मुझको भी खबर है कि टूटा है आदमी,
शीशे अड़े हैं, अक्स पूरा ही दिखाएंगे।
इस तरह ना दीजिए अंधों को टोकरी,
हर बरस पेड़ ये फल ना लगाएंगे।
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
शौकिया की हैं अमन की मैंने भी बातें,
आज दिल उबला है, खुलकर बौखलाएंगे।
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
मुल्क है बूढ़ा, सड़क ये पार करवा दो,
वरना किसी इतवार तेरहवीं मनाएंगे।
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
दिल तो तेरा, मेरे दिल से ब्याह कर चुका,
दूसरी शादी में तेरी, आ ना पाएंगे।
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर भाव-पूर्ण रचना है ऊपर से नीचे तक हर पक्तिं अलग-अलग होते हुए भी जुड़ी हुई लगती है...बहुत नाराजगी और झुन्झलाहट महसूस होती है पूरी रचना मै...
शौकिया की हैं अमन की मैंने भी बातें,
आज दिल उबला है, खुलकर बौखलाएंगे।
बहुत सुंदर भाव है...
दिल तो तेरा, मेरे दिल से ब्याह कर चुका,
दूसरी शादी में तेरी, आ ना पाएंगे।
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
बाकि सब अच्छा लगा बस ऐक पक्तिं को समझने में असर्थ हूँ,...
इस तरह ना दीजिए अंधों को टोकरी,
हर बरस पेड़ ये फल ना लगाएंगे।
आपकी बातें गूढ़ रहस्य वाली होती है,कृपया माफ़ करें और आप खुद ही समझाने की कृपा करे...की अन्धो को तो सुगंध और स्पर्श का अधिक ज्ञान होता है उनसे कैसा डर...कि उन्हे फ़ल ना चुनने दिये जायें ...
सुनीता(शानू)
माफ़ करें कुछ शब्द अशुध्द लिखे गये है असर्थ नही असमर्थ लिखना चाहती थी...
bahut he achchi rachna hai gaurav bhai...
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
esi kya galti kar di unhone??
रचना बहुत अच्छी बन पडी है, गौरव जी को पढते हुए कभी-कभी दुश्यंत कुमार की गहराई महसूस होती है। शानू जी से भी मैं सहमत हूँ, जहाँ बिम्ब कठिन हुए वहा संप्रेषणीयता घटती है और बात दिल तक नहीं पहुँच पाती। कुछ शेर बहुत ही अच्छे बन पडे हैं जैसे:
मुझको भी खबर है कि टूटा है आदमी,
शीशे अड़े हैं, अक्स पूरा ही दिखाएंगे।
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
पुन: एक बहुत अच्छी रचना की बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
एकदम सच लिखा गौरवजी आपने।
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
और
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
ये शेर बहुत अच्छे लगे े।
बहुत सुंदर, गौरव जी। हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण है। जैसा कि राजीव जी ने कहा, दुष्यंत कुमार जी की याद ताजा हो गयी।
durgesh said
this has been really nice infact touchy one neway ur last lines were too good really good effort keep it up i have made everyone to read this song .i will proud of u being ur frend
रचना अच्छी मन पडी है विषेश कर यह पकंतियां
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
बधायी हो
बहुत ही प्रासंगिक रचना है.
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
मानव संबंधो के बिखराव पर सुन्दर पंक्तिया .
बहुत खूब लिखा है गौरव जी। हर एक भाव और शब्द एक सम्पूर्ण अर्थ देते हैं।
मसलन
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
और
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
बहुत हीं अच्छा बन पड़ा है।
बधाई स्वीकारें।
Really a gr8 poem
voice frm direct heart
poetry is a very good media to express feelings so let d the more poem comeout
goooood luck
g8 poem kaviraj,
so continueeeeeeee..............
waiting 4 next[:)]
best of luck
बहुत सुंदर, गौरव जी.रचना बहुत अच्छी बन पडी है.
sanjay bafna
To Kaviraj ke liye zordar taliyan.
Achchhi kavita hai Solanki sahab.Waise kuchh hasya bhi likh den agar kabhi ban pade to!Ham wo bhi sunna chahenge!
'शीशे अड़े हैं, अक्स पूरा ही दिखाएंगे।'
'चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।'
'झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।'
गौरव जी, आपके बारे में राजीव जी से बात होती रही है।
और आपको पढकर सच में ये यकीन और गहराता जाता है कि युग्म पर स्तरीय कविताई हो रही है।
बधाई आपको।
har kavita ki tarah hi ye bhi bahut sunder rachna hai bhai
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
bilkul sach
सुनीता जी, आपकी शिकायत मुझे भी जायज लगी।कई बार कुछ बातें ज्यादा गूढ़ हो जाती हैं। कारण यह है कि लिखते समय लेखक कई बार इतना खो जाता है कि उसे ये ध्यान नहीं रहता कि दूसरा कोई इसे समझ पाएगा या नहीं।
अंधों को टोकरी देने वाला शेर इस रचना का सबसे पहला शेर था, जो मेरे दिल से निकला।
मतलब यह था कि यदि अधिकार गलत लोगों के पास अधिक समय तक जाते रहे तो अच्छे लोग भी कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि पेड़ हमेशा ये फल नहीं लगाने वाले।
आइंदा कोशिश रहेगी कि बिम्ब अधिक कठिन ना बनें।
राजीव जी और अजय जी का विशेष धन्यवाद, जिन्होंने दुष्यंत कुमार जी से मेरी तुलना कर दी जबकि मैं उनके आस पास भी जाने का अधिकारी नहीं हूं।
रोहित, कभी हास्य कविता भी जरूर पढ़वाऊंगा।वैसे लगता है कि दुनिया में इतना दर्द है, जब तक उसे पूरा ना लिख दूं...हंसी कैसे करूंगा...
गौरव तुम प्रतिक्रिया लिखने को कहते हो और मैं हमेशा की तरह निरुत्तर हूँ------
वास्तव में तुम कवि नहीं चोर हो, जो ये जानता है कब कहाँ और कैसे इस जहाँ से क्या चुराना है और चुरा कर कैसे उसे हथियार बनाकर आघात करना है कि हर दिल छलनी सा हो जाये, कितनी सहजता से तुम हमारे मन की बात छीन कर इक तमाचा सा जड़ देते हो हमारे मुँह पर, झकझोर देते हो हमें॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ और हम अनायास ही अपने गाल सहलाने लगते हैं
मुझको भी खबर है कि टूटा है आदमी,
शीशे अड़े हैं, अक्स पूरा ही दिखाएंगे।
ये पहला शेर बडा ही अर्थपूर्ण और बेहतरीन आया है।
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
वाह वाह
मुल्क है बूढ़ा, सड़क ये पार करवा दो,
वरना किसी इतवार तेरहवीं मनाएंगे।
कल्पना की अनोखी उडान देखी। मज़ा आ गया।
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
दिल तो तेरा, मेरे दिल से ब्याह कर चुका,
दूसरी शादी में तेरी, आ ना पाएंगे।
क्या बात है।
मुमकिन है, दर्द की वजह और भी हों कुछ,
पर हम तो जब भी रोएंगे, तेरा नाम गाएंगे।
क्या कहने।
गौरव जी आपका जवाब नहीं
sayad jag gayegi ye kaum kabhi chalo aaj kalam ko hathiyar banaiye.
behad khubsurat rachna khaskar kuchh panktiya apne aap me itni gahraiya liye hue hai ki dil ko ghanghod deti hai jaise
is tarah na dijiye andho ko tokri,har baras ped ye fal na lagayenge nice behad achchha kataksh aaj ki paristhityo par kyoinki aaj ke jamane main sab kuchh jalat hatho me hain isliye apna desh tarki nahi kar raha.
germany 2nd world war main bilkul tabah ho gaya tha lekin in logo ki tarkki dekhkar main ashcharychakit hu,lekin yaha par sab kuchh sahi jagah or sahi hato main hai isliye ye hum se aage hai.
hum kewal manoj kumar ki tarah aaj bhi sunaya par atke hue hai.
chalo dil ki bhadash sabado main hi sahi mukhrit to ho rahi hai or yakin sa ho chala hai sayad nai yuva pidhi bharat ko aage badhayegi.
behad achchhi rachan hain. keep it up dear.
मैदान मार लिया जनाब॰॰॰॰॰
इतने उम्दा शे'र कि बार बार पढने का मन हुआ॰॰॰॰
बहुत बहुत धन्यवाद॰॰॰॰॰
ईश्वर आपकी लेखनी को और तरक्की पर ले जाये॰॰॰॰॰दुआ करता हूँ ।
आर्य मनु
i met gaurav on orkut and now i am meeting him again on a true and suitable platform for which he mend (i think)...he is tremendous in writing...he is having potential to uproot an established one (thought/pesonality/institut-ion)... let all pray for him so that he could not be misguided or distracted......
for gaurav..........in every word of this poetry there is life reality and what not.... i bless u dear go ahead ...go ahead and turn this insensitive world into sensitive one...i know this is possible by u and people like u!!!
गौरव जी, रचना के खाफी सारे शे़र दमदार हैं,
लेकिन अलग-२ परिदृश्य के होने से ध्यान इधर-उधर
भटका कर रचना का प्रभाव कम करते हैं।
लोगों का जो भी मानना हो,
व्यक्तिगत रूप से मेरा माना यही है कि किसी भी गज़ल के श़ेर एक ही
विषय या घटना से सम्बन्धित होने चाहिये; इससे प्रभाव बढ़ जाता है।
और हाँ, आप इस गज़ल का मतला तो लिखा ही नहीं।
गौरवजी,
रचना की गुढ़ता के बावजुद आनन्द आया, कुछ शेर ख़ासकर पसंद पाये -
मुझको भी खबर है कि टूटा है आदमी,
शीशे अड़े हैं, अक्स पूरा ही दिखाएंगे।
कुछ लोग होते हैं, बस अफवाहों की पैदाइश,
बचना, किसी दिन वे ही तेरा घर जलाएंगे।
मगर आपके इस शेर से पूर्णतया सहमत नहीं हूँ -
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
बधाई स्वीकार करें।
सोलंकी जी,
आपने दुनिया और दुनियादारी को इतने क़रीब से देखा है कि उसकी झलक आपकी रचनाओं में साफ़ मिलती है। मुझे नहीं लगता कि इतना गहरा सोचना सबके लिए संभव है-
इस तरह न दीजिए अंधों को टोकरी,
हर बरस पेड़ ये फल न लगाएंगे।
और इस बिम्ब को समझने के लिए ज़्यादा दिमाग भी नहीं लगाना पड़ता।
नई दुनिया को आपने मात्र एक शे'र में बता दिया है-
चाकू ने कहा, ऐ जुबां, तू बन्द कर बातें,
हथियार इस सदी में फैसले सुनाएंगे।
वैसे मुझे ग़ज़ल का समाजशास्त्र नहीं पता, इसलिए शिल्प की तो बात नहीं करूँगा मगर जहाँ बात भाव की आती है, आप एक श्रेष्ठतम कवि हैं।
अब इससे बढ़कर कविता क्या कहेगी!
झिर्रियों से झाँक कर कभी देखिए रिश्ते,
कितने भरोसे एक दिन में टूट जाएंगे।
'अफ़वाहों की पैदाइश' उपमा , एक सुंदरतम प्रयोग।
और गौरव जी, जिस 'शे'र' ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, मैं क्या कहूँ, मैंने ऐसा आज तक किसी किताब में भी नहीं पढ़ा, बिलकुल नया, सटीक और भावपूर्ण-
दिल तो तेरा, मेरे दिल से ब्याह कर चुका,
दूसरी शादी में तेरी, आ न पाएंगे।
आप सच में तारीफ़ के काबिल हैं।
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