आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा..
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा..
लाख मजबूरियाँ, मेरे मौला
जिसके रस्ते डिगा नहीं पाती
पाँव पैबंद लगा कर न थका
जिसकी छाती में ज़िन्दगी गाती
उसने कल रात मुझसे ये पूछा
चाँदनी कब तलक जलायेगी
आसमानों में ही हरा क्यों है
है धरा जो, वो अधमरा क्यों है
मैं हँसा, प्रश्न बो लिये तुमने
उत्तरों का तो झुनझुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
उत्तरों का तो झुनझुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
तुम हो जैसे कोई हसीं साकी
जाम पर जाम छलकती जाये
भोर परछाईयों में अक्स दिखे
खुद को नारी कहे, हया आये
तुमने परबत बना दिये बेशक
तुमने बाँधा जरूर नदियों को
तुमको हासिल रहा लहू केवल
फिर जिसे बेच दिया बनियों को
हाल अपना ये बाकमाल किया
जैसे मुर्गा कोई भुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
जाम पर जाम छलकती जाये
भोर परछाईयों में अक्स दिखे
खुद को नारी कहे, हया आये
तुमने परबत बना दिये बेशक
तुमने बाँधा जरूर नदियों को
तुमको हासिल रहा लहू केवल
फिर जिसे बेच दिया बनियों को
हाल अपना ये बाकमाल किया
जैसे मुर्गा कोई भुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
मुझको मालूम है तेरी बेटी
नुच गयी, बिक गयी बजारों में
और बेगार कर रहा बेटा
तेरी बीवी कहीं सितारों में
जिनकी खातिर तू जलता जाता है
उनको तुझसे भला मिला क्या है?
तू पसीनों को कीमती कह ले
उससे पतलून भी सिला क्या है?
तू पतंगा है, फँस गया जीवन
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा ।।
तेरे जैसे कई हज़ारों हैं
जुड सको तो चलो, लडें मिलकर
आजमाईश बाजु-ए-कातिल की हो
हाँथ थामे खंजरों में गडें मिल कर
कह तो दें हम हाकिमों से अब नहीं
बाप की जागीर सूरज है तुम्हारा
दूध तो बच्चों का हक होगा हमारे
नाग की अब पंचमी से है किनारा
आग का घी से सामना होगा
जलजला जल के गुनगुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
*** राजीव रंजन प्रसाद
4.05.2007
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
आईना तोडनेसे कया होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा.
सच कहा आपने.
राजीवजी आपकी येह रचना मुझे डो बार् पढनी पडी,तब जाके थोडी समझमे आयी. एक् तो मुझे नीन्द आ रही थी,और् लॉग ऑफ करने जा रही थी, तबही आपकी लिन्क आयी.
हमेशा की तरह सामजिक् कटू सत्यपर आपकी रच्ना डन्ख मारती है.
तू पसीनों को कीमती कह ले
उससे पतलून भी सिला क्या है?
तू पतंगा है, फँस गया जीवन
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा ।।
राजीव जी अच्छा लिखा है ....बधाई
चाँदनी कब तलक जलायेगी
आसमानों में ही हरा क्यों है
बहुत ख़ूब राजीव जी ..
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा॥
बेहद बेहतरीन रचना है यह आपकी ...
kya baat he rajiv ji, u have express feeling of a depressed person in a very true manner and give the answer of his all questions in two lines:
Ina todne se kya hoga,
Tera chehra hi 100 guna hoga.
par muje to ish makdi ke jale me bhi maja aata he.
बहुत खूब! राजीव जी, आपपर दुष्यंतकुमार का रंग चढ़ने लगा है. लेखनी में कसावट आ गयी है. कई पंक्तियाँ ऐसी हैं जिनपर आप गर्व कर सकते हैं.
दुर्भाग्यवश, मैं अपने सिस्टम पर मूल कविता से कुछ भी कौपी नहीं कर पाता, अन्यथा कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. पर चमक तो आपकी लेखनी में आ ही गयी है.
आपके अतुकाँत रचनायें मुझे कम पसंद आती हैं, पर इसमें तो सौ में से एक सौ दस नंबर दिये जा सकते हैं.
हिन्दी प्रेमी एक और दुष्यंतकुमार के लिये तैयार रहें!
सुन्दर रचना है राजीव जी,
बेतुक सामाजिक बन्धनों को तोड का निकलने की छटपटाहट और आवाहन लिये हुये है यह रचना...बधाई स्वीकारें..
आईना तोडने से कया होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा
तू पतंगा है, फँस गया जीवन
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।
आग का ढी से सामना होगा
जलजला जल के गुनगुना होगा
आईना तोडने से कया होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा
राजीव जी क्या लिखे? हम तो वैसे ही कायल है आपकी लेखनी के कहते हुए भी बहुत खुशी महसूस होती है कि हर रचना सर्वश्रेष्ठ नजर आती है,..
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा..
मुख्य भाव ही बहुत खूबसूरत है,आगे का तो कहना ही क्या,यदि मेरी पसन्द की कोई पक्तिं चुनने को कहेंगे तो शायद सारी कि सारी रचना दोबारा लिखनी पड़ेगी,..बहुत-बहुत बधाई।
सुनीता(शानू)
गीत विधा में भी आपका सम्पूर्ण और सशक्त अधिकार है,
जो उत्क़ृष्ट काव्य आप पढा रहे हैं उसके लिये कृतज्ञ हूँ
पुनः एक अद्भुत गीत
"आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा.."
"हाल अपना ये बाकमाल किया
जैसे मुर्गा कोई भुना होगा।"
"तू पसीनों को कीमती कह ले
उससे पतलून भी सिला क्या है?
तू पतंगा है, फँस गया जीवन
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।"
पूरी कविता में भावों की प्रबलता देखते ही बनती है
हार्दिक आभार
सस्नेह
गौरव शुक्ल
एक सामाजिक प्राणी होने के दायित्व को
पूर्णतः दर्शाती ये कविता, अतुकान्त होते हुए भी,
मन को अपनी तरफ खींचने में समर्थ है.
बहुत सुंदर भाव-अभिव्यक्ती
आपकी लेखनी बहुत सशक्त है.
राजीव जी !
बधाई
धन्यवाद
गीता
पहले शिशिर भाई का जबाब।
भैया ' ई जो हमार राजीव रंजन जी हैं, उ दुस्यंत कुमार कइसे हुई जाईं,
' राजीव जी का अपना हुनर है, और अपनी स्टाइल।याद रखना शिशिर भैया, कल राजीव रंजन एक बहुत बडा नाम होने वाला है, जिसकी खुद की पहचान है।'
अब राजीव भैया आपसे मुखातिब होता हूँ।
आप मुझे बेहद बढिया इसलिये लगते है, क्योंकि बात सीधी सच्ची साफ और प्यार मोहब्बत की करते हैं,
बेकार मरने मारने पर उतारू कवि मुझे देर से पचते हैं।
भैया इक निवेदन है,
आपकी निठारी, और फिर नक्सलवाद वाली कविता ने उस श्रेणी की कविताई सुनने पढने की भूख बढा दी है, बाकी हम मूडमतियों को गंभीर 'जिंदगी विषयक कविता' कम ही पल्ले पढती है,वैसा ही कुछ फिर पढने की चाह है, ।
और अब बात इस कविता की-
आईना तोडनेसे क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा.।
एकदम वैग्यानिक बात है साहिब, आजमाकर देख लो।
इसलिये सीख ये कि भलेमानुषों बिना टूटे साबुत-साबुत से काम चलाओ ना,
जुडे-जुडे चल कर देखो बडा मजा आता है।
तू पतंगा है, फँस गया, जीवन-
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।
सब फँसे हैं, किसी न किसी जाल में,
.....
मैंने भी एक कवियता लिकी थी-
'ये मकडी से जाले'
जल्द पढवाउँगा।
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा..
आसमानों में ही हरा क्यों है
है धरा जो, वो अधमरा क्यों है
तुमने परबत बना दिये बेशक
तुमने बाँधा जरूर नदियों को
तू पसीनों को कीमती कह ले
उससे पतलून भी सिला क्या है?
तू पतंगा है, फँस गया जीवन
जाल मकडी नें यूँ बुना होगा।
आग का घी से सामना होगा
जलजला जल के गुनगुना होगा।
Apart from the poem these are the lines i found best of the best.aapki kavita hamesha ki tarah alag aur sundar hai :)Congratulations...
आईना तोडने से क्या होगा,
तेरा चेहरा ही सौ गुना होगा..
दूध तो बच्चों का हक होगा हमारे
नाग की अब पंचमी से है किनारा
आग का घी से सामना होगा
जलजला जल के गुनगुना होगा।
राजीव जी एक बार फिर से एक सशक्त रचना के साथ हैं;
जोकि कई गम्भीर मुद्दों को छूती है।
bahut hi sundar rachna hai Rajiv ji. sach ka bayaan karti hai. humesha ki tarah dhaar hai apki rachna mein.
maine kaha tha na ki comment dene ke liye samay jaroor nikaal loonga. so main haazir hoon.
ant mein phir se ek achchi rachna ke liye badhai.
i'll say simply it is superb...
aaina todne se kya hoga tera chehra hi so guna hoga...
राजीवजी, एक और खूबसूरत गीत के लिये बधाई!
जिसकी छाती में ज़िन्दगी गाती
उसने कल रात मुझसे ये पूछा
चाँदनी कब तलक जलायेगी
आपकी इन पंक्तियों में छूपा भाव, दिल छू लेने वाला है।
तुमने परबत बना दिये बेशक
तुमने बाँधा जरूर नदियों को
तुमको हासिल रहा लहू केवल
फिर जिसे बेच दिया बनियों को
वाह!
राजीव जी,
आपकी यह कविता व्यवस्थाओं से दूर भागने वालों पर करारा प्रहार करती है। यह सिखलाती है कि भागने से नहीं बदलने से समाधान होगा।
तू पसीनों को कीमती कह ले
उससे पतलून भी सिला क्या है?
मुझे ऊपर की पंक्तियों ने हिला दिया
फिर से एक सुंदर रचना। बधाई, राजीव जी।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)