लगातार तीन बार से 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में भाग ले रहे कवि कमलेश नाहता जी की 'पाँच क्षणिकाएँ' इस बार भी चूक गईं। इस बार इनकी यह कविता टॉप १० (छठवें पायदान पर) में तो रही, मगर यूनिकविता तक नहीं पहुँच सकी। कमलेश नाहता में अत्यधिक सम्भावनाएँ दिखती हैं। उम्मीद है कि जून माह के यूनिकवि वही होंगे। हम तो उनकी कविता और उस पर विवेचना लेकर प्रस्तुत हैं।
कविता-पाँच क्षणिकाएँ
बिखरते नीरादों से अञ्जुली भर आचमन माँगता हूँ ।
अस्ताचल चले सूर्य से दो किरणें माँगता हूँ ।
तड़पती रूह और अतुल वेदना से मुक्त होने -
अर्ध स्तब्धता में पूर्ण विराम माँगता हूँ ।
…………………
दम तोड़ती इन सांसों की
आहट अब नाद लगती है ।
नित्य कर्मों की अटूट लड़ी
अब अर्थहीन किताब लगती है ।
सित आत्मा का मंथन
स्याम पड़ता हूँ पाता -
नर्म आहों की धूम रेखाएँ
अब काली कविता लगती है ।
....
पल पल ' मैं ' को माया बंदी पता,
विचित्र बन्धन -
कैसा यह अनुराग है ?
बस चलते-चलते मैं उड़ना भूला,
विधि का लेख या -
कोई मेरा अभिशाप है ?
...............
है वोह दामिनी या,
कोमल कलि की सिहरन ?
प्रणय-निवेदन कैसे करूं -
क्षण-भंगुर दोनों का जीवन ।
………….
अभिलाषाओं की हाट लगी थी
बिखरा दाना दाना -
कैसा यह व्यापार ?
फिरे चातक
या समय का फेर ?
होता केवल -
तृष्णा से अभिसार ।
कवि- कमलेश नाहता
प्रथम चरण के अंक- ८, ८, ६, ९॰५, ६
औसत अंक- ७॰५
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट के बाद कविता का स्थान- ५वाँ
द्वितीय चरण के अंक- ७, ६॰९, ८॰५, ७॰५ (प्रथम चरण का औसत अंक)
औसत अंक- ७॰४७५
दूसरे चरण के ज़ज़मेंट के बाद कविता का स्थान- ६वाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
क्षणिका “सार में संसार” वाली विधा है और कवि इसमें सफल भी हुए हैं। कुछ पंक्तियाँ कवि की गहराई स्वत: बयां करती हैं जैसे:
”तड़पती रूह और अतुल वेदना से मुक्त होने -
अर्ध स्तब्धता में पूर्ण विराम मांगता हूँ “
”बस चलते-चलते मैं उड़ना भूला,
विधि का लेख या -
कोई मेरा अभिशाप है ?”
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १२/२०
पुरस्कार- डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
कवि कमलेश नाहता जी की 'पाँच क्षणिकाएँ' भले चूक गयीं, पर बताती हैं कि वे साहित्य के प्रति कितने गम्भीर हैं।
बधाई।
कमलेश जी..
आप जिस प्रकार की क्षणिकायें लिखते हैं वैसी आज कम ही लिखी जा रही हैं। बहुत ही गहरी और शिल्पगत सौष्ठव से ओत प्रोत..
*** राजीव रंजन प्रसाद
क्षणिकाओं की कसौटी का मुझे ज्ञान नहीं, मगर कह सकता हूँ आपकी क्षणिकाओं में भावनाओं का ज़ोर है। विशेषरूपेण
अभिलाषाओं की हाट लगी थी
बिखरा दाना दाना -
कैसा यह व्यापार ?
फिरे चातक
या समय का फेर ?
होता केवल -
तृष्णा से अभिसार ।
में।
कमलेश जी,
क्षणिकायें सुंदर हैं पर कहीं कहीं कुछ कमी सी महसूस होती है। छोटी काव्य विधाओं में शब्द-सौष्ठव का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि इनमें पाठकों को बाँधने योग्य भाव-विस्तार की गुंज़ाइश कम होती है। अतः शब्द ऐसे होने चाहिये जो सीधे पाठक के दिल में उतर सकें। आप यदि थोड़ी मेहनत और करते तो निस्संदेह अधिक प्रभावशाली सिद्ध होते।
फिरे चातक
या समय का फेर ?
गहरी अभिव्यंजना है।
कमलेशजी,
जैसा की राजीवजी ने कहा है कि आपकी क्षणिकाएँ बहुत ही गहरी और शिल्पगत सौष्ठव से ओत प्रोत है, मैं उनसे सहमत हूँ। मैने पिछली बार भी आपकी क्षणिकाओं के बारे में कहा था कि ये असाधारण है, आजकल इस प्रकार की क्षणिकाएँ देखने को नहीं मिलती। सचमुच आपमें असाधारण कला है, इसे निखारते रहिये...
बधाई स्वीकार करें।
सस्नेह,
- गिरिराज जोशी "कविराज"
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