इक तरफा चौखट है, दिल मेरा
दो शाह्कार सजाना मुश्किल है
मुद्दत से गम है डेरा डाले हुये
यहाँ खुशी का आना मुशकिल है
जीने के लिये थे पी डाले
आँखोँ ही आँखोँ मेँ जो आँसू
जहर बन फिरते नस नस मेँ
अब तासीर मिटाना मुशकिल है
जिस पर अपनो ने लिख डाली
एक लम्बी कहानी नफरत की
इस उदास बँजर दिल मेँ अब
फिर प्यार जगाना मुशकिल है
मुमकिन नहीँ राहे-उल्फत मेँ
हर दिल का गुलशन गुलजार रहे
गुजरी खिँजाँ के नक्शे-कदम
दश्ते-दिल से हटाना मुशकिल है
उस मुर्दा और इस जिन्दा मेँ
सिर्फ फर्क है इन दो साँसोँ का
कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है
चौखट = फ़्रेम
शाह्कार = चित्र, फोटो
मुद्दत से = लम्बे समय से
तासीर = असर
अफसाना = कहानी
मुमकिन = सम्भव, जरूरी
राहे-उल्फत = प्यार का रास्ता
गुलशन = बाग, बगीचा
गुलजार = हरा भरा बगीचा
खिज़ाँ = पतझड
नक्शे-कदम = पैरोँ के निशान
दश्ते-दिल = विरान या मरुस्थल के समान दिल
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्दर जी बहुत खूब,..हर शब्द दर्द में डूबा प्रतित होता है,..
अकेले इतने आँसू पिकर क्या करेंगे,...
कुछ दोस्तों को भी उधार चाहिए,..
अब तलक बाँटी है खुशीया सारी,..
आब आँसू भी दो चार चाहिए,...
बहुत सुंदर रचना है,..जितनी तारीफ़ की जाये कम है,..बहुत-बहुत बधाई,..
सबसे खूब सुरत पक्तिंया लगी,..
उस मुर्दा और इस जिन्दा मेँ
सिर्फ फर्क है इन दो साँसोँ का
कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है
सुनीता(शानू)
hindi mai trutiya bahut hoti hain kripaya maaf karen,..
एक चोट खाये तन्हा दिल कि दास्तां लगती है...दर्द अपनी इंतहा पर है... यकीन कीजिये बस अब खुशी आने में देर नहीं.. क्युंकि दर्द अपनी सीमा पर है..
जिस पर अपनो ने लिख डाली
एक लम्बी कहानी नफरत की
इस उदास बँजर दिल मेँ अब
फिर प्यार जगाना मुशकिल है
बेहद दर्द से निकली रचना है यह ...पर .....
माना की अभी दर्द का अंधेरा छटा नही है
पर मेरे दिल में अभी भी उम्मीद का दिया बुझा नही है !!
निश्चित ही अति भावुक लेखनी ही इस कविता का उद्गम है
"कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है"
बधाई स्वीकार करिये
सस्नेह
गौरव शुक्ल
मोहिन्दर जी बहुत खूब,
आप के छंद की तारीफ तो मैं आपके ब्लोग पर कर चुका हूँ,
यहाँ बेजोढ भाव भी मिल गये।
"कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है"
आपकी कविताई का अफसाना तो मजेदार है, चलता रहे, खत्म क्यों हो?
जो अश्क पिये हैं आँखों ने
वे ज़हर बने फ़िरते नस में
इसकी जो पीड़ा होती है
अंदाज़ लगाना मुश्किल है
अच्छे भाव हैं.
एक उम्दा भावों से परिपूर्ण रचना।
"जिस पर अपनो ने लिख डाली
एक लम्बी कहानी नफरत की
इस उदास बँजर दिल मेँ अब
फिर प्यार जगाना मुशकिल है।
लेकिन कहना ही होगा कि कहीं -२ बहाव थोड़ा अवरुद्ध हुआ है।
फिर भी ,अच्छी प्रस्तुति।
मोहिन्दर जी..
क्षमा कीजियेगा देर से टिप्पणी के लिये। कविता ने बहुत आनंदित किया।
"इक तरफा चौखट है, दिल मेरा
दो शाह्कार सजाना मुश्किल है"
"जीने के लिये थे पी डाले
आँखोँ ही आँखोँ मेँ जो आँसू"
"उस मुर्दा और इस जिन्दा मेँ
सिर्फ फर्क है इन दो साँसोँ का"
बेहद असाधारण पंक्तियाँ हैं इस रचना में, आपको कोटिश: बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मोहिन्दर जी,
बहुत सुंदर भाव है और आपके हृदय की गहराइयों
का अंदाज लगाना मुश्किल है… अत्यंत निश्चल भावनाओं का प्रवाह है जो मन को हिलोरे देने के लिए काफी है…।
बहुत खूब,..
दर्द में डूबा
हर शब्द ..
कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है
बहुत सुंदर रचना
मोहिन्दर जी
बधाई
उस मुर्दा और इस जिन्दा मेँ
सिर्फ फर्क है इन दो साँसोँ का
कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है
kya kahoon. toote dil ka badhiya bayaan. hum bhi apke gam mein shaamil hain.
achchha lekhan.
मोहिन्दर जी
बहुत बढिया लिखा है आपने..आपकी गजल हमें बहुत पसन्द आयी
लिखते रहिये
शशी निगम
दर्द में डूबी निराशावादी कविता!
अपनी इस कविता में आप अपनी कल्पना के साथ न्याय करने में सफल रहें है मोहिन्दरजी, जिन परिस्थितियों में डूबकर आपने यह रचना लिखी है वह उभर कर सामने आ रही है।
जिस पर अपनो ने लिख डाली
एक लम्बी कहानी नफरत की
इस उदास बँजर दिल मेँ अब
फिर प्यार जगाना मुशकिल है
मुश्किल है नामुमकिन नहीं :)
मोहिन्दर जी,
आपकी यह ग़ज़ल है, बिलकुल नपी तूली है। भाव गहरे हैं। गाया जा सकता है। ग़ुलाम अली की आवाज़ मिल जाती तो अमर हो जाती। कुछ पंक्तियाँ विशेषरूप से पसंद आईं-
जहर बन फिरते नस नस मेँ
अब तासीर मिटाना मुशकिल है
जिस पर अपनो ने लिख डाली
एक लम्बी कहानी नफरत की
इस उदास बँजर दिल मेँ अब
फिर प्यार जगाना मुशकिल है
उस मुर्दा और इस जिन्दा मेँ
सिर्फ फर्क है इन दो साँसोँ का
कब खत्म होगा यह अफसाना
कुछ अन्दाज लगाना मुशकिल है
भावपूर्ण रचना। हालाँकि कहीं कहीं रवानगी की कमी अखरती है, पर फिर भी भावों की गहनता दिल तक उतरती चली जाती है। बधाई, मोहिन्दर भाई।
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