फटाफट (25 नई पोस्ट):

Saturday, June 09, 2007

दान


.
जाने का आया पल
तो यूँ बादल
घिर घिर आये

गले तक आया प्राण
ये दिल नादान
धडकता जाये

जीने का जो भयमुक्त
मार्ग उन्मुक्त
मिला था मुझको

बन बैठा यूँ शैतान
दे दिया दान
देह केन्सर को

सीने में धुआँ लेकर
सजे जो पल
याद आतें है

सांसो का आया पत्र
खाक ये क्षेत्र
छोड जातें है

घेरे है अपने लोग
चिंता शोक
प्रार्थना लाये

जाने का आया पल
तो यूँ बादल
घिर घिर आये

तुषार जोशी, नागपुर

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

16 कविताप्रेमियों का कहना है :

पंकज का कहना है कि -

बन बैठा यूँ शैतान
दे दिया दान
देह केन्सर को.
तुषार जी, आप की यही बात अच्छी लगती है कि आप बहुत ही आम विषय की भी असाधरण प्रस्तुति देते हैं।
ये बात तो और भी बढ़िया है कि इस बार आप ने नशाखोरी पर निशाना लगाया है।

श्रवण सिंह का कहना है कि -

प्रिय तुषार जी ,

विषय तो बहुत अच्छा चुना आपने ; शुरूआत भी धमाकेदार की , पर बाद मे आसमान को संकुचित करने के साथ-साथ उड़ान भी असंतुलित कर लिया आपने । थोड़े और ट्रीट्मेंट की जरूरत थी ।

वैसे रचना ने अपनी ओर से बहुत अच्छी बनने कि कोशिश की......

साभार,

श्रवण

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

nice attepmpt to highlight a social abuse in an emotional n poetic way.---Dr. RG

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

बहुत ही अच्छी कविता,
निश्चित रूप से यह हम युवा पीढ़ी के लोगों को सचेत करने के लिये एक अच्‍छा मध्‍यम साबित होगी। आज हम सब अपने लक्ष्‍यों को भूल कर नशा खोरी की प्रवृत्ति की ओर बढ़ रहे है जो स्वयं और हमारें समाज दोनों के लिये घातक है।

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

जाने का आया पल
तो यूँ बादल
घिर घिर आये
कविता का आरम्‍भ बहुत अच्‍छा लगा।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

तुषार जी, आपकी कविता बडी तेज भागती है, और यही गतिशीलता आपके गीतों की खूबसूरती है।
कुछ नये प्रयोग बहुत संवेदनशील हैं।
बन बैठा यूँ शैतान
दे दिया दान
देह केन्सर को.
'खबरी'
09811652336

सुनीता शानू का कहना है कि -

क्या बात है तुषार भाई छा गये आप तो आज कल एक से एक लाजवाब कविता पढने को मिल रही है...
मुझे लगता है आप पहले भी लिख सकते थे...व्यर्थ हमे अब तक वंचित रखा...
मगर बहुत-बहुत शुक्रिया देर आये दुरूस्त आये...लिखते रहिये और अपनी कविताओ का रस पिलाते रहिये...

सुनीता(शानू)

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तुषार जी,
आपकी रचनाओ का तो मैं कायल हूँ ही। इस रचना को पढ्ते हुए मुझे लगा कि मैं कोई नयी कविता नहीं अपितु नये प्रकार की गज़ल पढ रहा हूँ...

*** राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 का कहना है कि -

तुषार जी,
विषय अच्छा है, भाव भी अच्छे हैं परन्तु मेरे विचार से आपने इस रचना के साथ पूरा न्याय नही किया..समय कम दिया लगता है... रचना और भी प्रभावी बन पडती यदि थोडी सी भावनाये और शब्द और जुड पाते

ShrikantKinhikar का कहना है कि -

Tushar ji,
Aapke hindi ka bhi jawab nahi, jo ki main samza tha ki sirf aap ki marathi main kavya panktiya aati hai.
Ye aap ne jo hindi ke kavitaye likhey hai wo bahut saadharan vicharoko bahut acchese tarasha hai.
Wa kya kahana..

SahityaShilpi का कहना है कि -

सुंदर और प्रभावी रचना। बधाई स्वीकारें।

Anonymous का कहना है कि -

तुषारजी,

साधारण शब्दों में ज़ान भर देने की आपकी कला का मैं कायल हूँ, आपकी कविता संक्षिप्त मगर बहुत कुछ समेटे हुए होती है।

बधाई स्वीकार करें।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस कविता में सुंदरता भी है, आपकी चिंता और संदेश भी। फ़िर भी मुझे इसमें कुछ खटक रहा है, मगर क्या , समझ नहीं पा रहा हूँ। लगता है तुषार जी ही मदद करेंगे।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

आपकी यह रचना भी दिल को छू गयी ..बहुत सुंदर

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं खुबसूरत लिखा है आपने। कैंसर जैसे विषय पर लिखना कोई साधारण कार्य नहीं है। आपने इसे बखूबी निभाया है। फिर भी मैं कहूँगा कि थोड़ी और इस पर मेहनत करते तो इस रचना का कोई सानी नहीं होता।

adidas nmd का कहना है कि -

hugo boss sale
ugg outlet
ray ban sunglasses
michael kors outlet
seahawks jersey
oakley sunglasses
michael kors uk
bills jerseys
hermes belts
fitflops

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)