न पेश आओ यूँ बेरुखी से ऐ हमदम;
ज़रा दिल से पूछो वहाँ अब भी हम हैं।
यूँ नज़रे चुराने की ज़रूरत ही क्या है,
हमें भी दिखाओ वहाँ कितने गम हैं।
तेरे सारे गम मेरे सीने में भर दे,
मेरी सारी खुशियों को दिल में जगह दे;
तेरी ही खुशी से मेरी भी खुशी है;
नहीं फर्क पड़ता वो ज्यादा या कम है।
कभी तुम ज़रूरत हमारी जो समझो,
है इतनी गुजारिश हमें इत्तला दो,
खड़ा तुमको दर पे दिवाना मिलेगा;
कहेगा, 'बुलाया ये तेरा करम है'।
तेरे मामलों में हो मेरा दखल क्यूँ,
मगर कर ही देता है दिल ये पहल क्यूँ;
इसी की हुकूमत है नज़र-ओ-कदम पर;
हैं हम रूबरू दोषी दिल बेरहम है।
यकीनन मुझे इश्क करना न आया ,
तेरे दिल को अपना बना मैं न पाया;
क्या शिकवा करूँ तुझसे ऐ मेरे दिलवर;
कि अब बस मुझे अपने जीने का गम है।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढिया रचना है।अपने भावों को बहुत खूबसूत शब्दों मे पिरोया है।बधाई।
है।तेरे मामलों में हो मेरा दखल क्यूँ,
मगर कर ही देता है दिल ये पहल क्यूँ;
इसी की हुकूमत है नज़र-ओ-कदम पर;
हैं हम रूबरू दोषी दिल बेरहम
बहुत ख़ूब !!
बेहद ख़ूबसूरत भाव हैं ...यूँ ही दिल में आ गया इस को पढ़ के..:)
जो था तेरे मेरे बीच कुछ बातो का सिलसिला
वो मेरा दिल कभी चाह के भी भूल ना पाया
नज़रो में आज भी है वो अक़्स तुम्हारा
जिस को कभी था हमने अपना बनाया !!
पंकज जी..
आपकी कविताओं की अच्छी बात मुझे उनका नपातुला पन लगता है। रचना में सादगी से अपना हाल-ए-दिल बयां है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत अच्छा लिखा है विषेशतया ये पक्तिंयाँ पसंद आई,..
यकीनन मुझे इश्क करना न आया ,
तेरे दिल को अपना बना मैं न पाया;
क्या शिकवा करूँ तुझसे ऐ मेरे दिलवर;
कि अब बस मुझे अपने जीने का गम है।
शानू
बहुत ख़ूब ....
बेहद ख़ूबसूरत भाव...
यकीनन मुझे इश्क करना न आया ,
तेरे दिल को अपना बना मैं न पाया;
क्या शिकवा करूँ तुझसे ऐ मेरे दिलवर;
कि अब बस मुझे अपने जीने का गम है।
बधाई।
तेरे सारे गम मेरे सीने में भर दे,
मेरी सारी खुशियों को दिल में जगह दे;
तेरी ही खुशी से मेरी भी खुशी है;
नहीं फर्क पड़ता वो ज्यादा या कम है।
अच्छा लगा पढ़कर ....बधाई
bahut badhiya.
badhai sweekarein.
बेरूखी का शिकवा भी है
दिल का जज्वा भी है
गुजारिशे-मुहब्बत भी है
और क्या चाहिये एक गजल के लिये
बधायी हो
आपकी यह गजल वास्तम पढ़ते समय कानों मे बजती सी प्रतीत हो रही थी।
बधाई
तेरे सारे गम मेरे सीने में भर दे,
मेरी सारी खुशियों को दिल में जगह दे;
तेरी ही खुशी से मेरी भी खुशी है;
नहीं फर्क पड़ता वो ज्यादा या कम है।
सुन्दर!!! प्रेम और समर्पण एक दूसरे के प्राय माने जाते है, बहुत ही खूबसूरत रचना है।
पंकजजी बधाई स्वीकार करें।
एक लाइन पढ़कर बहुत मज़ा आया, थोड़ी अलग लगी-
तेरी ही खुशी से मेरी भी खुशी है;
नहीं फर्क पड़ता वो ज्यादा या कम है।
इश्के मजाजी से इश्के हकीकी तक के सफर बीच बेशकीमत मोती बिखरे मिलते हैं। आपका मोती अच्छा है।
हमेशा की तरह एक और खूबसूरत गज़ल। पंकज जी, आपकी गज़लों पर टिप्पणी करना, मेरे लिये खासा मुश्किल काम है क्योंकि आपकी कमी ढूँढने की सामर्थ्य नहीं और तारीफ करने के लिये शब्द तलाशने मुश्किल हो जाते हैं। हार्दिक बधाई।
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