ओ मेरे पहले प्याऱ!
ऒ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार !
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूँ
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मूझको यह पता चला मधुरे
तू भी पागल बन रोती है,
जो पीर मेरे अंतर में हे
तेरे दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचिंत भी
अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तू याद न आया कर।
ऒ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार !
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूँ
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मूझको यह पता चला मधुरे
तू भी पागल बन रोती है,
जो पीर मेरे अंतर में हे
तेरे दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचिंत भी
अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तू याद न आया कर।
मैं तो झोंका हूँ हवा का
मैं तो झोंका हूँ हवा का उड़ा ले जाऊँगा
जागती रहना तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा
हो के कदमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल के भी मैं खुश्बू बचा ले जाऊँगा
कौन सी शै मुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा
कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा
शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गये
सब यही रह जायेंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा
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29 कविताप्रेमियों का कहना है :
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसु मुस्कानो की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुदको बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
आपका यह गीत अपने आप ही अपने रचनाकार के विषय में बता देता है। इतने सुंदर तरीके से भावों की अभिव्यक्ति करना आप की ही सामर्थ्य है। युग्म का आभारी हूँ, जिसके बदौलत आप के नवीनतम गीत पढ़ने को मिले।
मेरे आँसु मुस्कानो की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुदको बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये.
वाह-वाह।
इसके अलावा और क्या कहूँ।
बस इतना कहना है कि आप से काफी कुछ सीखने को मिलने वाला है।
प्यार की पावस फ़ुहार लिये
मन के सुन्दर उदगार लिये
यह एक सशक्त अभिव्यक्ति है
जीवन का सारा सार लिये
शैलेश सबसे पहले मै तुम्हे धन्यवाद देना चाहूँगी,..
तुम्हारी बदौलत हमे इतने अच्छे गीत पढ़्ने को मिले है...आशा करती हूँ की हमेशा एसे ही मिलते रहेंगे,.
कुमार विश्वास जी आपका लेखन निश्चय ही अभूतपूर्व है,..आपसे हमे बहुत कुछ सीखना है...
आपको बहुत-बहुत बधाई!
सुनीता(शानू)
मज़ा आ गया.... सचमुच इंतज़ार कर रहा था कुमार जी की कविता का और जब वो आई तो अपनी सारी अपेक्षाओं पर खरी उतरी...
क्या लाइनें हैं...
"मूझको यह पता चला मधुरे
तू भी पागल बन रोती है,
जो पीर मेरे अंतर मे हे
तेरे दिल मे भी होती है..."
वास्तव मे है तो यह साधारण सी बात कहने का अंदाज़ भी सहज़ है..परंतू आकर्षण है जो अप्नी और खींचता है और यही कवि की विशेषता है...
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसु मुस्कानो की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुदको बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
पवित्रता,त्याग,प्रेरणा ,आकर्षण,समर्पण सभी कुच इन पंक्तियो में साकार हो गया है..
भविष्य में ऐसी और भी रचनाओं का आस्वादन करने की आकांक्षा रहेगी.....
वाह !! बहुत ख़ूब .....बहुत ही सुंदर रचना हैं दोनो
आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलगा हमे ..यह आपकी रचना पढ़ के महसूस हुआ ... स्वागत है आपका यहाँ तहे दिल से
आपके ही लफ़्ज़ो में
कौन सी शै मुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा!!:)
डॉ साहब आपका प्यारा सा यह गीत 'ओ मेरे पहले प्याऱ!' आपके ही स्वर में सुना था आगरा के एक सम्मेलन में। इस बार पढने और खुद गुनगुनाने का आनंद भी ले लिया।
दूसरी कविता मेरे लिये नयी है। आपकी सरेआम 'जागती रहना तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा' वाली हिम्मत को दाद आपकी कविता से पहले दाद दूँगा।
'कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा'
सच है । किसी के लिये पूरे मन से मिटने का मजा भी तभी है।
आपका स्वागत है।
डॉ विश्वास की कवितायें बहुत अच्छी लगती है, परन्तु उन्हें एक बार सुने बाद कवितायें पढ़ने में यों लगता है मानों प्यास बुझी नहीं।
........काश इन कविताओं को सुनवाने का भी बंदोबस्त हो सकता।
बहुत अच्छा लगा आपका प्रेम गीत....बधाई
मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूँ
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
अच्छी पंक्तियां पढ़ने को मिलीं। बधाई।
बहुत सुन्दर .... प्रेम की सरिता है ये गीत ...
आज बहुत दिनों के बाद मुझे एक उच्चस्तरीय कविता पढ़ने को मिली है। आपने निम्न पंक्ति में ज्वर के दर्द को प्रेम के भाव जोड़कर इसे अमर कर दिया है-
नस-नस के पहले ज्वार!
आपकी दूसरी रचना को श्रेष्ठ हिन्दी-ग़ज़ल की श्रेणी में रखा जा सकता है। बहुत सरल वाक्य, अत्यंत गहरे भाव, उतने ही सुंदर शेर-
कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा
शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गये
सब यही रह जायेंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा
@ सागर चन्द नाहर जी
आपकी इच्छा ज़रूर पूरी होगी। हम इस जुगत में है कि विश्वास जी के गीतों का आडियों भी हिन्द-युग्म प्रकाशित करे। आने वेल समय में हम कुमार विश्वास जी से अन्य सेवाएँ भी लेने वाले हैं। बस आप थोड़ा इतंज़ार करें।
डॉ. कुमार विश्वासजी, हिन्द युग्म पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आपका गीत, "ओ मेरे पहले प्यार" गुनगुनाने में आनन्द आया।
कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा
विपरित परिस्थितियों में भी आनन्द खोजती आपकी ये पंक्तियाँ, प्रेम की पराकाष्ठा दिखाती है।
बधाई!!!
डॉ. विश्वास,
आपकी कविता की रवानगी/ प्रवाह में अध्भुत आनंद है। ओ मेरे पहले प्यार में मैं आपके शब्द चयन से बेहद प्रभावित हूँ। अनावश्यक जटिलता कहीं नहीं है और संप्रेषणीयता में आपकी कोई तुलना नहीं:
"मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!"
"मेरे आँसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूँ
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये"
जहाँ तक हिन्दी गज़लों का संबंध है, मुझे आपसे बेहद अपेक्षा है कि इस विधा को आप नया मुकाम देंगे। नीचे उद्धरित पंक्तिया बहुत सुन्दर हैं:
"हो के कदमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल के भी मैं खुश्बू बचा ले जाऊँगा"
"कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा"
"हिन्द युग्म" पर आपकी उपस्थिति का धन्यवाद।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आप छा गये हिन्द-युग्म पर। आपकी कविताएँ पढ़कर मज़ा आ गया। आपके कविताओं की रवानगी के क्या कहने!
तुषार जोशी, नागपुर
सब कुछ इतना प्रीतिकर है फ़िर भी मुझे तू याद न आया कर ?मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है...और मुझे तू याद न आया कर..??
"शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गये
सब यही रह जायेंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा"...सबसे अधिक प्रभावी शेर लगा ये.. आपका तो स्वागत करने योग्य भी नही हूं, एक शिष्य की भांति आपसे कुछ सीख सकें यही अभिलाषा है...
मूझको यह पता चला मधुरे
तू भी पागल बन रोती है,
जो पीर मेरे अंतर मे हे
तेरे दिल मे भी होती है...
इन शब्दों में क्या कहने। प्रेम की स्वच्छ एवं सुंदर परिभाषा। कोई जटिलता नहीं। हमें आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
आपकी गजल तो हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है। हर एक छंद खुद में सम्पूर्ण है।
कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा।
इन पंक्तियों के सामने तो मैं शिरोधार्य हूँ।
हिन्द-युग्म की तरफ से मैं आपका हिन्द-युग्म पर स्वागत करता हूँ।
शब्द चयन,संयोजन,भावाभिव्यक्ति, सहजता, गेयता हर लिहाज से बहुत ही सुन्दर कवितायें
धन्यवाद विश्वास जी
अच्छी गीत पढने को मिले
सस्नेह
गौरव शुक्ल
Hi, apne bahut acha likha hai, pahala payar ki bhi kaya feelings hota hai, that age mind and heart is also innocent. I want to say something "
Wind and Window Flower
Lovers, forget your love,
And list to the love of these,
She a window flower,
And he a winter breeze.
When the frosty window veil
Was melted down at noon,
And the caged yellow bird
Hung over her in tune,
He marked her through the pane,
He could not help but mark,
And only passed her by
To come again at dark.
He was a winter wind,
Concerned with ice and snow,
Dead weeds and unmated birds,
And little of love could know.
But he sighed upon the sill,
He gave the sash a shake,
As witness all within
Who lay that night awake.
Perchance he half prevailed
To win her for the flight
From the firelit looking-glass
And warm stove-window light.
But the flower leaned aside
And thought of naught to say,
And morning found the breeze
A hundred miles away.
"
मज़ा आ गया....
Sanju
अभिजात्यि सुन्दर रचनाऎं।
Ye kavita maine sabse pehle NDTV main suni thi tabhi se mann tha ki isse pura padhun...aur vakai maza aa gaya ...yahi khasiyat hai Vishvas ji ki ki "apne dard main bhi maza dila dete hai "
कुमार जी, की काव्य अभिव्यक्ति से मैं परीचित हूं,
कुमार जी बधाई.
नेट पर भी कवि सम्मेलन जमा दिया जाए
इस जगह भी एक गुलिस्ता लगा दिया जाए.
अब मजा और भी आएगा बलोग की दुनिया में
कुछ तो पहले भी थे और अब आप भी आए..
एक फरमाईस है जनाब जब पहले प्यार की बात आपने शुरू कर ही दी है तो क्र्पया एक पागल सी लडकी भी पुनह ताजा कर दो,
एक बार फिर पढने का मन है मित्र.
mai toh ghonka hoon hawa ka jo kavita haiwoh gulam ali ji ki gagal ki copy hai.ab mera DR vishwas ji se nivedan hai ki istaras ka prayog na karen. kyon ki aap se bahut ummid hai
दिल को छू गया गीत... उत्तम कवि की उत्तम रचना....
sir ko sarv pratham pranam sweekar ho aasha hai aap is anuj ko pahchan rahe honge . aap ko jab bhee padhta hoon to lagta hai ki ek viswas se bhare huae jeevan ko padh raha hoon . aap ki har kavita koee ati pavitra darshan liye hotee hai aasha hai aap ki lekhnee ke udgar aage bhee sanganak par dekhne ko milenge.
sir ko pranam aap ki kavita se hamesha kuch seekhne ko milta hai . aasha hai aap ke lekhnee ke udgar aage bhee sanganak par dikhayee denge.
kismat wale hai wo log jin ko payar yad aata hai,
socho unke bare jinko pyar kabhi nahi pata hai,
yadi ho jaye jiwan payer kabhi unhe ,
to kai hawa ka jhonka usko chura le jata hai.
kismat wale hai wo log jin ko payar yad aata hai,
socho unke bare jinko pyar kabhi nahi pata hai,
yadi ho jaye jiwan payer kabhi unhe ,
to kai hawa ka jhonka usko chura le jata hai.
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