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Sunday, May 06, 2007

मुहब्बत में तेरी . . .


तेरी आखों मे जो जज़बा देखा,
अंदाज़े बयां से भी परे है,
हया से उठना, और उठके युं गिरना,
तेरी पलकों में वो कुव्वत है,
के दिल के दिल भी जले हैं . . . .

तेरे लबों का युं खुलना,
और खुलके मुस्कुराना,
इस हसीं मुस्कान का आलम
जन्नत के ख्वाबों से भी परे है . . . .

हर पत्थर से भी ज़ालिम,
हर हीरे से भी कीमत,
मेरी यादों मे बहा तेरा ऍक-ऍक अश्क . . . .
ख्वाबों मे मेरे गोया, तू रोया बहोत है,
दरो-दीवार सब मेरे कोहिनूरों से भरे हैं.

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस तरह की हल्की तुकबंदी की उम्मीद यूनिकवियों से नहीं की जा सकती। इस कविता में थोड़ा भी नयापन नहीं है। मैं वरुण स्याल से विनती करूँगा कि वो कविता पर और मेहनत करें।

अशुद्धियाँ-
मे- में
जज़बा- जज़्बा
युं- यूँ
हर हीरे से भी कीमत- हर हीरे से भी कीमती (कहीं आप यह तो नहीं कहना चाह रहे थे?)
ऍक-ऍक - एक-एक

Unknown का कहना है कि -

mein agli baar se ashudhiyan sudharne ki koshish karunga.

Unknown का कहना है कि -

jo dil me aya so likha, acha nahi laga uske liye kshama chahta hu.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

वरुण जी,
आपकी क्षमता से कोई अनभिज्ञ नहीं, आप कठिन प्रतियोगिता से हो कर युग्म में आये हैं। आपके पास भावों का भी अभाव नहीं, कविता आपका कुछ समय अवश्य माँग रही है। इस कविता में भी कुछ पंक्तियाँ असाधारण है जैसे "दिल के दिल भी जले हैं", "दरो-दीवार सब मेरे कोहिनूरों से भरे हैं" इत्यादि। फिर भी यह बेहद प्रतिस्पर्धी मंच है, यहाँ आपकी प्रत्येक कविता से और बेहतर स्तर की अपेक्षा की जाती है। यह युग्म की सफलता के लिये भी आवश्यक है कि सदस्य कवियों को इस बात का भान रहे कि उनकी कविता युग्म का स्तर निर्धारित करेगी।

फिर "मूसलों से घबराईये मत" आलोचनायें ही सिखाती हैं। इसी अपेक्षा के साथ..

सस्नेह।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Tushar Joshi का कहना है कि -

शैलेश जी और राजीव जी से मैं सहमत हूँ।

आप जब भी कविता लिखते हैं इस बात का ध्यान हमेशा रखें के वही शब्द प्रयोग में लाएँ जिन्हे आप पूरी तरह जानते हैं।

"अंदाज़े बयाँ से परे" ये वाक्य अजीब लगता है। अंदाज़े बयाँ का मतलब मेरे हिसाब से किसी के बात करने का लहज़ा, किसी का बयाँ (कहना) करने का अंदाज, ऐसा होता है। इसी बात को समझते हुए "बयाँ से परे" तो ठीक रहेगा मगर अंदाज़े बयाँ से परे नहीं।

जो शब्द आप जीते है उन्हे लिखिये और आप पायेंगे के वे अपने आप ही ताकतवर शब्द होंगे, शब्द उधार लिये जाएँ तो अर्थ जाता रहता है।

आपके कविता के लिये शुभकामनाएँ। हमें और कविताओं का ईंतज़ार रहेगा।

- तुषार जोशी, नागपुर

रंजू भाटिया का कहना है कि -

यहाँ हर लिखने वाला स्वयं में एक विद्यार्थी है
हम सब लोग एक दूसरे से सीख रहे हैं ...
अच्छा प्रयास लगा आपका....

Unknown का कहना है कि -

ji bilkul theek, alochna hi kala ko sudharne ka karya karti hai, is kon se alochna ka hona, kala ki paripurnata aur unnati ke liye avashyak hai, main bhi svayam ko sudharne ka prayatna karunga, aap sabhi ka dhanya-waad.

पंकज का कहना है कि -

मुझे लगता है कि वरुण जी ने अपनी शैली थोड़ा बदलने को सोचा है;
जिसके चलते कुछ अजीब सी रचना सामने आयी है; अगर व्याकरण को छोड़कर उनकी भावनाओं को समझें तो निश्चित रूप में एक अच्छा प्रयास है। लेकिन, निश्चित रूप में कुछ कमियों पर गृहकार्य करना पड़ेगा।

Anonymous का कहना है कि -

वरूणजी,

कविमित्रों की टिप्पणियाँ देखकर लग रहा है कि उन्हें भी मेरी तरह आपसे कहीं बेहतरी की उम्मीद थी, मगर लगता है उसी कुव्वत में आपने अपने लेख़न को बदलने का सा प्रयास किया है। अपना स्वाभाविक लेख़न जारी रखें, आप अच्छा लिखते हैं।

सस्नेह,

गिरिराज जोशी "कविराज"

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

कच्‍चा माल अच्‍छा है मगर गोलियाइये अच्‍छे से।

SahityaShilpi का कहना है कि -

वरुण जी, कुछ और कहने को नहीं है मेरे पास। सब कुछ तो बाकी पाठकों व कवि मित्रों ने कह ही दिया। बेहतर की आशा है।

Anonymous का कहना है कि -

maaf kijiega maine aapki uni kavita nahin padhi, per mitron se pata chala ki aap uni kavi rahe hain , acchhi baat hai,
baat karein aapki is kavita ki to isme aisa kafi kuchh hai jiske liye aapko saraha jaye lekin agar ummid karein hum ek uni kavi se to nishchit taur se yah prayas nakafi hi raha.
apka
alok singh "Sahil"

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