अंकनी चलती नही है,
न जाने क्यूँ रूक सी गई है।
विषय के खोज मे अंकनी न चलने के,
परिणाम तक कुछ यूँ पहुँचा था।
अंकनी के न चलने के कारण,
हृदय व्याथित हो उठा था।
अनेकों विषयो के बावजूद
क्यों अंकनी रूकी थी?
विषयों की नही कमी है,
क्योकि भ्रष्टाचार-घूसपात यह सब क्या है?
यह सब विषय ही तो है।
समाज में फैली बुराइयों पर,
प्रहार करना ही विषय है।
वासतव में असली विषय तो समाज ही,
जो परिवर्तन की बाट जोह रही है।
इतने विषयों के बाद भी,
अंकनी विषयों की बाट जोह रही है।
न जाने क्यूँ रूक सी गई है।
विषय के खोज मे अंकनी न चलने के,
परिणाम तक कुछ यूँ पहुँचा था।
अंकनी के न चलने के कारण,
हृदय व्याथित हो उठा था।
अनेकों विषयो के बावजूद
क्यों अंकनी रूकी थी?
विषयों की नही कमी है,
क्योकि भ्रष्टाचार-घूसपात यह सब क्या है?
यह सब विषय ही तो है।
समाज में फैली बुराइयों पर,
प्रहार करना ही विषय है।
वासतव में असली विषय तो समाज ही,
जो परिवर्तन की बाट जोह रही है।
इतने विषयों के बाद भी,
अंकनी विषयों की बाट जोह रही है।
अंकनी से तात्पर्य लेखनी से है।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
महाशक्ति जी,
अंकनी शब्द से मेरा परिचय कराने का धन्यवाद।
"विषय के खोज मे अंकनी न चलने के,
परिणाम तक कुछ यूँ पहुँचा था।
अंकनी के न चलने के कारण,
हृदय व्याथित हो उठा था"
इन पंक्तियों तक कविता भटकती हुई प्रतीत होती है, आप क्या कहना चाहते है यह पूरी तरह संप्रेषित तो होता है, किंतु सशक्तता से नहीं। आपने बहुत गंभीर बात कहने का यत्न किया है, किंतु जिस प्रकार से आपने प्रश्न उठाये हैं उसमे नयी कविता की कलात्मकता भी दृश्टिगोचर नहीं होती।
"क्योकि भ्रष्टाचार-घूसपात यह सब क्या है?
यह सब विषय ही तो है"
जैसे उपर की पंक्तियों को लें, इसमे नयी बात तो कुछ थी नहीं, नये तौर से भी नही कही गयी।
"समाज में फैली बुराइयों पर,
प्रहार करना ही विषय है।
वासतव में असली विषय तो समाज ही,
जो परिवर्तन की बाट जोह रही है।
इतने विषयों के बाद भी,
अंकनी विषयों की बाट जोह रही है।"
अक्षरक्ष: सत्य है आपकी बात किंतु "कविता" को केवल विषय की ही नहीं, आपके समय की भी आवश्यकता है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
प्रमेन्द्रजी,
इस कविता को पढ़ने के बाद मेरे मन में जो विचार उठे उसे काफि हद तक राजीवजी ने व्यक्त कर दिया है, यह आपका स्तर नहीं है।
पाठकों को आपसे जो उम्मीदें है, उन्हें आपकी इस कविता से काफि क्षति हुई है :(
सस्नेह,
गिरिराज जोशी "कविराज"
क्षमा चाहती हूँ आपकी मनः स्थिती मै समझ सकती हूँ आपने अपने मन के भावो को कविता में व्यक्त करने कि कोशिश की है,..विषय कोई भी हो मगर कभी-कभी ईन्सान कुछ नही लिख पाता। आप कुछ ना लिख कर भी बहुत कुछ लिख गये,..बेशक कविता आपके स्तर की नही है,..मगर फ़िर भी आज आपकी अंकनी ने रुकते-रूकते भी आपका साथ नही छोड़ा है,..मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी अगली कविता और भी अधिक जोश और होश के साथ आयेगी।
ढेर सारी शुभ-कामनाओं के साथ...
सुनीता(शानू)
प्रमेन्द्र जी, बिल्कुल सही जगह पर चोट की है आप ने,
ये बात सही है कि लिखने के लिए बहुतेरे विषय हैं, बस लिखने की ज़रूरत है।
मैने बिना सोचे समझे इस कविता को यहॉं प्रकाशित कर दिया, किन्तु आप सभी की बातों से काफी सीख मिली है, आगे से प्रयास रहेगा कि पाठको को उच्च कोटि की रचना पढ़ने को मिले।
कविता के माध्यम से किसी सम्मानित पाठको को जो दिक्कत हुई है उसे लिये मै व्यकित्गत रूप से क्षमा प्राथी हूँ।
प्रमेन्द्र जी, कविता में बेशक आप इस बार अपने स्तर से पीछे रह गये, मगर अपनी कमियों को स्वीकार कर उतने ही ऊँचे भी उठे हैं। निश्चय ही आपकी अगली रचना का सभी को इन्तजार रहेगा। आशा है कि पाठकों की शिकायत एक खूबसूरत अंदाज में दूर होगी।
आपकी कविता व्यवस्थाओं पर प्रहार करती तो दिखलाई देती हैं लेकिन अपनी कलात्मकता खोती हैं। आपको कविता पर और अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है।
सम्पूर्ण कविता वह है जिसमें कवि स्वयं अनुपस्थित हो जाये। बस कविता भर बचे।
प्रमेंद्र जी माफ़ी चाहूँगा आपकी कविता पर तमाम साथियों ने पहले ही इतना कुछ कह रक्खा है कि मेरा कुछ भी कहना मुनासिब नहीं है.
शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"
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