जाने अन्जाने, कब न जाने
प्रीत प्यार के बहाने
मेरे दिल पर तुम ने लिख दी
प्यार की एक अमिट दास्तान
उस नज़्म के लिखे शब्द
अक्सर तन्हाई में मेरी
मुझे तेरे प्रेम का राग सुनाते हैं
देखती हूँ जब भी मैं आईना
तेरे नयनो के वो प्यार भरे अक़्स
अक्सर मेरी नज़रो में उतर जाते हैं
एक मीठी सी छुअन का एहसास
भर जाता है मेरे तन मन में
और मुझे वही तेरे साथ बीते लम्हे
गुदगुदा के छेड़ जाते हैं
तभी मेरा दिल अचानक यूँ ही
किसी गहरी सोच में डूब जाता है
कि क्या तुम फिर आओगे
फिर से वही नज़्म लिखने, गुनगुनाने
और फिर से दोगे क्या कुछ लम्हे
अपनी व्यस्त ज़िंदगी के?
क्या फिर से अपनी बाहों के घेरे में छुपाओगे मुझे
डुबो दोगे क्या फिर से अपनी सांसो की सरगम में
और समेटोगे अपनी मीठी छुअन से
मेरे बिखरे हुए वजूद को ??
- रंजना भाटिया
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
उस नज़्म के लिखे शब्द
अक्सर तन्हाई में मेरी
मुझे तेरे प्रेम का राग सुनाते हैं
कि क्या तुम फिर आओगे
फिर से वही नज़्म लिखने, गुनगुनाने
और फिर से दोगे क्या कुछ लम्हे
अपनी व्यस्त ज़िंदगी के?
और समेटोगे अपनी मीठी छुअन से
मेरे बिखरे हुए वजूद को ??
संवेदनशील, सुन्दर और मीठी रचना है रंजूजी, बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई स्विकार करें, रंजना जी।
जाने अन्जाने, कब न जाने
प्रीत प्यार के बहाने
मेरे दिल पर तुम ने लिख दी
प्यार की एक अमिट दास्तान
तेरे नयनो के वो प्यार भरे अक़्स
अक्सर मेरी नज़रो में उतर जाते हैं
एक मीठी सी छुअन का एहसास
भर जाता है मेरे तन मन में
और मुझे वही तेरे साथ बीते लम्हे
गुदगुदा के छेड़ जाते हैं
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आप ने रंजना जी, मन के भावो को कलम से बखूबी उकेरा है आप ने.
बहुत ही खूबसूरत रचना है रन्जना जी...
जाने अन्जाने, कब न जाने
प्रीत प्यार के बहाने
मेरे दिल पर तुम ने लिख दी
प्यार की एक अमिट दास्तान
उस नज़्म के लिखे शब्द
अक्सर तन्हाई में मेरी
एक प्यार का मीठा सा अहसास जगाती हुई पंक्तियाँ
देखती हूँ जब भी मैं आईना
तेरे नयनो के वो प्यार भरे अक़्स
अक्सर मेरी नज़रो में उतर जाते हैं
एक मीठी सी छुअन का एहसास
भर जाता है मेरे तन मन में
और मुझे वही तेरे साथ बीते लम्हे
गुदगुदा के छेड़ जाते हैं
और फ़िर कभी आशा कभी निराशा और कभी उम्मीद के भाव पैदा करती ये पक्तिंयाँ...
तभी मेरा दिल अचानक यूँ ही
किसी गहरी सोच में डूब जाता है
कि क्या तुम फिर आओगे
फिर से वही नज़्म लिखने, गुनगुनाने
और फिर से दोगे क्या कुछ लम्हे
अपनी व्यस्त ज़िंदगी के?
क्या फिर से अपनी बाहों के घेरे में छुपाओगे मुझे
डुबो दोगे क्या फिर से अपनी सांसो की सरगम में
और समेटोगे अपनी मीठी छुअन से
मेरे बिखरे हुए वजूद को ??
बहुत-बहुत बधाई आपको...
शानू
सुंदर रचना है रंजनाजी.
रंजनाजी, आप बहुत भावुक लिखती है ।
और फिर से दोगे क्या कुछ लम्हे
अपनी व्यस्त ज़िंदगी के?
रंजनाजी, अपनोंके लिये थोडासा वक्त चाहीये। सुंद्र और भावपूर्ण रचना ।
Ranjana mam......ye rachna bahut hi achha laga.....rly mein.......aapka sabhi jo bhi aap likhte hain sabhi mujhe achha lagta hai......
बहुत सुन्दर रचना है ....
भ्ह्ले भटके अनजाने
जब देख लिया कोई दरपन
मुझे अपने ही नयनों में
तब हुए तुम्हारे दर्शन
बहुत खूबसूरती से कही गई बात है
kuch kami si hai...
har pal rahta hoon dooba main bhi teri yaad mein....
magar jab bhi teri parchayin aati hai meri palkoon mein...
tab har pal khud ko bahut adnaa sa pata hoon...
lagta hai tujh tak pahunch ney mein abhi kai kadmoon ka fasla hai baaki...
terey kahey har lafz ko bhula bhi nahi sakta...
ki kuch shanayi ki mithas hamesa ghol si jatin hai ye merey kaano mein...
magar jab bhi teri tadap ki dastan sunta hoon...
toh haaan lagta hai ki kuch kami si hai...
haan kuch kami si hai...
par ye na samjhna ye kami hai tuj mein...
kyunki har taruf mein kami hai mujh mein...
haan ye kami hai mujh mein...
so sweet ji.... itna acha ki.... koi bhi itney pyaar sey nahi likh sakta...
maafi chahoonga abhi nahi regularly aa pata hoon..
waisey aapki kalam ka aur aap ka jawab nahi ji....
भावपूर्ण है। पहले अनुराग और फिर विषाद अच्छा चित्रण लिया है। अच्छा लगा।
thats gr8 mam...
anyways hows life going on ..
take care ..
bye
और समेटोगे अपनी मीठी छुअन से
मेरे बिखरे हुए वजूद को ??
रंजना जी, रचना की शुरुआत ज़रूर धीमी रही
लेकिन आखिर तक पहुँचते-२ अपना असर छोड़ जाती है।
अये-हये। जी दिल खुश हो गया।
'भाग दौड में व्यस्त समय में, मिल जाओगे क्या?' जैसी बात बडी सादगी से कह गयीं।
'और मुझे वही तेरे साथ बीते लम्हे
गुदगुदा के छेड़ जाते हैं'
कविता में बरकार रहे आपकी गुदगुदी।
बधाई।
U simply rock Ranju..!!:)
love yahhhhhhh......!!
My inspiration...my guru..someone which really inspire me by her writings...!!
U r too gud...!!
प्रेम से सारोबार एक और कविता के लिये बधाई स्वीकार करें।
बहुत बढिया रंजना जी। भावप्रमुख रचना है।
बधाई स्वीकारें।
अनुरागी मन की अद्भुत गाथा का सुंदर चित्रण किया गया है… मन धीर भी है और अधीर भी पर पता नहीं है कि वो किसी को पाकर संतुष्ट होना चाहता है या उसकी तन्हाई में ज्यादा प्रेम पाता है… खूबसूरत रचना>>>
आपकी कविताएँ हल्के से दिल के तार बजाकर चली जाती हैं। एक पंक्ति ने तो मेरी जान ही ले ली-
उस नज़्म के लिखे शब्द
अकसर तन्हाई में मेरी
मुझे तेरे प्रेम का राग सुनाते हैं
देखती हूँ जब भी मैं आईना
तेरे नयनो के वो प्यार भरे अक़्स
अक्सर मेरी नज़रो में उतर जाते हैं
.....
क्या फिर से अपनी बाहों के घेरे में छुपाओगे मुझे
डुबो दोगे क्या फिर से अपनी सांसो की सरगम में
और समेटोगे अपनी मीठी छुअन से
मेरे बिखरे हुए वजूद को ??
ये कविता थी या प्यार के साये में झिलमिलाती दिल की झील...अच्छी लगी।
आपकी रचना को पढ़ कर जैसे मीठे रस का पान का अनुभव होता है।
बधाई
di
bahut sundar ehsaasoin bhari rachana
sakhi
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