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Wednesday, May 16, 2007

आप क्या कीजिए ?


माँगने की तो आदत है मुझमें नहीं;
माँग बैठूँ जो कुछ आप क्या कीजिए।

आप को देखकर होश रहता नहीं ;
ग़र करूँ कुछ खता आप क्या कीजिए।

लाख समझाइये प्यार हमसे नहीं;
हो न दिल को पता आप क्या कीजिए।

आप भी मरते हैं चुपके-चुपके सनम;
सब को दूँ जो बता आप क्या कीजिए।

सुनते हैं इश्क़ का फलसफा है कठिन;
हो हमें न पता आप क्या कीजिए।

नाज़-ओ-नखरे की मलिका हो तुम ए हसीं;
हम जो रूठें कभी आप क्या कीजिए।

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

SahityaShilpi का कहना है कि -

यूँ गजल खूब आपने है लिखी ये मगर
हो न उसमें असर आप क्या कीजिये।
वजन भी जो होता तो क्या बात थी
जो है खुबसूरत बहर आप क्या कीजिये।

पंकज जी, बहर और रवानगी के लिहाज से अच्छी गजल है पर भावों में वजन नहीं आ पाया।

विपुल का कहना है कि -

पंकज जी..
वज़न की थोड़ी कमी दिखाई देती है..और भावों में तीव्रता भी नही आ पायी है । ऐसा लगा कि आपको कुछ लिख्नना था सो आपने लिख दिया..शुरुआत तो ठीक थी
" माँगने की तो आदत है मुझमें नहीं;
माँग बैठूँ जो कुछ आप क्या कीजिए। "

मगर बाद की लाइनें प्रभाव उत्पन्न नही कर पातीं..
वैसे यह लाइनें अच्छी लगीं..

"लाख समझाइये प्यार हमसे नहीं;
हो न दिल को पता आप क्या कीजिए।"

भविष्य में और भी बेह्तर रचना की आशा करता हूँ ।

सुनीता शानू का कहना है कि -

गज़ल अच्छी है...आपने भावो को बहुत नपा तुला रखा है...ज्यादा देर नही लगी समझने में...सिधी-साधी बात और नपा तुला अन्दाज...हाँ मेरे ख्याल से सरल पाठको को और क्या चाहिये,..मगर ये भी सही है,..आप खुद को ना भूले..आपमें योग्यता है इससे कहीं खूबसूरत गज़ल लिखने की....

सुनीता(शानू)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर गजल है ...सीधी और सरल है ..

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

पंकज भाई पहली बार आपकी कविता पर टिपिया रहा हूँ।
मुझे नहीं पता क्यों विपुल जी एसा कह रहे हैं, सच तो ये है कि सीधी सच्ची बात बिना लाग लपेट आराम से कह दी वो भी पूरी तरह छंद में बंधे।
मतलब कम्यूनिकेशन में कविता सफल रही।
और क्या चाहिये।
बधाई।

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

पंकज जी थोड़ा और डूब कर लिखिये।

Anonymous का कहना है कि -

हा हा पंकजजी,

आज तो आपकी अच्छी-ख़ासी क्लाश लग गई :)

वैसे मुझे गुनगुनाने में तो कोई समस्या नहीं आई, मतलब लय निर्बाधित है, जहाँ तक भावों की बात है, कौन कहेगा की आपके ये शेर निरर्थक है? -

माँगने की तो आदत है मुझमें नहीं;
माँग बैठूँ जो कुछ आप क्या कीजिए।

लाख समझाइये प्यार हमसे नहीं;
हो न दिल को पता आप क्या कीजिए।


मगर लगता है पाठकों की अपेक्षाएँ कुछ ज्यादा है आपसे :)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

वैसे पाठकों को सभी से एक ही तेवर की कविताओं की उम्मीदें हैं। इसलिए भी इस तरह के विचार सामने आ रहे हैं। मुझे तो साधारण शेर भी पढ़ने में खूब मज़ा आता है। पंकज की कविताओं की ख़ास बात यह है कि वो हर किसी को समझ में आ जाती हैं।

वैसे पंकज जी, अब लोगों को जब आपसे इतनी उम्मीदें हैं तो विचार अवश्य कीजिएगा।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

पंकज जी..
आपकी रचनाओं में रवानगी आपकी विषेशता है। नपा तुला लिखते हैं आप। कुछ शेर अच्छे बन पडे हैं:
माँगने की तो आदत है मुझमें नहीं;
माँग बैठूँ जो कुछ आप क्या कीजिए।

सुनते हैं इश्क़ का फलसफा है कठिन;
हो हमें न पता आप क्या कीजिए।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

पंकज जी,
गज़ल अच्छी बन पडी है

गौरव

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