन्य सदस्य कवियों के साथ होती तो दुःख की बात नहीं थी, मगर जब नाम बड़ा हो तो काम भी उसी के अनुसार अपेक्षित होता है। आप मेरा ईशारा समझ रहे होंगे। प्रकाशित करने के लिए हम प्रसाद, वर्मा, निराला, अज्ञेय इत्यादि की भी कविताएँ प्रकाशित कर सकते हैं, मगर हिन्द-युग्म ऐसा मंच नहीं है। कवि का स्तर जो भी हो, कविता का स्तर जैसा भी हो, हमारा कवि पाठकों से सम्वाद करने हेतु हमेशा उपलब्ध होता है।
ख़ैर, हम उम्मीद करते हैं कि आप आगे से कुछ कमिटमेंट भी दिखाएँगे।
कुमार विश्वास जी, जैसा कि देवेश जी और शैलेश जी ने कहा कि हिन्द युग्म के पाठकों को आपका बेसब्री से इंतजार रहता है,इसलिए आप अपनी कविता महीने में एक बार हीं सही किसी विधि भी हिन्द युग्म को भेज दें।
और रही बात इस रचना कि तो आपकी इस रचना ने मंत्र-मुग्ध कर दिया है। आपने कवि की जिम्मेदारियों और पीड़ा को बखूबी लेखनी दी है। बस इन्हें आपका स्वर मिल जाए तो कमाल हो जाए। पाठक इसे आपके स्वर में सुनना जरूर पसंद करेंगे।
एक सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
विश्वास जी,
आपकी रचना सम्मोहन,आकर्षण, भावना एवं अभिव्यक्ति का संगम है... बार बार पढने को दिल करता है..
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
ये दो पंक्तियां ही इतना कुछ कह देती है कि अपने आप में एक पूर्ण कविता हैं. व्याख्या करते समय रचना का एक भी शब्द छोडने का मन नहीं दूसरे शब्दों मे पूरी कविता को कहना होगा.
नमन
विश्वास जी,
रचना प्रकाशन में हुए विलंब के कारण आपसे पाठकों की शिकायत तो वाजिब ही है, मगर आपने इस शिकायत को काफी हद तक इस बेहतरीन रचना से दूर कर दिया है.कविता की एक एक पँक्ति दिल में उतरती चली जाती है. किसी भी कविता को एक बार पढ़ने के बाद फिर से पढ़ने की इच्छा पैदा होना, कविता की उत्कृष्टता को साबित करने के लिये शायद सबसे बड़ा मानदंड है और आपकी कविता इस पर खरी उतरती है.
अन्य पाठकों की तरह मुझे भी इस कविता को आपकी आवाज में सुनने की प्रतीक्षा रहेगी. आशा है कि आप कुछ वक्त निकाल कर अपनी आवाज में इसे सुनाकर अनुग्रहीत करेंगे.
डॉ. विश्वास क्यों नयी पीढी के कवि कहे जाते हैं यह उनकी रचना से दृश्टिगोचर होता है।
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
ये दो पंक्तियाँ ही स्वयं में पूरी कविता है। डॉ. साहब नें जो बिम्ब रचना में उकेरे हैं वे निश्चित ही असाधारण हैं जैसे:
"अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की"
"दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की
मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की"
"जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ"
"इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा"
"पीडा की इस मधुशाला में
आँसू की खारी हाला में
तन-मन जो आज डुबो देगा
वह ही युग का मीना होगा"
अन्य पाठकों की तरह ही मेरा भी अनुरोध डॉ. विश्वास से यही है कि युग्म एक सक्रिय मंच है। आपसे हमें कई अपेक्षायें हैं...
*** राजीव रंजन प्रसाद
आखिरी पंक्तियों में 'मीना' का क्या अर्थ है.. मुझे पता नहीं.. इसलिये कविता के रस-ग्रहण में थोड़ी बाधा हुई।
सुंदर एक सुंदर रचना के लिए बधाई विश्वास जी
कविता समय पर उपलब्ध ना हॊने के कारण संशय था पर देर आए दुरूस्त आए।
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
तब तक मुझको जीना होगा
कविता की यह पंक्तियां कवि एवं कविता दॊनॊ की श्रेष्ठता सिद्ध करती हैं।
कविता के स्थान पर टिप्पणी पर टिप्पणी कर रही हूँ इसके लिये क्षमा चाहती हूँ परन्तु उत्तर देना अपना दायित्व समझती हूँ, इसलिये बाध्य हूँ, शैलेश जी ने पूछा है की क्या व्यस्त होने जैसे कारण पर्याप्त हैं, और प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) निभाने का इशारा किया है, पहली बात तो ये है की हिन्द-युग्म भाव को शब्दों मे कहने के लिये माध्यम है यदि इशारों के बजाय सरल शब्दों मे बात की जाये तो ज्यादा श्रेयेस्कर होगा, रही बात प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) की और पाठकों की प्रतीक्षा की तो डा॰ विश्वास पाठकों की प्रतीक्षा के प्रति सचेत थे तभी उन्होने अपनी उस घोर व्यस्तता में भी समय निकाला और कविता ई-मेल से प्रेषित की, हाँ कुछ व्यवसायिक मजबूरिया होती हैं कुछ आपात स्थितियाँ होतीं हैं जिन पर इशारों अथवा व्यंग्य करने की बजाय उन्हे समझने की कोशिश की जानी चाहिये, डा विश्वास अपने पाठकों के प्रेम एवँ प्रतीक्षा को समझते हैं एवं उनका सम्मान करते हैं और उम्मीद करते हैं की पाठकगण भी उनकी स्थिति को समझेंगे एवँ उनकी व्यव्यसायिक मजबूरियों का सम्मान करेंगे।
आशा है उनकों इतने पाठकीं से सीधे जोडकर उनको सम्मान देने वाला हिन्द-युग्म भविष्य में उन की प्रतिबद्धता पर संदेह करके उनके अपमान की चेष्टा नही करेगा।
aaj vishwasji ki kavita aur kuch vishesh tippaniyan padh raha tha......shaileshji ki tippani aur fir silkyji ka VISHWAAS ki pratibadhhta jaise shabd itni jaldi tay nahi kiye jaane chahiye..dono apni jagah bilkul theek hain...ab shailesh ji ki bhi majburiyaan hain.....unki bhi hindyugm ke paathkon se pratibadhta thi ki falaa samay par vishwasji ko prastut karenge.....so, kah gaye do baatiyaan.........itna bura nahi maante madam...
कुमार जी
कवि का कार्य गुरूत्तर तो है किन्तु इस कविता में मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि आप
इसे एक मज़बूरी मान कर क्यों निभा रहे हैं ? मीरा, सीता या राधा अमर हैं उनकी
पीड़ा समाज जानता है । हाँ एक कवि के रूप में यदि आप सेतु बनना चाहें तो
बुरा नहीं । मेरा सुझाव है कि आप सहर्ष यह कार्य करें । सस्नेह
Same here... But mujhe btaya gya ki iska arth chamak se h...
कुमार भैया
ज्यादातर आपके चाहने वाले आपको इसी नाम से जानते हैं। मैं आपकी कविताओं में तो आपकी बेबाक भावनाओं से परिचित हूं ही लेकिन इंडिया टीवी पर आदरणीय रजत शर्मा जी के आपकी अदालत कार्यक्रम में आपने जिस स्पष्टता, मुखरता और सच्चाई से अपनी बातें कहीं है वह वास्तव में काबिले तारीफ हैं। राजीनति की अच्छी जानकारी होते हुए भी आप उस दलदल में धंसे हुए राजनीतिज्ञ नहीं वरन उस कीचड़ में कमल समान हैं।
जहां तक आपके कवि हृदय की तारीफ सभी करतें हैं लेकिन जब आप हमारे काव्य जगत के पुराने कवियों की चर्चा करते हैं तो आप न केवल अध्ययनशील और मननशील हैं बल्कि एक सकारात्मक सृजनशील हैं। कृपया सदैव ऐसे ही रहिएगा।
पूनम सुभाष
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