शबे फ़ुरकत का मारा हूं
कहीं आंख न लग जाये
पुकारो तुम,न मिले जबाब
कहीं ऐसा न हो जाये
कभी हवा, कभी बारिश
मिटाती नक्शे-पा मेरे
करो पीछा न तुम मेरा
कहीं राह न खो जाये
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
सफ़र में हूं, मुसाफ़िर हूं
ठिकाना रोज बदलता हूं
कबूल ये दश्त है मुझको
गर तुझे गुलजार मिल जाये
तुम्हारी जान के सदके
मेरी इस जान का क्या है
रहे सलामत तू हर दम
मेरी उमर भी लग जाये
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्दर भाई दिल कहता है बस लिखे हम,..
वाह!वाह!वाह!
बढी देर से मिलती है आपकी रचनाए...
कहिं इन्तजार करते-करते
ये वाह-वाह ही खतम ना हो जाए,..
बहुत सुंदर रचना,..बधाई स्वीकार करें,...
सुनीता(शानू)
बहुत बढिया रचना है। बधाई।
जनाब आप तो ग़ज़ल करने में माहिर होते जा रहे हैं। पहले शेर में क्या भाव हैं कि प्रेमी चाहे जो हो प्रेयसी को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहता। खुद को मुसाफिर भी बना दिये हैं, वाह मियाँ वाह मियाँ!
आप तो अति उदारवादी हैं, मालूम नहीं था-
"है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका न हो जाये"
आपने तो किताबी प्रेम की परिभाषा याद करा दी-
"तुम्हारी जान के सद के
मेरी इस जान का क्या है
रहे सलामत तू हर दम
मेरी उमर भी लग जाये"
लिखते रहिए, लगे रहिए।
सफ़र में हूँ, मुसाफ़िर हूँ
ठिकाने ही बदलता हूँ
यथार्थ लिखा है.शुभकामनायें
बहुत सुंदर रचना
कभी हवा, कभी बारिश
मिटाती नक्शे-पा मेरे
करो पीछा न तुम मेरा
कहीं राह न खो जाये
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
क्या बात है जी ...दिल को छू गयी आपकी यह पंक्तियाँ!!
कभी हवा, कभी बारिश
मिटाती नक्शे-पा मेरे
करो पीछा न तुम मेरा
कहीं राह न खो जाये
लगता है कि इस रचना में मोहिन्दर जी ने काफी मेहनत की है; असर दिख भी रहा है।
लेकिन शायद अभी भी लय(मीटर) पर थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है।
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
bahot khUb
आपका उर्दू पर भी हिन्दी की तरह समान दखल है।
शबे फ़ुरकत का मारा हूं
कहीं आंख न लग जाये
पुकारो तुम,न मिले जबाब
कहीं ऐसा न हो जाये
यह बेहद गहरा शेर है।
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
वाह..मन अभिभूत हो गया :)
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर…कुछ कविता मात्र कविता होती है और कुछ जो आपने लिखा है वह बात होती है…शाश्वत धारा बह रही है शब्दों के सहारे से…।
मोहिन्दर जी,
सम्पूणॆ गज़ल इतनी बखूबी प्रेम की गहराईयों को छूकर प्रेमी की भावनाओं का जो चित्रण किया है उसे पढनें के बाद बस वाह वाह!!!! ही निकलता है।
विशेषकर,
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
कितना ददॆ और ममॆ है इसमे........
bahut hi badhiya gazal hai Mohinder ji.
bas Waah, Waah karte rahne ka hi man kar raha hai.
Badhai sweekarein.
शबे फ़ुरकत का मारा हूं
कहीं आंख न लग जाये
पुकारो तुम,न मिले जबाब
कहीं ऐसा न हो जाये
ग़ज़ल के भाव अच्छे हैं, मोहिन्दर भाई। मगर बहर और वजन के लिहाज से अभी वो बात नहीं आ पाई, जिसकी आपसे उम्मीद थी।
पुकारो तुम,न मिले जबाब
कहीं ऐसा न हो जाये
अजी हो कैसे जायेगा ऐसा।
जनाब जब तक आप इतनी बेहतरीन
कविताई करते रहेंगे,
हम ऐसा-वैसा-कैसा भी नहीं होने देंगे।
बेहतरीन कविता,......
नहीं नहीं गजल ........,
शायद शायरी...............,
अब क्या करें सारे स्वाद आ जाते हैं आपकी कविताई में।
बधाई।
है बिखरना टूट कर लिखा
पैमानो की किस्मत में
तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये
बहुत खूब ...बधाई
तुम्हारी जान के सद के
मेरी इस जान का क्या है
बहुत अच्छा।
खूबसूरत ग़ज़ल!!!
प्रेम का यह नवीन चित्रण बहुत हद तक यथार्थ को ही चित्रित कर रहा है।
सफ़र में हूं, मुसाफ़िर हूं
ठिकाना रोज बदलता हूं
कबूल ये दश्त है मुझको
गर तुझे गुलजार मिल जाये
हा हा मोहिन्दरजी,
लगता है आपने वो कहावत नहीं सुनी -
"जब दिल आया गधी पर तो...."
जिन्हें आपकी जरूरत है, उन्हें मिल जाये गुलज़ार तो क्या... :)
"तुम्हारा हाथ था इसमें
तुम्हें धोका ना हो जाये"
वाह, बहुत बढिया
सस्नेह
गौरव शुक्ल
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