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Tuesday, May 01, 2007

अम्बा का संताप




अम्बा काशी नरेश की तीन पुत्रियोँ मेँ से एक थी जो मन ही मन मार्तिकावत के राजा साल्वाराज को अपना पति मान चुकी थी. देवव्रत (भीष्म)ने जो कि राजा शान्तनु और गँगा के पुत्र थे, तीनो बहनोँ अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्यँवर मेँ से ही अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य की पत्नी बनाने के लिये अपहरण कर लिया. जब भीष्म को पता चला कि अम्बा साल्वाराज से प्रेम करती है तो उन्होँने उसे स्वतन्त्र कर दिया परन्तु युद्ध मेँ भीष्म से हुयी हार के कारण बौखलाये हुये साल्वाराज ने अम्बा को स्वीकार करने से इसलिए इन्कार कर दिया कि वो किसी के द्वारा जीती जा चुकी है. उधर विचित्रवीर्य ने यह कह कर अम्बा को त्याग दिया कि वह उस स्त्री को पत्नी के रूप मेँ स्वीकार नही कर सकता जो किसी और से प्रेम करती हो. अन्त मेँ अम्बा ने भीष्म से उसे पत्नी रूप मँ स्वीकारने के लिये कहा परन्तु भीष्म ने अपने व्रत के कारण ऐसा करने मेँ असमर्थता जताई. ठुकरायी हुई अपमान से पीडित अम्बा ने भीष्म वध का व्रत ले कर वन की राह ली. आत्म-मन्थन करते हुये अम्बा ने अग्नि मेँ प्रवेश कर अपनी ईहलीला समाप्त कर ली और कालान्तर मेँ राजा द्रुपद के यहाँ शिखण्डिन के रूप मेँ जन्म ले कर अपना भीष्म वध का व्रत पूर्ण किया.


यौवन की देहरी पर
सत्रह सावन का सौपान पीये
रत्नों, फ़ूलों से सजकर
निज स्वपनों का श्रृँगार किये
बीच स्य़ँवर जिसका हरण हुआ
हाँ मैँ वही अपहरित अम्बा हूँ

तिरस्कृत हुई जो प्रेमी से
आखेटक से अपमानित भी
प्रक़ृति के उपहास का पात्र बनी
हाँ मैँ वही सुकोमल कन्या हूँ
हाँ मैँ वही परित्यागित अम्बा हूँ

इतिहास रचा जिसने अपने दम पर
इतिहास ने जिसको बिसराया
हाँ मैँ वही शिखण्डिन हूँ
हाँ मैँ वही उपेक्षित अम्बा हूँ

इक जन्म अग्नि मेँ स्वँय की आहुति दी
दूजे मेँ जलसमाधि ली
तीजे मेँ फरसे से दो खण्ड हुयी
हाँ मैँ वही खण्डित अम्बा हूँ

सह्स्त्रोँ वर्षोँ से तर्पण की प्यासी
इक अन्जुली भर श्रद्धान्जलि की
क्या किसी ने मेरा श्राद्ध किया
हाँ मैँ वही युग-विस्मृत अम्बा हूँ

यदि मैँ न होती तो क्या कोई
रोक पाता गति भीष्म की ?

क्या सबल था गाँडीव अर्जुन का
या इस योग्य गदा बाहुबली भीम की ?

क्या होता कृष्ण के सारे प्रयत्नोँ का
क्या सत्य पताका फिर लहराती ?

क्या रणवीरोँ का रक्त भार
पाँडव कुल कभी चुका पाता ?

क्या युद्धिष्टिर के कोमल उदगारोँ
ने यह युद्ध जीत लिया होता ?

जिसने पाया न कोई प्रतिउत्तर
हाँ मैँ वही अनुतरित अम्बा हूँ

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अंबा के दर्द को बखूबी उकेरा है आपनें और प्रश्न भी महत्वपूर्ण उठाये हैं:

यदि मैँ न होती तो क्या कोई
रोक पाता गति भीष्म की ?

क्या होता कृष्ण के सारे प्रयत्नोँ का
क्या सत्य पताका फिर लहराती ?

अंत बहुत सुन्दर बन पडा है:

जिसने पाया न कोई प्रतिउत्तर
हाँ मैँ वही अनुतरित अम्बा हूँ

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

sahi likha hai aapne ..achha laga isko padhana ..


सह्स्त्रोँ वर्षोँ से तर्पण की प्यासी
इक अन्जुली भर श्रद्धान्जलि की
क्या किसी ने मेरा श्राद्ध किया
हाँ मैँ वही युग-विस्मृत अम्बा हूँ

Anonymous का कहना है कि -

kavita sahi hai parunti tasvir sahi nahi hai.

Mehtab

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

अच्‍छी प्रस्‍तुति थी। बधाई

Anonymous का कहना है कि -

Nice story and nice presentation....yehh hui na baat sab kuch detail me....
aapki kavita prastuti aachi lagi....shabdon ka chayan bhi khoob kiya hai...bhadhaai sweekaaren...

सह्स्त्रोँ वर्षोँ से तर्पण की प्यासी
इक अन्जुली भर श्रद्धान्जलि की
क्या किसी ने मेरा श्राद्ध किया
हाँ मैँ वही युग-विस्मृत अम्बा हूँ
especially ending
जिसने पाया न कोई प्रतिउत्तर
हाँ मैँ वही अनुतरित अम्बा हूँ

सुनीता शानू का कहना है कि -

मोहिन्दर कुमार जी बहुत अच्छा लिखा है सबसे अच्छा लगा सर्वप्रथम भूमिका देना।
अम्बा की कहानी वाक़ई बेहद मार्मिक है ऐसा लगता है पुरूष के लिये औरत ऐक खेलने की वस्तु मात्र है जब चाहा युधिष्ठिर जुये में हार गया,..तो कभी भीष्म युध्द मे जीत कर ले आये,..
युगयुगांतर से यही होता आया है आपने बहुत सुन्दर तरीके से वर्णन किया है,..
सुनीता(शानू)

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

kavita acchi lagi parantu isse aur bhi bhavya banaya ja sakta tha .

likhte rahiye

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

aapne kuch nayi jaankari bhi di hai bhumika ke throgh

bhaut achhi lagi aapki panktiyan jisme amba ka dard bhi hai aur usme kuch virah hai kuch sawal bhi hai

aapki ye soch aur likhne ka anutha andaaj pyara laga

Divine India का कहना है कि -

हमेशा देखा गया है दूसरों को अपनी आँखों से मात्र ही पर हाँ किसी ने देखा है उसे उसी की नजरों से…इस दर्शन में, यह प्रस्तुति बेहद शानदार रही; यही आपेक्षा भी आपसे होती है…लिखना और उस समय की भावनात्मक श्रृंगार को उतारना काफी कठीन काम है…मगर आप सफल हैं…बधाई!!!

Gaurav Shukla का कहना है कि -

अंबा की वेदना का बहुत मार्मिक चित्र खींचा है आपने

"जिसने पाया न कोई प्रतिउत्तर
हाँ मैँ वही अनुतरित अम्बा हूँ "

सशक्त लेखन,सुन्दर काव्य है
बहुत बधाई मोहिन्दर जी

सस्नेह
गौरव शुक्ल

पंकज का कहना है कि -

जिसने पाया न कोई प्रतिउत्तर
हाँ मैँ वही अनुतरित अम्बा हूँ
ये रचना अम्बा के उद्गार ही नहीं हैं, बल्कि किसी न किसी रूप में स्त्री की दशा को कहने वाले हैं।
आप की रचना बहुत ही मार्मिक है;बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

अंबा के दर्द को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है आपने। बधाई स्वीकार करें!

Avanish Gautam का कहना है कि -

es kavita se samkalinta gayab hai..purane panditau shabo bimbon aur vishayon se kavita ko koyi laabh nahi hoga. koyi napan nahi hai.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मोहिन्दर जी,

आपकी यह रचना कुछ-२ दिनकर की याद दिलाती है। आपमें वह प्रतिभा है-आप खण्डकाव्य या महाकाव्य लिख सकते हैं। हाँ, आपकी यह भी ज़िम्मेदारी बनती है कि विषय समसामयिक लें। ऐसे चरित्रों का गान करें जो आज के हैं और हाशिए पर हैं। पुराने चरित्र बासी लगते हैं।


पूरी कविता में प्रवाह है। न कहीं अधिक मात्रा, न कहीं व्यर्थ शब्द। फ़िर भी आदतानुसार एक सुझाव देना चाहूँगा-

इक जन्म अग्नि मेँ स्वँय की आहुति दी- इक जन्म-अग्नि में स्व-आहुति दी

लगे रहिए।

अनुतरित- अनुत्तरित

टीका- यद्यपि में, मैं, या बहुवचनों में अंत की ध्वनि संस्कृत के अनुसार अर्ध-अनुस्वार (चंद्रबिन्दु) ही है, फ़िर भी आधुनिक प्रमाणित हिन्दी में इसे अब अनुस्वार की तरह लिखा जाता है।

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

आखेटक से अपमानित..
तीक्ष्‍ण व्‍यंजना है।

SahityaShilpi का कहना है कि -

अम्बा के माध्यम से जो सवाल आपने उठाये हैं, वह अच्छे लगे। पर कविता में आपकी प्रतिभा के लिहाज से कुछ खास नहीं है। आपसे इससे भी ज्यादा की उम्मीद आपके पाठक करते हैं।

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